Friday 31 August 2012

भारत माता की जय

भारत माता का वैभव गौरव और प्रतिष्ठा बढ़ाना हम सब की जिम्मेदारी है. क्यों कि देश में मौजूदा समय में भ्रष्टाचार सहित अन्य जटिल समस्याएं विकराल रूप धारण किये हुए खड़ी हैं उससे भारत माता के प्रतिष्ठा को गहरा आघात लग रहा है. देश में आर्थिक विकास के नाम पर जो अनियोजित प्रयास किये जा रहे हैं उनका नतीजा यह है कि देश में आर्थिक असमानता  लगातार बढ़ रही है. गरीब अति गरीब और अमीर अति अमीर होता जा रहा है. नैतिक मूल्यों में लगातार गिरावट के कारण देश में बाजार वाद लगातार हावी है. देश हमें देता है सब कुछ हम भी तो कुछ देना सीखें की भावना का ह्रास हो रहा है. ऐसे में भारत माँ की जय ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए.

Thursday 23 August 2012


कोयला घोटाले में राजग का दामन भी काला 

कैग की रिपोर्ट को संसद में प्रस्तुत करने के बाद सामने आये कथित कोयला घोटाले के बाद देश की राजनीति में भूचाल आ गया है. विपक्ष द्वारा इस मुद्दे पर संसद ठप्प किये जाने के साथ ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का इस्तीफा माँगा जा रहा है. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर विपक्षी राजग का आक्रामक रुख तो स्वाभाविक है. लेकिन हैरानी की बात यह है कि राजग इस मुद्दे पर संसद में चर्चा क्यों नहीं कराना चाहता . जाहिर है कि इस घोटाले के लपेटे में मध्यप्रदेश सहित भाजपा शासित अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री भी आने वाले हैं. क्यों कि इस मुद्दे पर राजग का दामन भी काला है. यही कारण है कि पोल खुलने के डर से भाजपा इस मुद्दे पर संसद में चर्चा ही नहीं चाहता. सिर्फ वह प्रधानमंत्री की बलि लेना चाहता है. उधर  कोयला घोटाले पर विपक्ष की जिद के सामने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के भी आक्रामक रूप से खुलकर सामने आने के बाद राजनीतिक संकट और गहरा गया है। प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग पर अड़े विपक्ष के सामने बिल्कुल न झुकने की सोनिया की नसीहत के बाद कांग्रेसियों के और ज्यादा लड़ाकू तेवर अपनाने के बाद सोमवार से पहले यह गतिरोध निपटने के आसार बिल्कुल खत्म हो गए हैं। हालांकि, संसद चलाने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के खुद बयान देने और सर्वदलीय बैठक का प्रस्ताव भाजपा के पास भेजा गया है, लेकिन मुख्य विपक्षी दल ने सोमवार को ही अपने पत्ते खोलने को कहा है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस्तीफे से कम पर किसी भी तरह राजी नहीं हो रही भाजपा के तेवरों से भड़की सोनिया ने अपने सांसदों को भी दबाव में न आने की ताकीद कर दी। संप्रग अध्यक्ष ने कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में दो टूक कहा कि 'विपक्ष का तरीका सरासर गलत है और सरकार को बचाव की कोई जरूरत नहीं है, इसलिए हमें भी आक्रामक रुख ही अपनाना चाहिए।' सोनिया के इन तेवरों के बाद कांग्रेस के मंत्री और सांसदों ने भाजपा के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल दिया है। इससे गतिरोध समाप्त होने के बजाय और बढ़ता जा रहा है। कांग्रेस ने इसके संकेत जेपीसी के प्रमुख पीसी चाको को प्रवक्ता बनाकर दे दिए हैं। गुरुवार को लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही शुरू होते ही भाजपा और उसके सहयोगी दलों के सांसदों ने प्रधानमंत्री के इस्तीफे पर हंगामा किया। जवाब में कांग्रेसी भी कमजोर नहीं रहे और उन्होंने भी आक्रामकता से जवाब दिया। कांग्रेस सांसदों ने कोयला ब्लाक आवंटन में भाजपा समेत विपक्षी दलों की राज्य सरकारों को घेरे में लेने का प्रयास किया और विपक्ष को संसद में चर्चा कराने की चुनौती दी। गतिरोध दूर करने के लिए राज्यसभा सभापति हामिद अंसारी ने अपने चैंबर में सभी दलों के नेताओं के साथ बैठक भी की।उधर, गृह मंत्री और लोकसभा में सदन के नेता सुशील कुमार शिंदे ने विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज से भेंट कर बीच का रास्ता निकालने का प्रयास किया। सूत्रों के मुताबिक, उन्होंने सर्वदलीय बैठक और प्रधानमंत्री के बयान देने जैसे प्रस्ताव रखे, लेकिन सुषमा ने सोमवार से पहले कुछ भी बोलने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि राजग सोमवार तक अपनी रणनीति तय करेगा। कुल मिलाकर प्रयासों के बावजूद पूरे दिन संसद की कार्यवाही नहीं चल सकी। इस तरह से संसद ठप्प करने से कोई नतीजा नही निकलने वाला  है. बेहद जरुरी है कि सरकार के साथ साथ राजग भी सच का सामना करे. 

Sunday 19 August 2012

ईद को बनायें देश के उत्थान का आधार

पारस्परिक सद्भाव और भाई चारे का पर्व ईद हमारे देश और समाज में विशेष स्थान रखता है. नेकी. न्याय और इंसानियत के फलीभूत होने का सन्देश देने वाला यह पर्व देश के उत्थान का आधार बने यही हमारी कामना है.रमजान शरीफ में पूरे महीने इबादत करने के बाद बंदे को अल्लाह की तरफ से ईनाम ईद के दिन मिलता है। शरीयत के मुताबिक ईद के दिन से ज्यादा खुशी का दिन और कोई नहीं। यूं तो ईद साल में दो बार आती है। रमजान के बाद मनाई जाने वाली ईद को ईद-उल-फितर कहते हैं।इस दिन सभी पुरुष ईदगाह में जमा होकर दो रकत नमाज अदा करते हैं और अल्लाह से दुआ मांगते हैं। महिलाएं अपने घरों में नमाज अदा करती हैं। ईद की नमाज के बाद लोग एक-दूसरे से गले मिलकर ईद की मुबारकबाद देते हैं। नमाज के लिए जाने से पहले सदका, फितर देना जरूरी है। इसके तहत परिवार के हर शख्स के हिसाब से 35 से 40 रुपए किसी गरीब या जरूरतमंद व्यक्ति को दिए जाते हैं। बहुत से लोग सदका फितर रमजान में ही अदा कर देते हैं, क्योंकि रमजान में हर नेकी का सवाब सत्तर गुना बढ़ जाता है। जो लोग साहिबे हैसियत है वे ईद की नमाज से पहले या रमजान में ही जकात अदा करते हैं। जकात शरीयत के मुताबिक टैक्स है। अगर किसी शख्स के पास साढ़े सात तोला सोना या इसके बराबर कीमत की चांदी या फिर इतना ही नकद रुपया है तो उसे अपने धन का ढाई प्रतिशत गरीबों में, विधवा औरतों में दान करना जरूरी है।

ईद के दिन की सुन्नतें-
ईद के दिन की सुन्नतें इस तरह हैं- 1. शरीयत के मुताबिक खुद को सजाना 2. गुस्ल करना 3. मिस्वाक करना 4. अच्छे कपड़े पहनना 5. खुशबू लगाना 6. सुबह जल्दी उठना 7. बहुत सवेरे ईदगाह पहुंच जाना 8. ईदगाह जाने से पहले मीठी चीज खाना 9. ईद की नमाज ईदगाह में अदा करना 10. एक रास्ते से जाकर दूसरे रास्ते से वापस आना 11. पैदल जाना 12. रास्ते में धीरे-धीरे तकबीर पढ़ना।
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आइये हम सब मिलकर ईद के पर्व को राष्ट्रिय एकता और आपसी सद्भाव का साक्षी बनायें .

Friday 17 August 2012

भारतवंशियों और बांग्लादेशियों के बीच जंग है असम की हिंसा

इछ्ले कुछ समय से असम में हो रहे दंगे और रक्तपात के चलते देश की आवोहवा पर फिर से विपरीत असर पड़ा है. बांग्लादेशियों की घुसपैठ देश की काफी पुरानी समस्या है. इस समस्या के लगातार रौद्र रूप लेने और स्थिति की विभीषिका से वाकिफ होने के बावजूद न तो बंगलादेशी घुश्पैठियो को चिन्हित कर उन्हें यहाँ से निकालने की कोशिश की जा रही है और न ही देश के कानून के आलोक में उनके खिलाफ कोई कार्यवाही हो रही है. तुष्टिकरण और वोट की राजनीति ही इसके लिए प्रमुखता के साथ जिम्मेदार है. क्यों कि वोट बैंक को ध्यान में रखकर ही इन बांग्लादेशी घुश्पैथियों को सहेजकर रखा जा रहा है. भले ही इनकी उपद्रवी गतिविधियों के चलते पुरे देश में आग लग जाये. अब असम के साथ कर्नाटक जैसे अन्य राज्यों का माहौल भी इन हिंसात्मक गतिविधियों के चलते खराब हो रहा है. कर्नाटक में तो असुरक्षा के चलते लोगों का पलायन ही शुरू हो गया है.

पूर्वोत्तर के लोगों पर कर्नाटक सरकार की अपीलों और आश्वासनों का कोई असर नहीं पड़ा है और हमलों की अफवाहों के चलते आज तीसरे दिन भी राज्य से उनका पलायन जारी है। पलायन अब तक बेंगलुरु तक ही सीमित था, लेकिन अब अब मैसूर, मंगलूर और कोडागू जैसे बाकी क्षेत्रों से भी पूर्वोत्तर के लोग राज्य छोड़कर जा रहे हैं। लोग यहां ट्रेनों और बसों के जरिए पहुंच रहे हैं और टिकट खरीदने के लिए रेलवे काउंटरों पर भीड़ लगी है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि पिछले दो दिन में अफवाहों के चलते 15 हजार से ज्यादा लोग शहर छोड़कर जा चुके हैं। अनुमान के मुताबिक बेंगलुरु में रहने वाले पूर्वोत्तर के लोगों की संख्या ढाई से पौने तीन लाख के बीच है। इनमें छात्र भी शामिल हैं। बड़ी राजनीतिक चतुराई के साथ इन हिंसात्मक गतिविधियों को साम्प्रदायिक दंगों का नाम दिया जा रहा है. जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.


Thursday 16 August 2012


राम को छोड़ रामदेव की शरण में भाजपा 

देश की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा आज कल गंभीर वैचारिक भटकाव के दौर से गुजर रही है. लगातार राजनीतिक अवनति से हतास भाजपा के नेताओं के सामने किं कर्तव्य विमुढः की स्थिति निर्मित हो गयी है. यही कारण है कि कभी रामलला के लिए मिट मरने की बात करने वाली भाजपा अब रामदेव की शरण में है. बाबा रामदेव भाजपा को कुछ राजनीतिक लाभ पहुचा पाएंगे या उलटे भाजपा की और माटी पलीद हो जाएगी यह तो समय बतायेगा लेकिन भाजपा के इस पशोपेस ने पार्टी के नैतिक चरित्र को सतह पर ला दिया है.राजग के कुनबे में निरंतर बिखराव और भाजपा में निरंतर बढ़ते अंतर्कलह और नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षा में बढ़ोत्तरी के बीच पार्टी की भविष्य की राजनीतिक संभावनाएं वैसे भी ख़त्म सी नजर आ रही हैं. यूपीए सरकार के कार्यकाल में बढती महगाई और भ्रष्टाचार भाजपा के पुनरोदय का आधार बन सकता था. लेकिन कश्मीर से कन्याकुमारी तक भाजपा में बढती गुटबाजी और एक दुसरे की टांग खींचने की बढती प्रवृत्ति ने भाजपा के उत्साह में तुषारापात जैसा कर रखा है. यही कारण है कि अब भाजपा को रामदेव में ही अपना कल्याण नजर आ रहा है. दिलचस्प बात यह है कि भाजपा के कम जनाधार वाले नेता ही रामदेव को समर्थन देने के मामले में ज्यादा उतावलापन दिखा रहे हैं. मसलन अरुण जेटली ने एक बार रामदेव के साथ मंच साझा किया तो नितिन गडकरी ने तो रामदेव के पैर ही पकड़ लिए . यह सब ऐसे नेता हैं जो भाजपा के प्रधानमन्त्री पदके उम्मीदवार नहीं हो सकते . ऐसे में इन्हें लगता है कि भले ही रामदेव का देश का प्रधानमन्त्री बनने का सपना पूरा हो जाये लेकिन किसी भाजपा नेता को यह सौभाग्य नसीब नहीं होने पाए. वहीं भाजपा के जनाधार वाले नेताओं का एक समूह ऐसा भी है जो भ्रष्टाचार का विरोध तो करता है लेकिन उसके साथ में वह भाजपा के राजनीतिक हितों का भी स्वाभाविक रूप से ध्यान रखता है. भाजपा के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी जैसे लोग निश्चित रूप से ऐसी ही सोच रखते हैं. काश भाजपा ने अपने स्तर भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई निर्णायक आन्दोलन चलाया होता तो आज भाजपा का ग्राफ कुछ और होता .

Wednesday 15 August 2012

झंडा ऊँचा रहे हमारा

स्वतंत्रता के भीषण रण में. लख कर जोश बढ़े छण छण में

मिट जाये भय संकट सारा झंडा ऊँचा रहे हमारा

कुछ ऐसी ही भावनाओं से ओतप्रोत भारतीय जनमानस देश की स्वतंत्रता.देश के लोकतंत्र तथा देश की एकता और अखंडता को मजबूत बनाये रखने के लिए संकल्पित है. और इस संकल्प को नए सिरे से प्रतिष्ठित प्रतिबिंबित और रेखांकित करने का ऐतिहासिक अवसर है स्वतंत्रता दिवस. जब हम देश के सामने मौजूद चुनौतियों और विषम परिस्थितियों के बीच देश हित में अपना सर्वस्व न्योछावर करने का संकल्प लेते है. यह एक संकल्प दिवस है. यह भारत माँ के महान सपूतों का सौर्य दिवस है.यह दुनिया को दिखाने के लिए सिरमौर्य दिवस है.

देश में एक बार फिर 15 अगस्त 2012 बुधवार  को स्वतंत्रता दिवस या आजादी के दिन के अवसर पर अनेक कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है.। देश में बढ़ते भ्रष्टाचार, अराजकता, बेरोजगारी, भूखमरी, बेरोजगारी, अस्वास्थ्य की स्थित और गरीबी की वजह से अनेक लोगों के लिये 15 अगस्त की आजादी एक भूली बिसरी घटना हो गयी है। आजादी को अब 65 वर्ष हो गये हैं और इसका मतलब यह है कि कम से हर परिवार की पांच से सात पीढ़ियों ने इस दौरान इस देश में सांस ली होगी। हम देखते हैं कि पीढ़ी दर पीढ़ी एतिहासिक घटनाओं की स्मृतियां फीकी पड़ती जाती हैं। एक समय तो उनको एक तरह विस्मृत कर दिया जाता है। अगर 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस और और 26 जनवरी गणतंत्र दिवस हर वर्ष औपचारिक रूप से पूरे देश में न मनाया जाये तो शायद हम इन तारीखों को भूल चुके होते। वैसे निंरतर औपचारिक रूप से मनाये जाने के बाद भी कुछ वर्षों बाद एक दिन यह स्थिति आयेगी कि इसे याद रखने वालों की संख्या कम होगी या फिर इसे लोग औपचारिक मानकर इसमें अरुचि दिखायेंगे।

            ऐतिहासिक स्मृतियों की आयु कम होने का कारण यह है कि इस संसार में मनुष्य की विषयों में लिप्तता इस कदर रहती है कि उसमें सक्रियता का संचार नित नयी एतिहासिक घटनाओं का सृजन करता है। मनुष्य जाति की इसी सक्रियता के कारण ही जहां इतिहास दर इतिहास बनता है वही उनको विस्मृत भी कर दिया जाता है। हर पीढ़ी उन्हीं घटनाओं से प्रभावित होती है जो उसके सामने होती हैं। वह पुरानी घटनाओं को अपनी पुरानी पीढ़ी से कम ही याद रखती है। इसके विपरीत जिन घटनाओं का अध्यात्मिक महत्व होता है उनको सदियों तक गाया जाता है। हम अपने अध्यात्मिक स्वरूपों में भगवत् स्वरूप की अनुभूति करते हैं इसलिये ही भगवान श्री विष्णु, श्री ब्रह्मा, श्री शिव, श्री राम, श्री कृष्ण तथा अन्य स्वरूपों की गाथायें इतनी दृढ़ता से हमारे जनमानस में बसी हैं कि अनेक एतिहासिक घटनायें उनका विस्मरित नहीं करा पातीं। हिन्दी के स्वर्णिम काल में संत कबीर, मानस हंस तुलसी, कविवर रहीम, और भक्तमणि मीरा ने हमारे जनमानस को आंदोलित किया तो उनकी जगह भी ऐसी बनी है कि वह हमारे इतिहास में भक्त स्वरूप हो गये और उनकी श्रेणी भगवान से कम नहीं बनी। हम इन महामनीषियों के संबंध में श्रीमद्भागवत गीता में वर्णित इस संदेश का उल्लेख कर सकते हैं जिसमें भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि ‘जैसे भक्त मुझकों भजते हैं वैसे ही मैं उनको भजता हूं’। अनेक विद्वान तो यह भी भी कहते हैं कि भक्त अपनी तपस्या और सृजन से भगवान की अपेक्षा बढ़े हो जाते हैं।

स्वतंत्रता संग्राम के समय अनेक महापुरुष हुए। उनके योगदान का अपना इतिहास है जिसे हम पढ़ते आ रहे हैं पर हैरानी की बात है कि इनमें से अनेक भारतीय अध्यात्म से सराबोर होने के बावजूद भारतीय जनमानस में उनकी छवि भक्त या ज्ञानी के रूप में नहीं बन पायी। स्पष्टतः स्वतंत्रता संग्राम में उनकी सक्रिय छवि ने उनके अध्यात्मिक पक्ष को ढंक दिया। स्थित यह है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भी अनेक लोग राजनीतिक संत कहते हैं जबकि उन्होंने मानव जीवन को सहजता से जीने की कला सिखाई।

        ऐसा नहीं है कि भारतीय अध्यात्मिक दर्शन राष्ट्र या मातृभूमि को महत्व नहीं देता। भगवान श्रीकृष्ण ने तो अपने मित्र श्री अर्जुन को राष्ट्रहित के लिये उसे क्षात्र धर्म अनुसार निर्वाह करने का उपदेश दिया। दरअसल क्षत्रिय कर्म का निर्वाह मनुष्य के हितों की रक्षा के लिये ही किया जाता है। यह जरूर है कि चाहे कोई भी धर्म हो या कर्म अध्यात्मिक ज्ञान होने पर ही पूर्णरूपेण उसका निर्वाह किया जा सकता है। देखा जाये तो भारत और यूनान पुराने राष्ट्र माने जाते हैं। भारतीय इतिहास के अनुसार एक समय यहां के राजाओं के राज्य का विस्तार ईरान और तिब्बत तक इतना व्यापक था कि आज का भारत उनके सामने बहुत छोटा दिखाई देता है। ऐसे राजा चक्रवर्ती राजा कहलाये। यह इतिहास ही राष्ट्र के प्रति गौरव रखने का भाव अनेक लोगों में अन्य देशों के नागरिकों की राष्ट्र भक्ति दिखाने की प्रवृत्ति की अपेक्षा कम कर देता है। इसी कारण अनेक बुद्धिमान इस देश के लोगों में राष्ट्रप्रेम होने की बात कहते हैं। यह सही है कि बाद में विदेशी शासकों ने यहा आक्रमण किया और फिर उनका राज्य भी आया। मगर भारत और उसकी संस्कृति अक्षुण्ण रही। इसका अर्थ यह है कि 15 अगस्त को भारत ने केवल राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त की और कालांतर वैसे ही महत्व भी माना गया। स्वतंत्रता के बाद भारतीय अध्यात्मिक को तिरस्कृत कर पश्चिम से आये विचारों को न केवल अपनाया गया बल्कि उनको शैक्षणिक पाठ्यक्रमों से जोड़ा भी गया। हिन्दी में अनुवाद कर विदेशी विद्वानों को महान कालजयी विचारक बताया गया। इससे धीमे धीमे सांस्कृतिक विभ्रम की स्थिति बनी और अब तो यह स्थिति यह है कि अनेक नये नये विद्वान भारतीय अध्यात्मक के प्रति निरपेक्ष भाव रखना आधुनिकता समझते हैं। इसके बावजूद 64 साल के इस में इतिहास की छवि भारत के अध्यात्मिक पक्ष को विलोपित नहीं कर सकी तो इसका श्रेय उन महानुभावों को दिया जाना चाहिए जिन्होंने निष्काम से जनमानस में अपने देश के पुराने ज्ञान की धारा को प्रवाहित रखने का प्रयास किया। यही कारण है कि 15 अगस्त और 26 जनवरी को मनाने तथा भीड़ को अपने साथ बनाये रखने के लिये उनके तरह के प्रयास करने पड़ते हैं जबकि राम नवमी, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और महाशिवरात्रि पर स्वप्रेरणा से लोग उपस्थित हो जाते हैं। एक तरह से इतिहास और अध्यात्मिक धारायें प्रथक प्रथक हो गयी हैं जो कि होना नहीं चाहिए था।

        एक जो सबसे बड़ी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस स्वतंत्रता ने भारत का औपचारिक रूप से बंटवारा किया जिसने इस देश के जनमानस को निराश किया। अनेक लोगों को अपने घरबार छोड़कर शरणार्थी की तरह जीवन पाया। शुरुआती दौर में विस्थापितों को लगा कि यह विभाजन क्षणिक है पर कालांतर में जब उसके स्थाई होने की बात सामने आयी तो स्वतंत्रता का बुखार भी उतर गया। जो विस्थापित नहीं हुए उनको देश के इस बंटवारे का दुःख होता है। विभाजन के समय हुई हिंसा का इतिहास आज भी याद किया जाता है। यह सब भी विस्मृत हो जाता अगर देश ने वैसा स्वरूप पाया होता जिसकी कल्पना आजादी के समय दिखाई गयी। ऐसा न होने से निराशा होती है पर भारतीय अध्यात्मिक दर्शन इसे उबार लेता है। फिर जब हमारे अंदर यह भाव आता है कि भारत तो प्राचीन काल से है राजा बदलते रहे हैं तब 15 अगस्त की स्वतंत्रता की घटना के साथ जुड़ी हिंसक घटनाओं का तनाव कम हो जाता है।सीधी बात कहें तो हमारे देश के जनमानस वही तिथि या घटना अपनी अक्षुण्ण बनाये रख पाती है जिसमें अध्यात्मिकता का पुट हो। एतिहासिकता के साथ अध्यात्मिकता का भाव हो वरना भारतीय जनमानस औपचारिकताओं में शनै शनै अपनी रुचि कम कर देता है। इसी भाव के कारण दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से राष्ट्रीय पर्वों पर आम जनमानस का उत्साह धार्मिक पर्वों के अवसर पर कम दिखाई देता है। हालांकि अध्यात्मिकता के बिना एतिहासिक घटनाओं के प्रति आम जनमानस अधूरापन दिखाना जागरुक लोगों को बुरा लगता है। हमारे यहां स्वतंत्रता संग्राम में दौरान आज़ादी तथा देश भक्ति का नारा इस तरह लगा कि हमारे यहां पेशेवर अभियान संचालक लोगों की भीड़ को एकत्रित करने के लिये आज भी लगाते हैं। लोगों   के राष्ट्रप्रेम की धारा इस तरह बह रही है कि आज भी स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस तथा गांधी जयंती पर भाव विभोर करने वाले गीत लोगों को लुभाते हैं। जब कोई आंदोलन या प्रदर्शन होता है तो उस समय मातृभूमि का नारा देकर लोगों को अपनी तरफ आकृष्ट करने के प्रयास होते हैं जिनसे प्रभावित होकर लोगों की भीड़ जुटती भी है।


         देश को स्वतंत्रता हुए 64 वर्ष हो गये हैं और इस समय देश की स्थिति इतनी विचित्र है कि धनपतियों की संख्या बढ़ने के साथ गरीबी के नीचे रहने वालों की संख्या उनसे कई गुना बढ़ी है। आर्थिक उदारीकरण होने के बाद तो यह स्थिति हो गयी है कि उच्च मध्यम वर्ग अमीरों में आ गया तो गरीब लोग अब गरीबी की रेखा के नीचे पहुंच गये हैं। आंकड़े बताते हैं कि देश में करोड़पतियों की संख्या में बढ़ोतरी हो गयी है तो समाज के हालत बता रहे हैं कि रोडपति उससे कई गुना बढ़े हैं। इसी कारण विकास दर के साथ अपराध दर भी तेजी बढ़ी है। आधुनिक तकनीकी जहां विकास में योगदान दे रही है तो उसके सहारे अपराध के नये नये तरीके भी इजाद हो गये हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि हमारा देश आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विरोधाभासों के बीच सांसे ले रहा है। स्थिति यह है कि अनेक लोग तो 65 वर्ष पूर्व मिली आजादी पर ही सवाल उठा रहे हैं। अनेक लोग तो अब दूसरे स्वतंत्रता संग्राम प्रारंभ करने की आवश्यकता बता रहे हैं। मातृभूमि की रक्षा के नारे की गूंज इतनी तेज हो उठती है कि सारा देश खड़ा होता है। तब ऐसा लगता है कि देश में बदलाव की बयार बहने वाली है पर बाद में ऐसा होता कुछ नहीं है। वजह साफ है कि राष्ट्र या मातृभूमि की रक्षा नारों

से नहीं होती न ही तलवारें लहराने या हवा में गोलियां चलाने से शत्रु परास्त होते हैं।

नहीं चाहिए मंदिर मस्जिद चाह नहीं गुरुद्वारों की

आज जरुरत हमें देश में वतन के पहरेदारों की

भारत माँ का मुकुट शिरोमणि सुलग रहा है शोलों से

काँप रही है रूह राष्ट्र की उग्रवाद के गोलों से

देश के सामने मौजूद चुनौतियों और विषम परिस्थितियों से द्रढ़ता पूर्वक

मुकाबला करते हुए हमें भारत माँ का कर्ज चुकाना ही होगा. देश हित में अपना पुरुषार्थ दिखाना ही होगा.देश के दुश्मनों और गद्दारों को उनकी औकात बताना ही होगा.

 


Monday 13 August 2012

पंद्रह अगस्त का दिन कहता आजादी अभी अधूरी है.

सपने सच होने बाकी हैं रावी की सपथ न पूरी है.

शहरों के फुटपाथों पर जो आंधी पानी सहते हैं.

उनसे पूछो वो आजादी के बारे में क्या कहते हैं

देश स्वतंत्रता की ६६ वीं वर्षगाँठ मनाने के तैयारी में है. इस अवसर पर हम भी हर्षित और उल्लासित हैं. हम भी देश की कामयाबी का जश्न मनाने को आतुर हैं. लेकिन इस अवसर पर हमें यह भी सोचने की जरुरत है कि आखिर हमारे ही देश के उन लोगों का क्या होगा जिन्हें अभी भी वास्तविक आजादी मिलने की दरकार है. सच कहें तो भारतीय लोकतंत्र का वास्तविक आलोक अब तक उनके पास तक पहुँच ही नहीं पाया है. देश के शोषित. पीड़ित. उपेक्षित. वंचित तथा प्रताड़ित लोग अर्तिक और सामाजिक असमानता का दंश झेलते हुए उसी देश में निवास कर रहे हैं जहां के स्वाधीनता आन्दोलन के नायक महात्मा गाँधी ने सामाजिक समानता और समरसता को ही लोकतंत्र की कामयाबी का आधार बताया था. गाँधी द्वारा बताई गयी यह अवधारणा आज भले ही कुछ लोगों के लिए सत्ता सुख और राजनीतिक कामयाबी का आधार बन रही है लेकिन जिन लोगों के लिए यह अवधारणा बनी  उनका आज भी कोई आधार नहीं है .

ज़माना कुछ ऐसा बदला कि बन्दर शिकंदर हो गए.

जो मिटे इस मुल्क पर वो फोटो कैलेण्डर हो गए.

वर्ष 1947 में आजादी मिलने के बाद देश ने लोकतांत्रिक व्यवस्‍था को अपनाया और भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने की शुरुआत की गई थी। स्वतंत्रता के ६६ वर्ष  बाद ऐसा लगता है कि देश ने लोकतांत्रिक मूल्यों को आत्मसात करने के साथ-साथ कुछेक ऐसी प्रवृत्तियों को भी जन्म दिया है जो कि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए बहुत बड़ा खतरा साबित हो रही हैं। देश के लगभग हर हिस्से में अलोकतांत्रिक व्यवहार और हिंसा का बोलबाला है। मजबूत लोकतांत्रिक विशेषताओं के साथ हमारी सफलता पर हम गर्व कर सकते हैं, लेकिन इसके साथ विरोधाभास यह भी है कि इस व्यवस्था के चलते ‍देश में अलगाववादी प्रवृत्तियाँ बढ़ी हैं और देश के सामने विभाजन के खतरे दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं। लोकतंत्र देश में मजबूत हो रहा है, लेकिन इसके साथ ही असमानता, अशिक्षा, गरीबी, मुखमरी और हिंसा भी बढ़ रही है। आर्थिक और सामाजिक ढ़ाँचा चरमराने लगा है और लोकतांत्रिक व्यवस्था में अनिश्चितताएँ बढ़ रही हैं। हमने स्वतंत्रता के बाद इमरजेंसी जैसा लोकतांत्रिक संकट देखा तो मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किए जाने जैसा सामाजिक चेतना का विस्तार भी। देश में दो बार परमाणु परीक्षण किए गए तो बाबरी मस्जिद का विध्वंस और उसके बाद देश भर में फैली हिंसा ने भी हमें यह सोचने पर विवश किया कि क्या साम्प्रदायिकता के आधार पर देश के विभाजन के बाद भी हमने इससे कोई सबक लिया?

गुजरात में साम्प्रदायिक हिंसा को जो दंश देश झेल चुका है वह अभी भी इस रफ्तार से बढ़ रहा है कि राजनीतिज्ञों के उकसावे के कारण जम्मू-कश्मीर जैसा सीमावर्ती राज्य भी दो अलग-अलग हिस्सों में बँट चुका है।

सेना के बल पर हम इसे एक बनाए रखने में सक्षम हैं लेकिन घाटी के म‍ु्स्ल‍िमों का मुजफ्फराबाद की ओर कूच करना यह बताने के लिए पर्याप्त है कि अलगाववाद इस हद तक बढ़ चुका है कि देश के विभाजन के लिए पाकिस्तान की आईएसआई जैसी बदनाम एजेंसी को कोई खास कोशिश करने की जरूरत नहीं है क्योंकि देश बाँटने के लिए हमारे अपने राजनीतिज्ञ ही काफी हैं।

घाटी में अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन देने और फिर वापस लेने को लेकर समूचे देश में बंद होता है लेकिन घाटी से लाखों कश्मीरी पंडित पलायन करते हैं तो इस पर कोई बंद नहीं होता और न ही संसद, राष्‍ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कोई आवाज उठाई जाती है? क्योंकि देश के सभी छोटे बड़े राजनीतिक अपनी सुविधा, त‍ुष्ट‍िकरण और वोटों की राजनीति से उपर उठ ही नहीं पाते हैं।

देश ने 2002 में गुजरात में भयंकर साम्प्रदायिक हिंसा और मुस्लिम समुदाय के सदस्यों की ह्त्याओं का दौर देखा, लेकिन अल्पसंख्‍यकों के खिलाफ होने वाले अपराधों पर कोई लगाम नहीं लगी? यही बात राजनीतिक, जाति और आर्थिक कारणों से लगातार बढ़ती हिंसा पर भी लागू होती है। इनके रोकथाम का कोई उपाय भी नजर नहीं आता और कोई ऐसा सेफ्टी वाल्व भी नहीं दिखता जोकि इन प्रवृ्त्त‍ियों पर कारगार तरीके से नियंत्रण कर सके।वैसे मोटे तौर स्वतंत्रता के बाद भारत में जो प्रमुख प्रवृत्तियाँ देखी जा सकती हैं वे हैं भारत में तेजी से बढ़ती साम्प्रदायिकता। हिंदुत्व के नाम पर बढ़ रही ताकतें चुनावों तक ही सीमित नहीं हैं वरन् ये देश के सामाजिक और आर्थिक जीवन में भी बाधाएँ खड़ी कर रही हैं। आइये हम सब मिलकर भारत की आजादी और लोकतंत्र को सर्वव्यापी और सर्व स्पर्शी बनाने का संकल्प लें.
जय हिंद
जय भारत 

Saturday 11 August 2012

बाग़ को लूटे माली घर को लूट रहा रखवाला

यह कैसा वक्त है काला

देश में मौजूदा समय में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा बन गया है. विभिन्न पक्षों द्वारा इस मुद्दे को समय समय पर उठाया भी जाता है लेकिन उनके इन प्रयासों का कोई सार्थक नतीजा सामने नहीं आ रहा है. इसका सबसे बड़ा कारन यह है कि भ्रष्टाचार का विरोध करने की उनकी सोच ही विरोधाभाषी है. कई बार तो खुद सवालों से घिरे लोग भी इस मुद्दे पर दूसरों पर ऑंखें तरेरने लगते हैं. जब कि उन्हें आत्म चिंतन और आत्म विश्लेषण करने की जरुरत है. क्यों कि पापी को पत्थर वही मार सकता है जो कभी पाप न किया हो. लेकिन देश में भ्रष्टाचार का विरोध करने के जो भी तरीके अपनाये जा रहे हैं या आन्दोलन किये जा रहे हैं वह नैतिक उद्देश्य से नहीं बल्कि राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित हैं. यही कारण है कि आन्दोलन में निहित जन भावनाओं की जन्म लेने से पहले ही भ्रूण हत्या हो जाती है. राजनीतिग्य समाज के कई मायनों में पथ प्रदर्शक होते हैं लेकिन जब कतिपय राजनीतिग्य ही विदूषक की भूमिका निभाने लगें तो फिर लोकतंत्र और जन भावनाओं का तहस नहस होना स्वाभाविक है. अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के मंत्री शिवपाल यादव ने आर्थिक कदाचार को बदहवा देने वाला एक बयान दिया हलाकि बाद में विवाद बढ़ने पर उन्होंने अपने ही बयान का खंडन कर दिया. अफसरों को चोरे करने के लिए उकसाने वाले अपने बयान को शिवपाल ने भले ही वापस ले लिया हो लेकिन इससे उनके जैसे नेताओं की मानसिकता का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. जब सत्ता के शिखर पर बैठा एक मंत्री भ्रष्टाचर को बदहवा देने वाला ऐसा बयान देगा तो फिर व्यवस्था का तो भगवान् ही मालिक है. उत्तर प्रदेश के लोगों ने बड़ी उम्मीद के साथ समाजवादी पार्टी को सत्ता सौंपी थी लेकिन शायद शिवपाल जैसे मंत्री ही प्रदेश सरकार के फिसड्डी  होने की मुख्य वजह हैं.

Friday 10 August 2012

देश की राजनीति में अवसरवादिता का बोलबाला
देश की राजनीति में इन दिनों अवसरवादिता का जबरदस्त बोलबाला नजर आ रहा है. आदर्शों सिद्धांतों और मूल्यों को टाक पर रखकर शायद राजनीति को सत्तासुख और जेबें भरने का आधार समझ लिया गया है. हलाकि देश की राजनीति में कुछ अच्छे लोग भी हैं लेकिन परिस्थिति जन्य कारणों के चलते वह हासिये पर हैं. अब हम कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा की ही बात करें तो वह भाजपा में भले ही दबाव की राजनीति करने में सफल रहते हों लेकिन यदि देश हित में उनके बारे में बात की जाये तो उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को कैसे नजर अंदाज किया जा सकता है. यह बात अलग है की दक्षिण भारत में पहली बार कमल खिलाने वाले येदियुरप्पा के दागी होने के बावजूद भाजपा में उन्हें तबज्जो मिल रही है लेकिन आखिर भ्रष्टाचार तो भ्रष्टाचार ही होता है. वहीँ दूसरी ओरलोकायुक्त अदालत ने भद्रावती में भूमि को गैर अधिसूचित करने के मामले में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येद्दयुरप्पा और उनके पुत्र के खिलाफ विस्तृत जांच का आदेश दिया है। वहीं, येद्दयुरप्पा ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर जमानत की एक शर्त से छूट की गुहार लगाई है। इस पर अदालत ने सीबीआइ से 13 अगस्त तक जवाब मांगा है। पूर्व मुख्यमंत्री बेंगलूर जाने से पहले कोर्ट की अनुमति लेने की शर्त से छूट चाहते हैं। कथित भूमि घोटाले में लोकायुक्त कोर्ट जज एनके सुधींद्र राव ने लोकायुक्त डीएसपी नाहद को विस्तृत जांच कर 31 अगस्त तक रिपोर्ट देने को कहा। शिकायतकर्ता विनोद बी ने इस मामले में येद्दयुरप्पा, उनके सांसद बेटे बीवाई राघवेंद्र और पांच अन्य को आरोपी बनाया है। आरोप है कि येद्दयुरप्पा ने पद का दुरुपयोग करते हुए 2010 में भद्रावती की 69 एकड़ भूमि को गैर अधिसूचित किया। विनोद बी ने शिकायत में यह भी कहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री ने भूमि को गैर अधिसूचित करने के दो माह बाद ही बेनामीदारों की मदद से उसे धवलगिरि प्रापर्टीज के नाम करा दिया। उनका कहना है कि 2010-11 में भद्रावती स्थित रिजर्व फॉरेस्ट की 250 एकड़ भूमि गैर अधिसूचित कर येद्दयुरप्पा ने बेहिसाब संपत्ति कमाई। वास्तव में राजनीति में पद और प्रभाव के दुरूपयोग का ऐसा शर्मनाक दौर शुरू हुआ है क़ि अब देश का भगवान् ही मालिक है.

संवेदन हीनता के चलते ऐसे ही पलता रहेगा कसाब
देश में जब तक संवेदन हीनता और गैर जिम्मेदारी का दौर चलता रहेगा तब तक देश में आतंकवाद तो बढ़ता ही रहेगा साथ ही कसाब जैसे आतंकियों का पालन पोषण भी होता रहेगा. देश में एक तरफ तो तमाम लोगों को दो वक्त की रोटी नहीं मिलती वहीं कसाब की खातिरदारी में अब तक करोड़ों रुपये खर्च कर दिए गए. उधर मुंबई पुलिस की अपराध शाखा ने गुरुवार की रात अबू जुंदाल का यहां आर्थर रोड जेल में पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब से सामना कराया। दोनों करीब डेढ़ घंटे तक एक-दूसरे के सामने रहे। कसाब ने जुंदाल की पहचान करते हुए उसे मुंबई आतंकी हमले के प्रमुख साजिशकर्ताओं में से एक बताया।गौरतलब है कि मुंबई पुलिस की अपराध शाखा ने महाराष्ट्र सरकार से कसाब और जुंदाल को आमने-सामने करने की अनुमति मांगी थी। अनुमति मिलते ही पुलिस जुंदाल को उच्च सुरक्षा वाले आर्थर रोड जेल लेकर आई जहां कसाब बम निरोधी अंडाकार सेल में बंद है। गत 21 जुलाई को दिल्ली से मुंबई लाए गए इंडियन मुजाहिदीन के आतंकी जैबुद्दीन अंसारी उर्फ अबू जुंदाल से मुंबई पुलिस अब तक पूछताछ करती रही है। उससे मिली कई जानकारियों की पुष्टि अब वह कसाब से करना चाहती है। इसलिए पुलिस ने दोनों का एक दूसरे से आमना-सामना कराया। वर्ष 2008 के 26/11 को हुए मुंबई हमले के दौरान जिंदा गिरफ्तार कसाब एकमात्र पाकिस्तानी आतंकी है। उसे निचली अदालत और हाई कोर्ट से फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। कसाब ने मुकदमे के दौरान जुंदाल का नाम अपने हिंदी शिक्षक के रूप में लिया था। उसने यह भी कहा था कि जुंदाल उसे व उसके नौ साथियों को मुंबई हमले के लिए 23 नवंबर, 2008 को कराची समुद्रतट तक छोड़ने भी आया था जबकि जुंदाल ने इससे इन्कार किया है। मुंबई पुलिस जुंदाल और कसाब के जरिए मुंबई हमले में पाकिस्तान की भूमिका और स्पष्ट कराना चाहती है। पुलिस भले ही अपनी जिम्मेदारी निभा रही है लेकिन देश का राजनीतिक नेतृत्व तो वैचारिक शून्यता का शिकार है. ऐसे में कसाब जैसे आतंकी कब दण्डित होंगे यह विचारणीय विषय है.

पराक्रम और न्याय प्रियता के  पर्याय श्री कृष्ण
जन्माष्टमी का पवन पर्व भारतीय संस्कृति की पुरातन परंपरा पर आधारित है. आज देश में मची उथल पुथल के बीच श्री कृष्ण का फिर जन्म लेना जरुरी है. जहाँ कंशों . शिशुपालों और जरासंधों की फ़ौज कड़ी है. आज हर देश वाशी को श्री कृष्ण जैसा पराक्रम और न्याय प्रियता का प्रदर्शन करने की जरुरत है.भागवत महापुराण के दशम स्कंध में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के विषय में उल्लेख मिलता है- "जब परम शोभायमान और सर्वगुण संपन्न घड़ी आई, चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र में आया। आकाश निर्मल तथा दिशाएं स्वच्छ हुई, महात्माओं के मन प्रसन्न हुए, तब भाद्रपद मास की कृष्णपक्ष अष्टमी की मघ्य रात्रि में चतुर्भुज नारायण वासुदेव-देवकी के समक्ष बालक के रू प में प्रकट हुए।" अर्थात् भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि में रोहिणी नक्षत्र में हुआ।
इसी स्कंघ के अनुसार गर्गाचार्य ने इनका नामकरण संस्कार करते हुए इनका नाम "कृष्ण" रखा और कहा- "इस बालक के नामाक्षर बड़े अच्छे हैं, पांच ग्रह उच्च क्षेत्र में है। मात्र राहु ही बुरे स्थान में है। गर्गाचार्य ने बताया कि जिसके सप्तम स्थान में नीच का राहु होता है, वह पुरूष कई çस्त्रयों का स्वामी होता है।
श्रीकृष्ण सोलह कलाओं में प्रवीण थे। इन्होंने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया और महाभारत के युद्ध में पाण्डवों को विजय दिलाई। आइए इनकी जन्म कुंडली के माघ्यम से यह जानें कि किन योगों के कारण यह सोलह कलाओं में प्रवीण बनें।
भगवान श्रीकृष्ण की कुंडली में उच्च का चंद्रमा लग्न में "मृदंग योग" बना रहा है। इस योग के परिणाम स्वरू प ही कृष्ण शासनाधिकारी बने। सात राशियों में समस्त ग्रह "वीणा योग" का निर्माण कर रहे हैं। इस योग की वजह से ही कृष्ण गीत, नृत्य, संगीत में प्रवीण बनें। इसी के माघ्यम से महारास जैसा आयोजन सम्पन्न कराया। कुंडली में "पर्वत योग" इन्हें यशस्वी व तेजस्वी बना रहे हैं, तो उच्च के लग्नेश व भाग्येश ने "लक्ष्मी योग" बनाकर धनी व पराक्रमी बनाया। बुध अस्त होकर भी यदि उच्च का हो तो "विशिष्ट योग" बनता है। ये योग इन्हें कूटनीतिज्ञ व विद्वान बना रहा है। बलवान लग्नेश व मकर राशि का मंगल "यशस्वी योग" बनाकर युगयुगांतर तक इन्हें आदरणीय व पूजनीय बना रहे हैं। वहीं सूर्य से दूसरा ग्रह बुध व बुध से एकादश चंद्र या गुरू हो, तो "भास्कर योग" का निर्माण होता है। यह योग ही श्रीकृष्ण को पराक्रमी, भगवान के तुल्य सम्मान शास्त्रार्थी, धीर और समर्थ बना रहे हैं। इसके अलावा कई अन्य महžवपूर्ण योग इनकी कुंडली में हैं। ऋणात्मक प्रभावकारी "ग्रहण योग" ने इनके जीवन में कलंक भी लगाया। इस योग के प्रभाव स्वरूप ही कृष्ण ने अपने मामा का वध कर बुरा कार्य किया, तो स्यमंतक मणि के चोरी का झूठे कलंक का सामना भी इन्हें करना पड़ा। ग्रहों की स्थिति का आकलन करें, तो उच्च के लग्नेश लग्न भाव में निरोग व दीर्धायु [युग-युगांतर तक याद किए जा रहे हैं] बना रहे हैं। द्वितीयेश बुध पंचम भाव में प्रसिद्धि दिलाते हैं, लेकिन आखिरी समय में परेशानी भी देते हैं। इनके सामने ही इनके समस्त कुल का नाश हुआ। तृतीयेश चंद्रमा लग्न में केतु के साथ होने से स्वजनों से दूर रखते हैं। इनका अधिकांश समय घर से बाहर व युद्ध क्षेत्र में ही बीता था। चतुर्थेश या सुखेश स्वग्रही सूर्य मातृ भूमि से दूर रखते हैं। परिणाम स्वरूप जन्म होते ही श्रीकृष्ण को अपनी जन्मस्थली से दूर ले जाया गया व आजीवन उस जगह नहीं आ पाए। पंचमेश यदि पंचम भाव में हो तो सच्चरित्र पुत्रों का पिता, चतुर व विद्वान बनाते हैं, चतुराई में तो भगवान श्रीकृष्ण की कहीं कोई सानी ही नहीं है। षष्ठेश शुक्र छठे भाव में शत्रुहत्ता, योगीराज व अरिष्ट नाशक बनाते हैं। सप्तमेश नवम भाव में उच्च के मंगल स्त्री सुख में परिपूर्ण व रमणियों के साथ रमण करने वाला बनाते हैं। इनके आठ रानियां- रूक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती, सत्या, कालिंदी, भद्रा, मित्रबिन्दा व लक्ष्मणा थीं। साथ ही राहु सप्तम में होने से नरकासुर के चंगुल से छुड़ाई 16000 राजकुमारियों ने भी इन्हें ही अपना पति माना। अष्टमेश सहज भाव में सहोदर रहित करते हैं। इनके कोई भी सहोदर जीवित नहीं बचा। बलराम से इनके सामान्य संबंध थे। भाग्येश शनि के छठे भाव में उच्च का होकर भी इन्हें रणछोड़दास बनाया। वहीं दशमेश छठे भाव में जाकर आजीवन शत्रुओं द्वारा परेशान कराते रहे। बाल्यावस्था भी तकलीफ में गुजारी, एकादशेश गुरू जहां लक्ष्मीवान व सुखी कर रहे हैं, तो व्ययेश उच्च के मंगल में दान की प्रेरणा व लंबी-लंबी यात्राएं इन्हें आजीवन  कराते रहें।
ऎसे योगेश्वर कृष्ण की आराधना हमें नित्य प्रति करने से लाभ होता है। जहां इनका पूजन होता है, वहां समृद्धि, सुख व समस्त वैभव मौजूद रहते हैं।
कृष्ण जन्माष्टमी की सब को हार्दिक शुभ कामनाएं.

Thursday 9 August 2012

राजनीति में शिष्टाचार कायम रखें

संसद में भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवानी द्वारा यूपीए को नाजायज कहे जाने पर खासा बवाल हुआ और अंत में आडवाणी को अपने शब्द वापस लेने पड़े. इससे पहले भी कई बार ऐसा हुआ है कि आडवानी को खुद ही अपनी बातों से शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है. हलाकि सांसदों की खरीद फ़रोख्त के मामले में आडवानी का कथन सही भी है लेकिन फिर भी पूरे कुनबे को ही नाजायज कहना ठीक नहीं है. राजनीति में शिष्टाचार कायम रखा जाना चाहिए. उधर संसद में संप्रग अध्यक्ष के आक्रामक व्यवहार पर भाजपा ने आरोप लगाया कि सोनिया ने अपने सदस्यों को शोरशराबे के लिए उकसाकर गलत नेतृत्व दिया है। भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने कहा, 'जब मांझी ही नाव डुबाएगा तो कांग्रेस को कौन बचा सकता है।' प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, आडवाणी के बयान को अशोभनीय करार देने वाले प्रधानमंत्री को 2जी और राष्ट्रमंडल जैसे घोटाले में शामिल कांग्रेसी सदस्यों के व्यवहार पर कोई अफसोस नहीं है। शाहनवाज ने माना कि आडवाणी के बयान में थोड़ी चूक हो गई थी, जिसे उन्होंने वापस भी ले लिया। लेकिन, सोनिया ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी जिसमें सदन की कार्यवाही चलना मुश्किल था। वह अपने सदस्यों को शांत करने के बजाय उन्हें आगे आने के निर्देश दे रही थीं जो आपत्तिजनक है। उन्होंने नेतृत्व की गलत परंपरा दी है। शाहनवाज ने कहा कि प्रधानमंत्री आदत के अनुसार संसद में चुप रहते हैं, लेकिन बाहर बोलते हैं। जबकि, संसदीय कार्यमंत्री का व्यवहार नेता की बजाय छोटे कार्यकर्ता की तरह होता है जो सदन चलाने के बजाय उसे बाधित करने में जुटे रहते हैं। राजनेता कई मायनों में समाज के पथ प्रदर्शक होते हैं इस द्रष्टि से उनमे तो शालीनता होनी ही चाहिए.

रामदेव भी राजनीति में हाथ आजमायें

रामदेव की राजनितिक महत्वाकांक्षा को ध्यान में रखकर यह कहना मुनासिब होगा कि उन्हें भी राजनीतिक पार्टी बनाकर राजनीति में हाथ आजमाना चाहिए. ताकि राजनीतिक गलियारे में वक्त के थपेड़े पड़ने पर उनका भी मुगालता दूर हो जाये. वह लोगों को योग सिखाएं नेता गिरी करें कुछ भी गलत नहीं है लेकिन वह देश के अन्दर जो अराजकता का माहौल निर्मित करने की कोशिश करते रहते है, उसे किसी भी द्रष्टि से उचित नहीं माना जा सकता. भाजपा तो रामदेव के सामने इसलिए दंडवत है क्यों कि वह कांग्रेस को गली देते हैं कांग्रेसियों को भला बुरा कहते हैं. रामदेव के रामलीला मैदान में गुरुवार से शुरू हो रहे आंदोलन में टीम अन्ना हिस्सा लेगी या नहीं अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है। वहीं टीम अन्ना के मुताबिक उन्हें इस आंदोलन में शामिल होने के लिए कोई निमंत्रण नहीं मिला है। हालांकि अन्ना के सहयोगियों में सिर्फ किरण बेदी ने बाबा का खुलकर समर्थन किया है.अहमदाबाद में मौजूद रामदेव ने बुधवार को लोगों से दिल्ली के रामलीला मैदान के अलावा देशभर के जिलों और तहसीलों में भ्रष्टाचार के खिलाफ जुलूस व पदयात्राएं निकालने की अपील की है। पिछले हफ्ते बीच में ही खत्म हुए अन्ना के आंदोलन का नाम लिए बिना उन्होंने इस पर कटाक्ष करते हुए कहा,'जन आंदोलनों की ज्वाला अभी बुझी नहीं है। बल्कि यह अब पूरे देश की सड़कों पर दिखाई देगी।'अन्ना के करीबी सूत्रों के मुताबिक रामदेव के आंदोलन में अन्ना के भाग लेने की उम्मीद कम ही है। एक तो अनशन के बाद से उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है। दूसरे अब वे बाबा को लेकर पहले की तरह उत्साहित भी नहीं हैं। इसकी एक वजह जंतर-मंतर पर अन्ना आंदोलन के शुरुआती दिनों में रामदेव की ओर से उनका मजाक उड़ाने को भी माना जा रहा है। जहां बाबा ने अन्ना आंदोलन को ऑक्सिजन दी थी वहीं उन्होंने अन्ना को कटाक्ष करते हुए यह भी कहा था कि कोई भी आंदोलन तभी सफल होता है जब उसे पूरा जन समर्थन मिले। नरेंद्र मोदी की तारीफ और कंट्टरवादी हिंदू नेताओं से रामदेव की नजदीकी के कारण भी अन्ना उनके साथ नहीं दिखना चाहते। अन्ना के सहयोगी सुरेश पठारे ने माना कि अब तक बाबा की ओर से न तो न्योता आया है और न ही कोई बातचीत हुई। अरविंद केजरीवाल पहले ही साफ कर चुके हैं कि रामदेव की तरफ से कोई निमंत्रण नहीं मिला है। रामदेव ने पिछले साल रामलीला मैदान में ही बेमियादी अनशन शुरू किया था। बाद में दिल्ली पुलिस ने बल प्रयोग कर अनशन स्थल को खाली करवा लिया था। तब पुलिस ने रामदेव को महिला के कपड़ों में भागते हुए पकड़ लिया था। रामदेव का यह आंदोलन ऐसे समय में शुरू होगा, जब उनके सबसे करीबी सहयोगी आचार्य बालकृष्ण फर्जी पासपोर्ट के आरोप में जेल में बंद हैं।

मध्यप्रदेश में बेख़ौफ़ खनन माफिया

विपुल प्राक्रतिक संसाधनों और विकास की अपर संभावनाओं से परिपूर्ण मध्यप्रदेश पर आजकल खनन माफियाओं की गिद्ध द्रष्टि लग गयी है. और फिर जब इन खनन माफियाओं को सत्ता का संरक्षण मिल जाये तो स्थिति की विभीषिका का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. मध्यप्रदेश में सत्ता मित्र की भूमिका निभा रहे खनन माफियाओं ने यहाँ की आबोहवा पर ऐसा कहर बरपाया है कि सत्ता का हर शिरोमणि उनके इशारों पर ही नाचता नजर आया है. वर्तमान में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अगर खनन माफियाओं का सबसे बड़ा सरगना कहा जाये तो कोई अतिसंयोक्ति नहीं होगी क्यों के प्रदेश की जनता की भलाई और पर्यावर्णीय भविष को टाक पर रखकर उन्होंने खनन माफियाओं के साथ इस कदर जुगल बंदी दिखाई है कि खुद उनके ही गृह जिले सीहोर में ही बे खौफ और बेशर्म माफिया ने धरती का सीना चीरकर करोडो अरबों का अवैध उत्खनन किया है. अपने धन बल की बदौलत त्याग तपस्या और बलिदान का नारा देकर सुशासन का झूठा राग अलापने वाले प्रदेश की सत्ता के शिरोमणि खुद ही उक्त खनन माफियाओं के सामने लोटांगन करते नजर आ रहे हैं. जय श्री राम कहिये और लूटपाट करिए की अवधारणा का शत प्रतिशत पालन करने वाले प्रदेश के सत्ता धारी किसी भी कीमत पर इन माफियाओं पर नकेल कसने के पक्ष में नहीं है. क्यों कि इससे उनको होने वाली काली कमाई और उनके आकाओं के भी होने वाले वित्त पोषण का दौर जो ख़त्म हो जायेगा. यह कहना भी अतिशंयोक्ति नहीं होगा कि प्रदेश में बढ़ते अपराधों की मुख्य वजह भी खनिज माफिया ही हैं.

Wednesday 8 August 2012

सुधांशु द्विवेदी
बाढ़ प्रभावितों को मिले हर संभव मदद
मध्यप्रदेश में भारी बारिश ने कई क्षेत्रों में कहर बरपाया है. ऐसे में यह जरुरी है की दृढ इच्छा शक्ति और प्रशासनिक कौसल का परिचय देते हुए अति वृष्टि प्रभावितों के हर संभव मदद की जाये. प्रायः देखने में अत है की प्राकृतिक आपदा की स्थिति में सारी व्यवस्था लापरवाही और लालफीताशाही की भेंट चढ़ जाती है. ऐसे में भले ही प्राक्रतिक आपदाओं पर किसी का नियंत्रण न हो लेकिन तत्परता पूर्वक पहल करने से स्थिति की विभीषिका को काफी हद तक कम किया जा सकता है.मध्य प्रदेश में पिछले तीन दिनों में मूसलाधार बारिश की वजह से पैदा हुई बाढ़ की स्थिति में बारिश की वजह से अबतक 23 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। हालांकि फसलों को अधिक नुकसान नहीं हुआ है। राज्य शासन के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) इंद्रनील शंकर दाणी के अनुसार ज्यादा बारिश और बाढ़ का सबसे ज्यादा प्रकोप होशंगाबाद, हरदा, रायसेन, विदिशा और सीहोर जिले पर हुआ है, जबकि होशंगाबाद के सेठानी घाट पर नर्मदा नदी गत 06 अगस्त को खतरे के निशान से पांच फुट ऊपर बह रही थी, जो बुधवार को नीचे आ गई है। राहत और बचाव कार्य के लिए प्रशासन ने सेना की एक टुकड़ी को बुलाया था, जिसे स्थिति बेहतर होने, बचाव और राहत कार्य नियंत्रण में आने के बाद वापस कर दिया गया है।

उन्होंने बताया कि प्रदेश में हालात अब तेजी से सुधर रहे हैं। इन सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में मंगलवार से बारिश का सिलसिला थमा हुआ है। वर्षाजनित हादसों से अब तक 23 लोगों की मौत हुई है। वहीं, 245 पशुओं की मौत और 947 मकान भी क्षतिग्रस्त हुए हैं। सोलह जिलों में 85 सड़कें और छह नैशनल हाइवे और चार पुल-पुलियों को नुकसान हुआ है। बाढ़ और बारिश से लगभग 14 करोड़ रुपए की क्षति का अनुमान है
प्रदेश में जिस तरह बाढ़ के हालत निर्मित हुए हैं यह एक चुनौती है. जिससे पूरी मुस्तैदी पूर्वक निपटा जाना चाहिए

देश की अस्मिता पर हमला है असम में हिंसा

बांग्लादेश से आकर असम में बसे लोगों और असमियों के बीच जारी जातीय हिंसा में अब तक 73 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि चार लाख से अधिक लोग बेघर हो गए हैं। निचले असम के जिलों में हिंसा की ताजा घटना होने की खबरें हैं। इस हिंसा में अब बाहरी तत्वों ने भी दखल देना शुरू कर दिया है जिससे हिंसा और बढ़  गई है। इस हिंसा को साम्प्रदायिक रूप न देते हुए इसे विदेशियों द्वारा भारत के अस्मिता पर हमला करार दिया जाना चाहिए.सरकार पहले ही इन दंगों की सीबीआई से जांच की बात कह चुकी है। मुख्यमंत्री ने बिगड़े हालात के लिए अंदरूनी और देश के बाहरी दोनों तरह की ताकतों को जिम्मेदार बताया है। सूत्रों ने  ने बताया कि, हिंसा से सबसे ज्यादा प्रभावित कोकराझार जिले में सोमवार रात तीन लोगों की मौत हो गई और दो अन्य घायल हो गए। घटना रानीबुली गांव की है जहां कुछ लोगों ने इन पर फायरिंग कर दी थी।


घायलों को गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया गया है। इसके अलावा पड़ोसी चिरांग जिले में भी मंगलवार को एक शख्स की लाश मिली है। इन तीन व्यक्तियों के मारे जाने पर हत्या के विरोध में लगभग 500 लोगों के एक समूह ने बेलटोली में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 31 को बंद कर दिया। कोकराझार में फिर से बेमियादी कर्फ्यू लगा दिया गया है। चिरांग में 24 घंटों का कर्फ्यू जारी है। कोकराझार, चिरांग और धुबरी जिलों में सुबह के समय सेना का फ्लैग मार्च चल रहा है।


इसी बीच मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने कहा, मैंने राज्य में हुई हिंसा की जांच सीबीआई से करने की सिफारिश की है। अब इस मामले में अंतिम फैसला केंद्र को लेना है। प्रेस के सवाल पर गोगोई ने कहा, राज्य की बिगड़ी दशा के लिए आंतरिक और बाहरी ताकतें जिम्मेदार हैं। इस बारे में और ज्यादा ब्यौरा दिए बिना मुख्यमंत्री ने कहा कि सीबीआई जांच में यह सब साफ हो जाएगा।


असम में हिंदू-मुसलमान का झगड़ा नहीं : दिल्ली में असम हिंसा पर एक परिचर्चा के दौरान भाजपा प्रेजिडेंट नितिन गडकरी ने कहा कि असम में हो रही घटनाएं हिंदू-मुस्लिम संघर्ष नहीं है, इसे इस तरह का सांप्रदायिक जामा पहनाना कतई सही नहीं है। यह संघर्ष भारतीयों और विदेशी घुसपैठियों के बीच है। असल में यह हिंदुस्तानियों और विदेशी घुसपैठियों के बीच का संघर्ष है। देश को बचाने के लिए बोडोलैंड में विदेशी घुसपैठियों का जमकर मुकाबला किया जा रहा है।  असम की हिंसा के मुद्दे पर कार्यस्थगन प्रस्ताव को लेकर भाजपा सदस्यों के हंगामे के कारण मानसून सत्र के पहले दिन लोकसभा की कार्यवाही शुरू होने के करीब 20 मिनट बाद दोपहर 12 बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई और प्रश्नकाल नहीं चल सका। भाजपा के सदस्य असम की हिंसा के मुद्दे पर कार्यस्थगन प्रस्ताव को लेकर हंगामा करने लगे। असम के कोकराझार से बीपीएफ सदस्य एसके विश्वमुथियारी ने भी अध्यक्ष के आसन के समीप आकर विरोध दर्ज कराया। इस बीच आंध्रप्रदेश के तेलंगाना से कांग्रेस के सदस्य भी अपने स्थानों पर खड़े होकर अलग प्रदेश की मांग को लेकर नारेबाजी करने लगे। हंगामा थमता नहीं देख अध्यक्ष मीरा कुमार ने सदन की कार्यवाही दोपहर 12 बजे तक के लिए स्थगित कर दी। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई की मांग पर केंद्र ने असम में जारी सांप्रदायिक हिंसा की जांच करने के लिए गुरुवार को असम के हिंसाग्रस्त इलाकों में सीबीआई की टीम भेजने का फैसला लिया है। सूत्रों ने बताया कि बुधवार को गोगोई ने केंद्र से हिंसा की सीबीआई जांच की मांग की थी। इस पर केंद्र ने सीबीआई टीम भेजने का फैसला लिया है।असम हिंसा में बाहरी तत्व भी शामिल : असम के कोकाराझार व चिरांग जिलों में पिछले महीने भड़की हिंसा में बाहरी तत्वों का हाथ होने का संकेत देते हुए राज्य सरकार ने मंगलवार को कहा कि बोडो जनजाति तथा बांग्लादेशी मुसलमानों के बीच भड़की हिंसा के पीछे बाहरी व आंतरिक तत्वों का हाथ था। हिंसा बोडोलैंड टेरिटोयिल एरिया डिस्ट्रिक्ट (बीटीएडी) के कोकराझार तथा चिरांग जिले से शुरू हुई थी, जो बाद में धुबरी जिले तक पहुंच गई।  यह कायराना हरकत देश की अस्मिता को खुली चुनौती है तथा इस पर दलगत राजनीती से ऊपर उठकर प्रतिक्रिया व्यक्त की जनि चाहिए.


वर्तमान हालात का प्रतिबिम्ब है अडवाणी का बयान
भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा संसद में यूपीए को भले ही चाहे नाजायज न कहा गया होता लेकिन यदि उन्होंने यूपीए सरकार को बचाने में धन बल के इस्तेमाल का हवाला दिया है तो उसमे गलत क्या है. आडवाणी का यह बयान तो देश के वर्तमान राजनीतिक हालात का प्रतिबिम्ब है. यहाँ यह उल्लेखनीय है कि संसद के मॉनसूत्र सत्र के पहले दिन असम हिंसा पर चर्चा के दौरान बीजेपी के सीनियर लीडर लालकृष्ण आडवाणी के यूपीए-2 सरकार को पैसों के बल पर बचाने के बयान पर हंगामा खड़ा हो गया। आडवाणी के बयान पर यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी गुस्से से तमतमा गईं। उन्होंने आडवाणी के बयान का जोरदार तरीके से विरोध किया। सोनिया गांधी पहली बार सदन में इतने गुस्से में दिखीं। दरअसल, आडवाणी ने असम हिंसा पर चर्चा के बीच में अचानक कहा कि यूपीए-1 सरकार चुनाव जीतकर बनी, लेकिन यूपीए-2 सरकार को पैसे देकर बचाया गया। आडवाणी का इतना कहना था कि सदन में हंगामा शुरू हो गया। हालांकि, बाद में आडवाणी ने अपना यह विवादित बयान वापस ले लिया। बाद में आडवाणी ने स्पष्ट किया कि उनका आशय जुलाई, 2008 के विश्वास मत को लेकर था, न कि 2009 के चुनाव से। बीजेपी नेता सुषमा स्वराज ने भी आडवाणी के इस बयान पर सफाई दी। उन्होंने कहा, 'आडवाणी ने यूपीए सरकार को असंवैधानिक नहीं कहा। उन्होंने यह बात स्वीकार भी की है। उन्होंने अपना बयान 2008 के अविश्वास प्रस्ताव के संदर्भ में दिया था।' कांग्रेस और सोनिया गाँधी को उक्त सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए क्यों कि पिछली मर्तबा यूपीए सरकार के शक्ति परीक्षण के दौरान धन बल को जो भोंडा प्रदर्शन संसद में हुआ उससे विश्वभर में भारत की छवि को बट्टा लगा.