दिल्ली हाई कोर्ट परिसर में हुए बम विस्फोट ·की जांच चाहे जिस ·किसी भी एजेंसी से ·रा ली जाये या गुनाहगारों ·को ·कितनी भी कड़ी सजा दिलाने ·का दंभ भरा जाये लेकिन नतीजे ढाक के तीन पात ही रहना है।
पहले मातमपुर्सी- देश में आतंकी हमलों की · जब भी ·कोई घटना होती है तो इन घटनाओं में ·काल कलवित होने वाले लोगों के परिजनों पर तो मानों विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ता है लेकिन राजनीति· नुमाइंदों की भूमिका ऐसे मामलों में बड़ी ही शर्मनाक रहती है। उनके द्वारा ऐसी घटनाओं पर प्रतिक्रिया के रूप में चिर परिचित शैली ही अपनाई जाती है, घटना की कड़ी निंदा, बयानबाजी एवं गुनाहगारों को नहीं बख्सने जैसे तमाम राग अलापे जाते हैं लेकिन इतिहास गवाह है की किसी भी आतंकवादी घटना के किसी भी गुनाहगार को शायद ही आज तक · सजा मिल पायी हो। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या, भारतीय संसद पर आतंकवादी हमला,मुंबई बम विस्फोट तथा अब दिल्ली हाई ·कोर्ट परिसर में बम विस्फोट जैसे अनगिनत रूह कपा देने वाले मामले हैं जिन्होंने देश के राजनीति· नुमाइंदों के कोशल, आंतरिक · सुरक्षा के मुद्दे पर उनकी रणनीति तथा खुफिया तंत्र की सजगताको तो मानो आइना दिखा दिया है लेकिन अकर्मण्यता एवं संवेदनहीनता के दलदल में आकंठ डूबे यह राजनीति· खेवनहार किसी भी घटना से सब· लेनेके लिये तैयार नहीं हैं।
फिर जांच-पड़ताल- देश की आंतरिक सुरक्षा को झकझोर कर अंजाम दी जाने वाली किसी भी घटना के गुनाहगार देश के राजनीतिक खेवनहारों को ललकारते हुए खुलेआम ऐसी घटनाओं की जिम्मेदारी भी लेते हैं लेकिन : अकर्मण्यता की स्थिति का सामना कर रहे राजनीति· नुमाइंदे ऐसी घटनाओं की जांच कराने के नाम पर शर्मिंदगीपूर्ण तरीके से अपनी नाका मियों पर से लोगोंका ध्यान भटकाने की कोशिश करते हैं। लोगों के सब्र की इम्तहां तो तब हो जाती है जब ·ई बार देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री या अन्य जिम्मेदार लोग ऐसी घटनाओं को रोक पाने में या तो खुफियातंत्र की नाकामी को खुलकर स्वीकारते हैं या फिर देश की आंतरिक सुरक्षा और देशवासियों की हिफाजत के मुद्दे पर अपने हाथ खड़े कर देते हैं। आतंकी घटनाओंकी जांच पड़ताल के नाम पर चाहे जितना समय,श्रम एवं पैसा बर्बाद कर दिया जाये लेकिन यह सर्व विदित है की किसी भी जांच पड़ताल के बाद आखिर गुनाहगारों पर का र्यवाही तो सरकार को ही करनी है लेकिन जब सरकार चलाने वाले लोग ही बेकार और बेलगाम हो गये हैं तो फिर ठोस एवं सकारात्मक नतीजेकी उम्मीद कैसेकी जाये?
...........और नतीजे ढाक के तीन पात
इसे देशवासियों का दुभाग्य कहें या देश के स्वतंत्रता आंदोलन में अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले महान बलिदानियों की दिवंगत आत्मा का अपमान की देश के शीर्ष पदों पर बैठे हुए लोग आतंकवाद एवं आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे पर देशवासियोंकी दुखती रगों पर तेजाब डालने का काम कर रहे हैं।
जो घातक है वो देवता सदृश्य दिखता है, लेकिन कमरे में गलत हुक्म लिखता है की तर्ज पर संवेदनहीनता की पराकाष्ठा को भी पार करते हुए खुद राजनीतिक नुमाइंदे ऐसे गुनाहगारों की सजा कम क रने या उन्हे माफी देने की भी वकालत करने लगते हैं। राजीव गांधी के हत्यारों के प्रति एम करुणानिधि
समेत तमिलनाडु के अन्य बड़े क्षत्रपों का रवैया, संसद पर हमले के आरोपी मो. अफजलकी ·कोर्ट में पैरवी करने वाले स्वनामधन्य विख्यात अधिवक्ता राम जेठमलानी जैसे अनगिनत लोग हैं जिनकी राष्ट्रनिष्ठा एवं मूल्यों के प्रति समर्पण पर गंभीर सवाल उठना स्वाभाविक है। तो मुंबई हमलेके आरोपी कसाब की सुरक्षा एवं खातिरदारी में ही अब तक करोड़ों रुपये खर्च क र दिये जाने जैसे कारनामे यह बताते हैं की उच्च पदों पर बैठे हुए लोग स्वयं ही मानवीय एवं संवैधानिक मूल्यों का चीरहरण कर रहे हैं। देश के संवैधानिक प्रावधानों में व्याप्त तमाम अनुकूल परिस्थतियों का भी देशद्रोहियों द्वारा भरपूर फायदा उठाया जा रहा है तो बेगुनाह लोगों की चिता पर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने वालों को तो शायद ऐसी दिल दहला देने वाली घटनाओं का बेसब्री से इंतजार रहता है। यही ·कारण है की देश में आतंकवाद नासूर बन गया है और देश का कोई भी हिस्सा अब सुरक्षित नहीं है।