Thursday 16 August 2012


राम को छोड़ रामदेव की शरण में भाजपा 

देश की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा आज कल गंभीर वैचारिक भटकाव के दौर से गुजर रही है. लगातार राजनीतिक अवनति से हतास भाजपा के नेताओं के सामने किं कर्तव्य विमुढः की स्थिति निर्मित हो गयी है. यही कारण है कि कभी रामलला के लिए मिट मरने की बात करने वाली भाजपा अब रामदेव की शरण में है. बाबा रामदेव भाजपा को कुछ राजनीतिक लाभ पहुचा पाएंगे या उलटे भाजपा की और माटी पलीद हो जाएगी यह तो समय बतायेगा लेकिन भाजपा के इस पशोपेस ने पार्टी के नैतिक चरित्र को सतह पर ला दिया है.राजग के कुनबे में निरंतर बिखराव और भाजपा में निरंतर बढ़ते अंतर्कलह और नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षा में बढ़ोत्तरी के बीच पार्टी की भविष्य की राजनीतिक संभावनाएं वैसे भी ख़त्म सी नजर आ रही हैं. यूपीए सरकार के कार्यकाल में बढती महगाई और भ्रष्टाचार भाजपा के पुनरोदय का आधार बन सकता था. लेकिन कश्मीर से कन्याकुमारी तक भाजपा में बढती गुटबाजी और एक दुसरे की टांग खींचने की बढती प्रवृत्ति ने भाजपा के उत्साह में तुषारापात जैसा कर रखा है. यही कारण है कि अब भाजपा को रामदेव में ही अपना कल्याण नजर आ रहा है. दिलचस्प बात यह है कि भाजपा के कम जनाधार वाले नेता ही रामदेव को समर्थन देने के मामले में ज्यादा उतावलापन दिखा रहे हैं. मसलन अरुण जेटली ने एक बार रामदेव के साथ मंच साझा किया तो नितिन गडकरी ने तो रामदेव के पैर ही पकड़ लिए . यह सब ऐसे नेता हैं जो भाजपा के प्रधानमन्त्री पदके उम्मीदवार नहीं हो सकते . ऐसे में इन्हें लगता है कि भले ही रामदेव का देश का प्रधानमन्त्री बनने का सपना पूरा हो जाये लेकिन किसी भाजपा नेता को यह सौभाग्य नसीब नहीं होने पाए. वहीं भाजपा के जनाधार वाले नेताओं का एक समूह ऐसा भी है जो भ्रष्टाचार का विरोध तो करता है लेकिन उसके साथ में वह भाजपा के राजनीतिक हितों का भी स्वाभाविक रूप से ध्यान रखता है. भाजपा के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी जैसे लोग निश्चित रूप से ऐसी ही सोच रखते हैं. काश भाजपा ने अपने स्तर भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई निर्णायक आन्दोलन चलाया होता तो आज भाजपा का ग्राफ कुछ और होता .

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