Saturday 29 September 2012

प्रतिष्ठा को संभाल नहीं पाए अन्ना

जन लोकपाल कानून बनाने की मांग को लेकर आन्दोलन करने वाले समाजसेवी अन्ना हजारे अपनी प्रतिष्ठा और बढती हुई लोकप्रियता को संभालने में विफल रहे. यही कारण है कि अन्ना का आन्दोलन अब बीते समय का घटनाक्रम बनकर रह गया है. अन्ना के आन्दोलन की विफलता के लिए उनकी संवैधानिक प्रावधानों के प्रति अनभिज्ञता और संवैधानिक मूल्यों के प्रति उनका अनादर का भाव तो जिम्मेदार है ही. साथ ही अन्ना के वह साथी भी इस विफलता के लिए बराबर के जिम्मेदार हैं. जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र को अपने पैरों तले कुचलने की कोशिश की और जिनके अहंकार. संकीर्ण सोच . अनुशासनहीनता और अति महत्वाकांक्षा ने उनकी वैचारिक क्षमता को पंगु बना दिया था. यही कारण है कि राजनीतिक विकल्प देने के मुद्दे पर टीम अन्ना दो फाड़ हो गयी. वही दूसरी ओर अन्ना हजारे ने कहा है कि अपनी मांगों के लिए दबाव डालने के लिए अब वह अनशन का सहारा नहीं लेंगे, बल्कि मुद्दों के लिए आंदोलन करेंगे। हजारे ने कहा कि अब से मैं अनशन नहीं करूंगा। भविष्य में मैं अपने मुद्दों के लिए आंदोलनों का सहारा लूंगा। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले हजारे ने कहा कि वह संसद में साफ सुथरी छवि वाले लोगों को भेजने के लिए कार्य जारी रखेंगे। उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारियों ने भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए उनके आंदोलन में शामिल होने की इच्छा जतायी है। उन्होंने देश के युवाओं में पूरा भरोसा जताते हुए उनसे कहा कि वे देश के भविष्य को लेकर निराशावादी नहीं हों। हजारे ने मजबूत लोकपाल के लिए दबाव बनाने के लिए गत वर्ष तीन बार, दो बार दिल्ली में और एक बार मुम्बई में अनशन किया। वह इस वर्ष जुलाई में एक बार फिर राजधानी दिल्ली में जंतर मंतर पर अनशन पर बैठे थे। इससे पहले भी वह पूर्व में महाराष्ट्र में भ्रष्टाचार और शासन में पारदर्शिता को लेकर कई बार अनशन कर चुके हैं। ऐसे  में अब अन्ना देश में कितना आन्दोलन कर पाएंगे यह कह पाना मुश्किल है. क्यों कि अब उन्हें जन विश्वास अर्जित करने के लिए खासी मसक्कत करनी पड़ेगी .

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