Thursday 9 August 2012

राजनीति में शिष्टाचार कायम रखें

संसद में भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवानी द्वारा यूपीए को नाजायज कहे जाने पर खासा बवाल हुआ और अंत में आडवाणी को अपने शब्द वापस लेने पड़े. इससे पहले भी कई बार ऐसा हुआ है कि आडवानी को खुद ही अपनी बातों से शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है. हलाकि सांसदों की खरीद फ़रोख्त के मामले में आडवानी का कथन सही भी है लेकिन फिर भी पूरे कुनबे को ही नाजायज कहना ठीक नहीं है. राजनीति में शिष्टाचार कायम रखा जाना चाहिए. उधर संसद में संप्रग अध्यक्ष के आक्रामक व्यवहार पर भाजपा ने आरोप लगाया कि सोनिया ने अपने सदस्यों को शोरशराबे के लिए उकसाकर गलत नेतृत्व दिया है। भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने कहा, 'जब मांझी ही नाव डुबाएगा तो कांग्रेस को कौन बचा सकता है।' प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, आडवाणी के बयान को अशोभनीय करार देने वाले प्रधानमंत्री को 2जी और राष्ट्रमंडल जैसे घोटाले में शामिल कांग्रेसी सदस्यों के व्यवहार पर कोई अफसोस नहीं है। शाहनवाज ने माना कि आडवाणी के बयान में थोड़ी चूक हो गई थी, जिसे उन्होंने वापस भी ले लिया। लेकिन, सोनिया ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी जिसमें सदन की कार्यवाही चलना मुश्किल था। वह अपने सदस्यों को शांत करने के बजाय उन्हें आगे आने के निर्देश दे रही थीं जो आपत्तिजनक है। उन्होंने नेतृत्व की गलत परंपरा दी है। शाहनवाज ने कहा कि प्रधानमंत्री आदत के अनुसार संसद में चुप रहते हैं, लेकिन बाहर बोलते हैं। जबकि, संसदीय कार्यमंत्री का व्यवहार नेता की बजाय छोटे कार्यकर्ता की तरह होता है जो सदन चलाने के बजाय उसे बाधित करने में जुटे रहते हैं। राजनेता कई मायनों में समाज के पथ प्रदर्शक होते हैं इस द्रष्टि से उनमे तो शालीनता होनी ही चाहिए.

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