Saturday 29 September 2012

प्रतिष्ठा को संभाल नहीं पाए अन्ना

जन लोकपाल कानून बनाने की मांग को लेकर आन्दोलन करने वाले समाजसेवी अन्ना हजारे अपनी प्रतिष्ठा और बढती हुई लोकप्रियता को संभालने में विफल रहे. यही कारण है कि अन्ना का आन्दोलन अब बीते समय का घटनाक्रम बनकर रह गया है. अन्ना के आन्दोलन की विफलता के लिए उनकी संवैधानिक प्रावधानों के प्रति अनभिज्ञता और संवैधानिक मूल्यों के प्रति उनका अनादर का भाव तो जिम्मेदार है ही. साथ ही अन्ना के वह साथी भी इस विफलता के लिए बराबर के जिम्मेदार हैं. जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र को अपने पैरों तले कुचलने की कोशिश की और जिनके अहंकार. संकीर्ण सोच . अनुशासनहीनता और अति महत्वाकांक्षा ने उनकी वैचारिक क्षमता को पंगु बना दिया था. यही कारण है कि राजनीतिक विकल्प देने के मुद्दे पर टीम अन्ना दो फाड़ हो गयी. वही दूसरी ओर अन्ना हजारे ने कहा है कि अपनी मांगों के लिए दबाव डालने के लिए अब वह अनशन का सहारा नहीं लेंगे, बल्कि मुद्दों के लिए आंदोलन करेंगे। हजारे ने कहा कि अब से मैं अनशन नहीं करूंगा। भविष्य में मैं अपने मुद्दों के लिए आंदोलनों का सहारा लूंगा। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले हजारे ने कहा कि वह संसद में साफ सुथरी छवि वाले लोगों को भेजने के लिए कार्य जारी रखेंगे। उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारियों ने भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए उनके आंदोलन में शामिल होने की इच्छा जतायी है। उन्होंने देश के युवाओं में पूरा भरोसा जताते हुए उनसे कहा कि वे देश के भविष्य को लेकर निराशावादी नहीं हों। हजारे ने मजबूत लोकपाल के लिए दबाव बनाने के लिए गत वर्ष तीन बार, दो बार दिल्ली में और एक बार मुम्बई में अनशन किया। वह इस वर्ष जुलाई में एक बार फिर राजधानी दिल्ली में जंतर मंतर पर अनशन पर बैठे थे। इससे पहले भी वह पूर्व में महाराष्ट्र में भ्रष्टाचार और शासन में पारदर्शिता को लेकर कई बार अनशन कर चुके हैं। ऐसे  में अब अन्ना देश में कितना आन्दोलन कर पाएंगे यह कह पाना मुश्किल है. क्यों कि अब उन्हें जन विश्वास अर्जित करने के लिए खासी मसक्कत करनी पड़ेगी .

Friday 28 September 2012



अपनी छवि सुधारे भाजपा

भाजपा के सूरजकुंड अधिवेशन में देश के ताजा राजनीतिक हालात और संप्रग सरकार की कार्यपद्धति को लेकर चर्चा हो रही है. भाजपा के मुख्य विपक्षी पार्टी होने के कारण उसके द्वारा केंद सरकार को आड़े हाथों लेना स्वाभाविक है. लेकिन इसके साथ साथ भाजपा को अपनी छवि सुधारने की भी पहल करनी चाहिए. क्यों कि भाजपा का एक पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एक लाख की रिश्वत लेने के आरोप में जेल की चक्की पीस रहा है.
 बीजेपी ने शुक्रवार को कांग्रेस और यूपीए सरकार पर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने, उसे छिपाने और कैग जैसी संवैधानिक संस्थाओं पर हमले करने का आरोप लगाया। पार्टी ने दावा किया कि देश में हो रहे भौगोलिक, सांस्कृतिक और आर्थिक आक्रमण के इन हालात में वही देश में सुशासन दे सकती है.बीजेपी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में पारित राजनीतिक प्रस्ताव में 2004 में हुए कोयला ब्लॉक आवंटन के मामले में प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग दोहराई गई है और सभी 142 खदानों के आवंटन को निरस्त करते हुए इस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराने की मांगी की गई है.सीनियर पार्टी नेता मुरली मनोहर जोशी ने प्रस्ताव को रखते हुए कांग्रेस पर कैग जैसी संवैधानिक संस्थाओं पर हमले करने का आरोप लगाया और कहा, 'अगर कैग जैसी संस्थाएं खत्म हो गईं तो जनतंत्र खत्म हो जाएगा।' उन्होंने कांग्रेस नीत सरकार पर संवैधानिक संस्थाओं को नष्ट करने का आरोप लगाते हुए कहा, 'कैग की हैसियत संविधान में भी सुप्रीम कोर्ट के जज की है।'जोशी ने कहा कि मौजूदा सरकार ने पिछले 8-9 साल में जो परिस्थिति पैदा कर दी है वैसा अनुभव आजादी के बाद पहले कभी नहीं आया। हिंदुस्तान की छवि दुनिया में इतनी खराब पहले कभी नहीं हुई। सरकार ने 8 साल में देश को तबाह कर दिया। सरकार लाचार बनी हुई है और यह बड़ी भयानक राजनीतिक स्थिति है.उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचारियों को बचाने की और भ्रष्टाचार को छिपाने व दबाने की कोशिश सरकार की ओर से हो रही है। यह सरकार भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है, भ्रष्टाचार का बचाव करती है और उस ओर इशारा करने पर कैग जैसी संवैधानिक संस्थाओं पर हमले करती है। जोशी ने दावा किया कि भ्रष्टाचार को बनाए रखने के लिए बड़े कॉर्पोरेट हाउसों से लॉबिंग की जाती है। उन्होंने कहा,'भ्रष्टाचार का इतना घिनौना रूप देखने को मिल रहा है कि इस बात के लिए लॉबिंग की जाती है कि कौन मंत्री बनेगा किस मंत्रालय के लिए बनेगा और किसके लिए बनेगा। इसके लिए करोड़ों रुपये का इस्तेमाल होता है।'उन्होंने कहा, 'प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोयला ब्लॉक आवंटन मामले में जिम्मेदारी तो ली लेकिन रिपोर्ट देने वाली संस्था कैग को चुनौती दे डाली। कांग्रेस घोटालों की पोल खुलने पर डीएमके, एनसीपी जैसे सहयोगी दलों को जिम्मेदार ठहराती रही है लेकिन कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले के समय तो चार साल तक कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री के पास था। उनकी नाक के नीचे यह सब होता रहा।'जोशी ने आरोप लगाया, 'सरकार एक हाथ से बाजार को और दूसरे हाथ से सत्ता को संभाल रही है और जनता को कुचल रही है। सरकार चोरी भी कर रही है और सीनाजोरी भी कर रही है। ऐसी सरकार को नैतिक रूप से रहने की इजाज़त नहीं है। यह सरकार भ्रष्टाचारियों द्वारा भ्रष्टाचारियों के लिए भ्रष्टाचारियों की सरकार है। आम लोगों से इसका कोई सरोकार नहीं है।'बीजेपी के पास दृष्टिकोण और समस्याओं का समाधान होने का दावा करते हुए उन्होंने कहा,'एक ही रास्ता है कि जनता को संगठित कर सरकार को बदलने के लिए बीजेपी की सरकार बनाई जाए।' उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी ने अपने बुराड़ी में आयोजित कांग्रेस सम्मेलन में ब्लैक मनी को वापस लाने की घोषणा की थी लेकिन उसे वापस लाना तो दूर यह धन विदेशों में घूमता रहा और उसे सफेद बनाने की इजाजत दी गयी।मुंबई में आजाद मैदान की घटना, असम के दंगों, उत्तर प्रदेश के अनेक शहरों में तनाव को देश के लिए खतरनाक स्थिति बताते हुए उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश तो खासतौर पर बारूद के ढेर पर बैठा है और एसपी केंद्र में कांग्रेस की सहयोगी है और कांग्रेस का उस पर कोई नियंत्रण नहीं है। पार्टी ने राजनीतिक प्रस्ताव में रीटेल में एफडीआई, डीजल के दाम बढ़ाने के फैसलों पर यूपीए के घटक दलों में असंतोष का भी जिक्र किया है और कहा गया है कि कांग्रेस पार्टी वह सबकुछ कर रही है जिससे वंशवाद के शासन को बढ़ावा मिले।
इस प्रस्ताव में छोटे राज्यों के हित में कार्य करने का संकल्प दोहराते हुए तेलंगाना के गठन की दिशा में काम करने की प्रतिबद्धता दोहराई।पार्टी ने कहा, 'बीजेपी अपने आपको राष्ट्र के हित में समर्पित करती है और देश की जनता को आश्वासन देती है कि सुशासन, समानता और शुचिता के साथ विकास और राष्ट्रवाद के अपने बेदाग रेकॉर्ड के आधार पर वह देश के गौरव को बहाल करेगी। केवल बीजेपी ही असुरक्षित राष्ट्र के सामने पेश आ रहीं समस्याओं से छुटकारा दिला सकती है। इन सब बातों के बावजूद भाजपा को पहले अपना घर ठीक करना चाहिए.

Wednesday 26 September 2012

रिद्धि सिद्धि के दाता गणेश

किसी भी शुभ काम में प्रथम पूज्य गणेश भगवान् का भारतीय समाज में विशेष महत्व है. परिवार और समाज की सम्रद्धि और खुशहाली की कामना के साथ शुरू होने वाले गणेशोत्सव को लेकर देश वाशियों में खासा उत्साह रहता है. गणेशोत्सव पर होने वाले विविध  धार्मिक आयोजन जहां हमें सांस्कृतिक मूल्यों को नए सिरे से रेखांकित करने का अवसर प्रदान करते हैं . वहीँ धार्मिक और अध्यात्मिक सुख का तो हमारे जीवन में विशेष महत्व है ही. गणेशोत्सव पर हम सब गजानन से सामाजिक सद्भाव. सुख. सम्रद्धि और वैभव की कामना करें .

एह्येहि हेरंब महेशपुत्र समस्त विघ्नौद्या विनाशदक्ष

मांगल्य पूजा प्रथम प्रधान गृहाण पूजां भगवन नमस्ते।।

हे महेशपुत्र समस्त विघ्नों के विनाश करने वाले देवाधिदेव मांगल्य कार्यों में प्रधान प्रथम पूज्य गजानन, गौरी पुत्र आपको नमस्कार है।
गजानन, गौरी पुत्र, महेश पुत्र, एकदंत, वक्रतुंड, विनायक, लंबोदर, भालचंद्र ऐसे नाना प्रकार के नामों से पूज्य श्री गणेशजी की आराधना जो भक्त भाद्रपद शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक करता है। उस भक्त के जन्म-जन्मांतर के पाप नष्‍ट हो जाते हैं एवं उसकी हर मनोकामना गणेशजी पूर्ण करते है। जितने भी ग्रह-नक्षत्र, राशियां है उनको गणेशजी का अंश माना गया है। यह सत्य है। मन, कर्म, वचन से जो गणेशजी की आराधना करता है, अनुष्‍ठान करता है, उस पर गणेशजी की विशेष अनुकंपा होती है। गणेशजी की आराधना विद्यार्थी विद्या प्राप्ति के लिए करें, जिसको धन पाना है वह धन प्राप्ति के लिए, मोक्ष पाने वाला मोक्ष प्राप्ति के लिए, पुत्र की कामना वाले व्यक्ति पुत्र प्राप्ति के लिए करें, रिद्धि-सिद्धि के दाता भगवान गणेश सभी प्रकार के भक्तों की इच्छा अवश्‍य पूर्ण करते हैं। भगवान गणेश की आराधना सच्चे मन से करने पर हर मनोरथ पूर्ण होंगे।

विद्यार्थी लभते विद्यां, धनार्थी लभते धनम्

प‍ुत्रार्थी लभते पुत्रान्, मोक्षार्थी लभते गतिम्।।

देवताओं के भी पूज्य गजानन जी को यक्ष, दानव, किन्नर जो भी पूजता है। वह सुख-संपदा, राज्य भोग, सब प्राप्त कर लेता है। यदि मनुष्य सच्चे दिल से गौरी पुत्र का स्मरण करें तो अवश्य ही समस्त सिद्धियों का ज्ञाता एवं पराक्रमी होता है। श्री गणेश जी के स्त्रोत को जो नित्य जपता है, वह अवश्‍य ही वांछित फल पाता है। इसमें संशय नहीं है।

नमो व्रातपतये नमो गणपतये

नम: प्रथमपतये नमोस्तेतु लंबोदरायैकदन्ताय

विघ्नविनाशिने शिवसुताय श्री वरदमूर्तये नमो नम: ।।

गजानन गणपति को बार-बार नमस्कार है। हे विघ्न विनाश करने वाले, लंबोदर, एकदंत, प्रथमपूज्य, शिवसुताय इस भक्त का प्रणाम स्वीकार करो। इस प्रकार गणेशजी से प्रार्थना करें। वह अवश्‍य आपके मनोरथ पूर्ण करेंगे।
 गणेश चतुर्थी से अनं‍त चर्तुदशी ‍तक जो भक्त गणपत्यर्वशीर्ष, गणेश चालीसा, संकटनाशक स्त्रोत अथवा गं गणपतये का जप करता है। वह अनन्य गुना फल प्राप्त करता है।

जय जय गणपति गजानन गणेशा.
होगी पूजा तुम्हारी हमेशा .

Monday 24 September 2012

मनमोहन ने तोड़ी लोगों की उम्मीद

देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को देश में आर्थिक सुधारों का जनक कहा जाता है. लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में खासकर उनके दुसरे कार्यकाल में देश का आर्थिक विकास अवरुद्ध होने के साथ साथ देश में चारों ओर मंहगाई और भ्रष्टाचार चरम पर है. उससे मनमोहन के नेतृत्व क्षमता और योग्यता पर गंभीर सवाल खड़े हो चुके हैं. और मनमोहन सिंह ने अव्यवस्था की दो पाटों के बीच जनभावनाओं को जमकर तोडा है का हाथ गरीब के साथ का नारा देने वाली कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के बारे में ऐसा लगता है कि वह गरीबों को ही मिटने पर आमादा है. तेल कंपनियों को फायदा पहुचाने के लिए डीजल और पेट्रोल की कीमतें कांग्रेसलगातार बढ़ाना और रसोई गैस को आम आदमी की पहुँच से ही बाहर कर देना यह सिद्ध करता है कि सरकार और प्रधानमंत्री को लोकतान्त्रिक मूल्यों और राष्ट्र धर्म की ज़रा भी परवाह नहीं है. देश का औद्योगिक जगत भी खुलकर यह कह रहा है कि सरकार की अदुर्दार्शिता और निर्णय लेने में दृढ इक्षा शक्ति की कमी के चलते देश का आर्थिक विकास ठप्प हो चूका है. फिर भी मनमोहन सरकार हाथ पर हाथ रखकर बैठी है. जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. 

Thursday 20 September 2012

सिर्फ राजनीतिक ड्रामा है यूपीए का विरोध

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा केंद्र सरकार से समर्थन वापस लेना सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक ड्रामा है. क्यों कि अगर वास्तव में उनके अन्दर केंद्र सरकार को हिलाने का नैतिक साहस होता तो वह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने तेवर कड़े करते हुए कहा है कि समर्थन वापसी के मुद्दों से वह मुकरने के लिए तैयार नहीं हैं, जबकि कांग्रेस ने कहा कि सरकार के सामने कोई खतरा नहीं है।
समर्थन वापसी की घोषणा के एक दिन बाद ममता ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार की प्रमुख घटक कांग्रेस पर प्रहार करना जारी रखा। उन्होंने कहा कि जो भी हो हम अपने निर्णय से नहीं डिगेंगे। जैसा बताया गया है हमारे मंत्री इस्तीफा दे देंगे।ममता ने केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदम्बरम के उस दावे को झूठा करार दिया जिसमें कहा गया था कि कांग्रेस ने आर्थिक सुधार के मुद्दे पर उनसे सम्पर्क साधने की कोशिश की थी। ममता ने कहा कि मैं यह बात साफ कर देना चाहती हूं कि आर्थिक सुधार के विषय में मुझसे सम्पर्क करने के लिए कांग्रेस ने कोई कोशिश नहीं की। निहित स्वार्थों के कारण कुछ टीवी चैनल अफवाह एवं दुष्प्रचार फैला रहे हैं।
उन्होंने सरकार पर नाटक करने का आरोप लगाते हुए कहा कि मुझे प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से कोई सूचना नहीं मिली थी। जबकि मैंने अपने फैसले के विषय में कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी को पहले ही बता दिया था।केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने कहा कि हमने चार दिन पहले ममता से बातचीत की कोशिश की थी। प्रधानमंत्री ने उनसे बातचीत का प्रयास किया था। उनके लिए संदेश छोड़ा गया था, ताकि वह जवाब दे सकें.. हमें कोई जवाब नहीं मिला। सुधार के निर्णय काफी विचार विमर्श के बाद लिए गए हैं।तृणमूल प्रमुख ने बहुब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के मुद्दे पर सरकार पर तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के वादे से मुकरने का आरोप लगाते हुए कहा कि इस पर फैसला सहमति से होना चाहिए। ममता ने  संप्रग सरकार से समर्थन वापस लेने का ऐलान किया। केंद्र सरकार में शामिल उनके मंत्री शुक्रवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपना इस्तीफा सौंपेंगे। यद्यपि सूचना एवं प्रसारण मंत्री अम्बिका सोनी ने कहा कि संप्रग सरकार के सामने कोई खतरा नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार जरूरत के समय आवश्यक संख्या का प्रबंध कर लेती है। मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव प्रकाश करात ने कहा कि केंद्र की संप्रग सरकार डीजल मूल्य वृद्धि और खुदरा क्षेत्र में एफडीआई जैसे अपने फैसले वापस ले ले या इस्तीफा दे दे। माकपा महासचिव ने कहा कि खुदरा क्षेत्र में एफडीआई का संसद के बहुमत ने विरोध किया है। यदि सरकार ये फैसले वापस नहीं लेती है तो उसे सत्ता में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। तृणमूल के सांसद कुणाल घोष ने भी प्रधानमंत्री से इस्तीफा देने की मांग की और कहा कि उन्हें अपनी आर्थिक नीतियों के लिए ताजा जनादेश लेना चाहिए। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार एवं राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू यादव ने उम्मीद जताई कि संप्रग सरकार इस संकट से निपट लेगी। ममता के निर्णय से कांग्रेस की मायावती एवं मुलायम सिंह यादव पर निर्भरता बढ़ गई है।
समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कहा कि कांग्रेस को अहंकार से बड़ा नुकसान होगा। मुलायम ने पत्रकारों से कहा कि सरकार को समझदार होना चाहिए क्योंकि डीजल मूल्यों में वृद्धि से आम आदमी परेशान है। उन्होंने कहा कि सरकार के रुखे बर्ताव का प्रभाव अच्छा नहीं होगा। इसकी वजह से कांग्रेस कमजोर होगी। सपा प्रमुख ने कहा कि पार्टी डीजल मूल्य वृद्धि एवं एफडीआई के मुद्दे पर आयोजित भारत बंद में शामिल होगी। इस बंद को संप्रग के घटक द्रविड मुनेत्र कड़गम का भी समर्थन हासिल है।केंद्र सरकार को अन्दर और बाहर से समर्थन दे रहे दल सिर्फ सियासी नाटक कर रहे है. हालात देखकर तो यही लगता है कि उन्हें लोकहितों की कोई चिंता नहीं है.

Monday 17 September 2012

किसी को नहीं है देश की चिंता

डीजल और रसोई गैस की कीमत बढाने और एफडीआई के मुद्दे पर ऐसा लग रहा था की शायद केंद्र सरकार के घटक दल और बाहर से समर्थन दे रही पार्टियों द्वारा देश हितैषी रुख अपनाया जायेगा . और सरकार पर दबाव डालकर यह जनविरोधी निर्णय बदलवाए जायेंगे . लेकिन ऐसा कुछ भी होता दिखाई नहीं दे रहा है. ऐसे में यह साफ़ है की देश की चिंता किसी को नहीं है. सब को सिर्फ अपना फायदा और नुकसान दिख रहा है.हम बात कर रहे हैं सरकार के उन सहयोगी दलों की, जिन्होंने सरकार के फैसलों पर पहले तो कड़ा विरोध दिखाया लेकिन बाद में वही ढाक के तीन पात। रीटेल सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के प्रस्ताव और पेट्रो कीमतों में बढ़ोतरी के खिलाफ ममता बनर्जी और मुलायम सिंह यादव की पार्टियों ने संकेत दिए हैं कि उनका इरादा सरकार से समर्थन वापस लेने का नहीं है। वह महज सरकार से दूरी बनाए रखना चाहती हैं। वहीं, राजग सहयोगी शिवसेना ने महंगाई के विरोध में भाजपा द्वारा सरकार के इन फैसलों के खिलाफ 20 सितंबर को बुलाए गए भारत बंद में साथ नहीं देने का फैसला किया है। शिवसेना के फैसले के बाद महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने भी बंद से दूर ही रहना तय किया है। ओडिशा में सत्तारूढ़ बीजद ने भी यही निर्णय लिया है। ऐसे में सरकार को भरोसा है कि सहयोगियों और विपक्ष के कड़े तेवरों के बावजूद मौजूदा मुद्दों को लेकर उस पर कोई खतरा नहीं है। सरकार की बेफिक्री का आलम यह है कि उसकी प्रमुख सहयोगी तृणमूल कांग्रेस के मंत्रियों के इस्तीफे के मिल रहे संकेतों को भी वह गंभीरता से नहीं ले रही है। यह बात अलग है कि सरकार व कांग्रेस के रणनीतिकार उससे पहले तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी को एक बार मनाने का कोशिश कर सकते हैं। बात बन गई तो ठीक, नहीं तो उन्हें इस बात से भी संतोष है कि अपने मंत्रियों के इस्तीफे के बाद भी ममता यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन देती रहेंगी।  रिटेल एफडीआइ के अलावा डीजल में 5 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि और सब्सिडी वाले छह रसोई गैस सिलेंडर देने के फैसले वापस न लेने पर सरकार को 72 घंटे का अल्टीमेटम देते हुए ममता ने कड़े फैसले लेने की बात कही थी। अल्टीमेटम की अवधि खत्म होने के बाद ममता आज अपना फैसला सुनाएंगी। वामपंथियों समेत छह दलों से हाथ मिलाकर 20 सितंबर को सरकार के खिलाफ आंदोलन करने जा रही सपा को लेकर भी सरकार के माथे पर शिकन नहीं है। सपा महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव ने साफ कर दिया है कि उनकी पार्टी एफडीआइ, डीजल के दाम बढ़ने और विनिवेश के फैसलों के खिलाफ है, लेकिन वह इसके लिए सरकार से समर्थन वापस लेकर सांप्रदायिक ताकतों को मदद करने नहीं जा रही है। बसपा प्रमुख मायावती ने डीजल मूल्य वृद्धि, सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलेंडरों को कम करने और एफडीआइ का विरोध तो जरूर किया है, लेकिन सरकार से समर्थन वापसी पर फैसला 10 अक्टूबर को लेने का एलान किया है। इन स्थितियों के बीच, अब सारा मामला ममता के आज फैसले पर टिक गया है। सूत्रों की मानें तो सरकार ने पेट्रो कीमतों की वृद्धि और एफडीआइ जैसे मामलों में सहयोगियों के संभावित विरोध का आकलन पहले ही करके ये फैसले लिए हैं। उसे पता था कि वे इसका समर्थन नहीं करेंगे, लेकिन कोई सहयोगी या फिर विपक्षी दल देश में अभी चुनाव नहीं चाहता। लिहाजा, ये फैसले वापस नहीं होंगे। इस बीच, वामदलों ने 20 सितंबर को ही 12 घंटे के राष्ट्रव्यापी बंद की घोषणा की है। विपक्षी दलों के अलावा यूपीए सहयोगी सपा ने भी बंद की अलग से घोषणा की है।
कुल मिलाकर जो स्थिति दिखाई दे रही है उससे साफ़ है की ममता. माया . मुलायम अदि सब जनता की नजर में खुद को श्रेष्ठ साबित करने के लिए विरोध का सिर्फ नाटक कर रहे हैं. बाकी उनकी सत्ता मित्र की भूमिका आगे भी जरी रहेगी .

Wednesday 5 September 2012

बोलो भारत माता की जय

स्वतंत्रता के भीषण रण में.
लखकर जोश बढ़े छण छण में.
मिट जाये भय संकट सारा.
झंडा ऊँचा रहे हमारा..

Tuesday 4 September 2012

परम पावन है शिक्षक दिवस

पांच सितम्बर शिक्षक दिवस का दिन हमारे लिए परम पावन पर्व की तरह है. क्यों की हमारे अंतःकरण में विचारों और संस्कारों की जो अविरल धारा प्रवाहित हो रही है वह गुरुजनों की ही देन है.भारत में गुरू-शिष्य की लम्बी परम्परा रही है। प्राचीनकाल में राजकुमार भी गुरूकुल में ही जाकर शिक्षा ग्रहण करते थे और विद्यार्जन के साथ-साथ गुरू की सेवा भी करते थे। राम-वशिष्ठ, कृष्ण-संदीपनि, अर्जुन-द्रोणाचार्य से लेकर चन्द्रगुप्त मौर्य-चाणक्य एवं विवेकानंद-रामकृष्ण परमहंस तक शिष्य-गुरू की एक आदर्श एवं दीर्घ परम्परा रही है। उस एकलव्य को भला कौन भूल सकता है, जिसने द्रोणाचार्य की मूर्ति स्थापित कर धनुर्विद्या सीखी और गुरूदक्षिणा के रूप में द्रोणाचार्य ने उससे उसके हाथ का अंगूठा ही मांग लिया।आजादी के बाद गुरू-शिष्य की इस दीर्घ परम्परा में तमाम परिवर्तन आये। 1962 में जब डाॅ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन देश के राष्ट्रपति रूप में पदासीन हुए तो उनके चाहने वालों ने उनके जन्मदिन को ‘‘शिक्षक दिवस‘‘ के रूप में मनाने की इच्छा जाहिर की। डाॅ0 राधाकृष्णन ने कहा कि-‘‘मेरे जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने के निश्चय से मैं अपने को काफी गौरवान्वित महसूस करूंगा।‘‘ तब से लेकर हर 5 सितम्बर को ‘‘शिक्षक दिवस‘‘ के रूप में मनाया जाता है। डाॅ0 राधाकृष्णन ने शिक्षा को एक मिशन माना था और उनके मत में शिक्षक होने के हकदार वही हैं, जो लोगों से अधिक बुद्विमान व अधिक विनम्र हों। श्रेष्ठ अध्यापन के साथ-साथ शिक्षक का अपने छात्रों से व्यवहार व स्नेह उसे योग्य शिक्षक बनाता है। मात्र शिक्षक होने से कोई योग्य नहीं हो जाता बल्कि यह गुण उसे अर्जित करना होता है। डाॅ0 राधाकृष्णन शिक्षा को जानकारी मात्र नहीं मानते बल्कि इसका उद्देश्य एक जिम्मेदार नागरिक बनाना है। शिक्षा के व्यवसायीकरण के विरोधी डाॅ0 राधाकृष्णन विद्यालयों को ज्ञान के शोध केन्द्र, संस्कृति के तीर्थ एवं स्वतंत्रता के संवाहक मानते हैं। यह राधाकृष्णन का बड़प्पन ही था कि राष्ट्रपति बनने के बाद भी वे वेतन के मात्र चौथाई हिस्से से जीवनयापन कर समाज को राह दिखाते रहे। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो गुरू-शिष्य की परंपरा कहीं न कहीं कलंकित हो रही है। आए दिन शिक्षकों द्वारा विद्याार्थियों के साथ एवं विद्यार्थियों द्वारा शिक्षकों के साथ दुव्र्यवहार की खबरें सुनने को मिलती हैं। जातिगत भेदभाव प्राइमरी स्तर के स्कूलों में आम बात है। यही नहीं तमाम शिक्षक अपनी नैतिक मर्यादायें तोड़कर छात्राओं के साथ अश्लील कार्यों में लिप्त पाये गये। आज न तो गुरू-शिष्य की वह परंपरा रही और न ही वे गुरू और शिष्य रहे। व्यवसायीकरण ने शिक्षा को धंधा बना दिया है। संस्कारों की बजाय धन महत्वपूर्ण हो गया है। ऐसे में जरूरत है कि गुरू और शिष्य दोनों ही इस पवित्र संबंध की मर्यादा की रक्षा के लिए आगे आयें ताकि इस सुदीर्घ परंपरा को सांस्कारिक रूप में आगे बढ़ाया जा सके। हम सब मिलकर गुरु शिष्य परम्परा को मजबूत बनाने का संकल्प लें .


Sunday 2 September 2012

राजनीति में शिष्टाचार कायम रखें

संसद में भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवानी द्वारा यूपीए को नाजायज कहे जाने पर खासा बवाल हुआ और अंत में आडवाणी को अपने शब्द वापस लेने पड़े. इससे पहले भी कई बार ऐसा हुआ है कि आडवानी को खुद ही अपनी बातों से शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है. हलाकि सांसदों की खरीद फ़रोख्त के मामले में आडवानी का कथन सही भी है लेकिन फिर भी पूरे कुनबे को ही नाजायज कहना ठीक नहीं है. राजनीति में शिष्टाचार कायम रखा जाना चाहिए. उधर संसद में संप्रग अध्यक्ष के आक्रामक व्यवहार पर भाजपा ने आरोप लगाया कि सोनिया ने अपने सदस्यों को शोरशराबे के लिए उकसाकर गलत नेतृत्व दिया है। भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने कहा, 'जब मांझी ही नाव डुबाएगा तो कांग्रेस को कौन बचा सकता है।' प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, आडवाणी के बयान को अशोभनीय करार देने वाले प्रधानमंत्री को 2जी और राष्ट्रमंडल जैसे घोटाले में शामिल कांग्रेसी सदस्यों के व्यवहार पर कोई अफसोस नहीं है। शाहनवाज ने माना कि आडवाणी के बयान में थोड़ी चूक हो गई थी, जिसे उन्होंने वापस भी ले लिया। लेकिन, सोनिया ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी जिसमें सदन की कार्यवाही चलना मुश्किल था। वह अपने सदस्यों को शांत करने के बजाय उन्हें आगे आने के निर्देश दे रही थीं जो आपत्तिजनक है। उन्होंने नेतृत्व की गलत परंपरा दी है। शाहनवाज ने कहा कि प्रधानमंत्री आदत के अनुसार संसद में चुप रहते हैं, लेकिन बाहर बोलते हैं। जबकि, संसदीय कार्यमंत्री का व्यवहार नेता की बजाय छोटे कार्यकर्ता की तरह होता है जो सदन चलाने के बजाय उसे बाधित करने में जुटे रहते हैं। राजनेता कई मायनों में समाज के पथ प्रदर्शक होते हैं इस द्रष्टि से उनमे तो शालीनता होनी ही चाहिए.