Wednesday 29 January 2020

दिल्ली में चुनावी फतह हासिल कर सकते हैं अरविंद केजरीवालसुधांशु द्विवेदीअंतर्राष्ट्रीय पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक

देश की राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव की सरगर्र्मी चरम पर है। राजनीतिक दलों द्वारा लोक लुभावने चुनावी वादों और अपने जनहितैषी एजेंंडे को सामने रखकर मतदाताओं को रिझाने की कोशिश की जा रही है। दिल्ली के मु यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी का दावा है कि हम विधानसभा चुनाव में सभी 70 सीटें जीतेंगे। वहीं भारतीय जनता पार्र्टी और कांग्रेस को भी अपने चमत्कारिक चुनावी प्रदर्शन की उ मीद है। अब किसकी उ मीद पूरी होगी और किस राजनीतिक पार्टी को निराशा हाथ लगेगी, यह तो 11 फरवरी को ही पता चल पायेगा जब चुनाव नतीजे घोषित होंगे। मु य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा के नेतृत्व में चुनाव आयोग ने दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रभावी ढंग से संपन्न कराने के लिये शानदार व्यवस्था की हैै वहीं मतदाताओं में भी चुनाव के प्र्रति उत्साह नजर आ रहा है। मतदाताओं का यही उत्साह मतदान दिवस पर अधिकाधिक मतदान का आधार बनेगा और सत्ता निर्धारण का मार्ग इसी से प्रशस्त होगा। देश के मतदाता लोकतंत्र के भाग्य विधाता हैं इसलिये वह विवेकपूूर्ण और दूूरदर्र्शी सोच के आधार पर ही मतदान करेंगे तथा उनका वोट रूपी आशीर्वाद ही चुनाव में राजनीतिक दलों उनके उ मीदवारों की चुनावी जीत या हार का कारण बनेगा। दिल्ली विधानसभा चुनाव के माहौल पर अगर दृष्टिपात किया जाए तो मु यमंत्री अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता चरम पर है। केजरीवाल ने 2015 के अपने चुनावी वादे के अनुरूप 5 साल में दिल्ली प्रदेश में गरीब एवं मध्यमवर्गीय तबकों के हित में बेहतरीन ढंग से काम किया है। युवाओं, महिलाओं सहित समाज के सभी तबकों के हितों के प्रति संवेदनशील अरविंद केजरीवाल ने सुशासन की ऐसी अनूूठी मिसाल पेश की है, जिसका दूूसरे राज्य भी अनुकरण करना चाहते हैं। चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो या स्वास्थ्य का। योजनाओं के बेहतर लोकव्यापीकरण के सत्परिणाम स्पष्ट रूप से नजर आ रहे हैंं। एनसीपी के दिग्गज नेता और महाराष्ट्र के उप मु यमंत्री अजीत पवार ने कहा है कि वह दिल्ली सरकार की शिक्षा से जुड़ी नीतियों को अपने राज्य में भी लागूू करेंगेे। पवार के इस बयान केे आधार पर अरविंद केजरीवाल की कार्यप्रणाली की उत्कृष्टता का अंंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। दिल्ली के विधानसभा चुनावों को दृष्टिगत रखते हुए अगर भारतीय जनता पार्टी की बात करें तो झारखंड राज्य के चुनाव नतीजेे एकाध माह पूूर्व ही सामने आयेे हैं और हेमंत सोरेन के नेतृत्व में गठबंधन सरकार की राज्य की सत्ता में ताजपोशी हुई हैै। बीजेपी ने वहां राम मंदिर, एनआरसी, सीएए सहित सभी राजनीतिक पैंतरे आजमाए लेकिन बीजेपी नेता और राज्य के तत्कालीन मु यमंंत्री रघुवर दास ही खुद अपनी सीट हार गये। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह सहित बीजेपी के दूसरे नेता अपने राजनीतिक खुराफात को दिल्ली चुनाव में भी आजमाने में लगेे हैं लेकिन बीजेपी यहां भी एनआरसी और सीएए जैसे विवादास्पद कानूनों के दलदल में डूूूब चुकी नजर आ रही है। लोग सामाजिक सरोकार, आपसी भाईचारे, नैतिक मूल्योंं, स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपराओं को अक्षुण्य बनाए रखते हुए दिल्ली में मतदान करेंंगे, ऐसे में बीजेपी को दिल्ली में भी चुनावी पराजय का सामना करना पड़ सकता है। दिल्ली के विधानसभा चुनावों को दृष्टिगत रखते हुए कांग्रेस पार्टी की चुनावी संभावनाओं की बात की जाए तो पार्टी यहां न तो किसी चुनावी मुकाबले में है और ना ही पार्टी नेताओं में कोई चुनावी उत्साह है। वह तो बस चुनाव लडऩे की राजनीतिक औपचारिकता पूूर्ण करने के लिये चुनाव लड़ रहे हैं। पार्टी के टिकट वितरण में झपटमारी की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। दिल्ली के किसी नेता को अपने बेटेे का राजनीतिक करियर बनाने की चिंता सताए जा रही है तो कोई अपने बेटे या अन्य किसी रिश्तेदार के लिये जोर लगा रहा है। पार्टी के चुनावी उद्देश्य में जोर चूंकि स्वार्थ का है इसलिये पार्टी का चुनावी संग्राम में कहीं कोई शोर सुनाई नहीं दे रहा है। लोकतंत्र में राजनीतिक दलों को ना सिर्फ अपनी दायित्वपूूर्ण भूमिका का निर्वहन करना चाहिये अपितु जनमानस को इसकी झलक दिखाई भी देनी चाहिये। लेकिन कांंग्रेस पार्टी में तो किंकर्तव्य विमूढ़ जैसी स्थिति दृष्टिगोचर हो रही है। सिख दंगेे जैसे दाग पार्टी के दामन पर पहले से लगे हैं, पार्टी नेतृत्व खुद विचार शूून्यता के  दौर से गुजर रहा है और अगर नेतृत्व कुछ कहता भी है तो उसकी सुनने वाला कोई नहीं है। ऐसे में दिल्ली में कांग्रेस जीरो जैग से मुक्त हो जाए अर्थात एकाध सीटें जीत जाए, पार्टी के लिये यही चमत्कार माना जायेगा। कुल मिलाकर कहा जाए तो अरविंद केजरीवाल दिल्ली में चुनावी फतह हासिल कर सकते हैं।