Friday 17 August 2012

भारतवंशियों और बांग्लादेशियों के बीच जंग है असम की हिंसा

इछ्ले कुछ समय से असम में हो रहे दंगे और रक्तपात के चलते देश की आवोहवा पर फिर से विपरीत असर पड़ा है. बांग्लादेशियों की घुसपैठ देश की काफी पुरानी समस्या है. इस समस्या के लगातार रौद्र रूप लेने और स्थिति की विभीषिका से वाकिफ होने के बावजूद न तो बंगलादेशी घुश्पैठियो को चिन्हित कर उन्हें यहाँ से निकालने की कोशिश की जा रही है और न ही देश के कानून के आलोक में उनके खिलाफ कोई कार्यवाही हो रही है. तुष्टिकरण और वोट की राजनीति ही इसके लिए प्रमुखता के साथ जिम्मेदार है. क्यों कि वोट बैंक को ध्यान में रखकर ही इन बांग्लादेशी घुश्पैथियों को सहेजकर रखा जा रहा है. भले ही इनकी उपद्रवी गतिविधियों के चलते पुरे देश में आग लग जाये. अब असम के साथ कर्नाटक जैसे अन्य राज्यों का माहौल भी इन हिंसात्मक गतिविधियों के चलते खराब हो रहा है. कर्नाटक में तो असुरक्षा के चलते लोगों का पलायन ही शुरू हो गया है.

पूर्वोत्तर के लोगों पर कर्नाटक सरकार की अपीलों और आश्वासनों का कोई असर नहीं पड़ा है और हमलों की अफवाहों के चलते आज तीसरे दिन भी राज्य से उनका पलायन जारी है। पलायन अब तक बेंगलुरु तक ही सीमित था, लेकिन अब अब मैसूर, मंगलूर और कोडागू जैसे बाकी क्षेत्रों से भी पूर्वोत्तर के लोग राज्य छोड़कर जा रहे हैं। लोग यहां ट्रेनों और बसों के जरिए पहुंच रहे हैं और टिकट खरीदने के लिए रेलवे काउंटरों पर भीड़ लगी है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि पिछले दो दिन में अफवाहों के चलते 15 हजार से ज्यादा लोग शहर छोड़कर जा चुके हैं। अनुमान के मुताबिक बेंगलुरु में रहने वाले पूर्वोत्तर के लोगों की संख्या ढाई से पौने तीन लाख के बीच है। इनमें छात्र भी शामिल हैं। बड़ी राजनीतिक चतुराई के साथ इन हिंसात्मक गतिविधियों को साम्प्रदायिक दंगों का नाम दिया जा रहा है. जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.


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