Monday, 29 September 2014
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शुरू हो रहे शारदीय नवरात्र पर्व में इस बार दुर्गाष्टमी और नवमी तिथियां एक ही दिन होने से विशेष संयोग बन रहा है। यह संयोग माता के भक्तों के लिए धन, पद, मान-सम्मान में वृद्धि करेगा, बृहस्पतिवार 25 सितंबर को कलश स्थापना के साथ पूरे देश में नवरात्री पर्व की धूम-धाम से मनाया जा रहा है। आज पांचवा नवरात्रा है। कल हम छठे नवरात्री को मां
Sunday, 28 September 2014
मां का पांचवां स्वरूप: स्कंदमाता
मां दुर्गा की पांचवीं शक्ति स्कंदमाता हैं। भगवान स्कंद की माता होने के कारण ही उन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। मान्यता है कि सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण उनकी मनोहर छवि पूरे ब्रह्मांड में प्रकाशमान होती है। इनका वर्ण पूर्णत: शुभ्र है। जिस प्रकार सारे रंग मिलकर शुभ्र [श्वेत] रंग बनता है, इसी तरह इनका ध्यान जीवन में हर प्रकार की परिस्थितियों को स्वीकार करके अपने भीतर आत्मबल का तेज उत्पन्न करने की प्रेरणा देता है। भगवान स्कंद बाल रूप में इन देवी के गोद में बैठे हैं, इसलिए ये देवी ममता की मूर्ति हैं और प्रेरणा देती हैं कि मन के कोमल भावों की शक्ति को भी अपने अंदर बढ़ाना चाहिए। मां सिंह पर प द्मासन में विराजमान हैं। यह स्वरूप हमें आध्यात्मिकता की ओर ले जाता है। मां का शुभ्र वर्ण इस बात का द्योतक है कि हमें अहंकार, लोभ व जड़ता को छोड़कर आात्मोत्थान के लिए सतत प्रयासरत रहना है।
ध्यान मंत्र
सिंहासनगता नित्य पद्मश्रिकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥
Saturday, 27 September 2014
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समस्त भारत में यह समय त्यौहारों के मौसम के रूप में जाना जाता है, जिसकी शुरुआत नवरात्रों से होती है। क्या है महत्व इस त्यौहार का और क्यों इन्हीं दिनों इतने त्यौहार मनाए जाते हैं… जानते हैं सद्गुरु से –
जून महीने में आने वाली ग्रीष्म संक्रांति से दक्षिणायन शुरू होता है। दक्षिणायन में पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में सूर्य दक्षिण की ओर बढ़ने लगता है। इसी तरह दिसंबर महीने में आने वाली शीत संक्रांति से उत्तरायण की शुरुआत होती है जिसमें सूर्य की दिशा उत्तर की तरफ हो जाती है। यौगिक संस्कृति में दिसंबर में उत्तरायण की शुरुआत से जून में दक्षिणायन की शुरुआत तक का छह माह का समय ज्ञान पद के नाम से जाना जाता है। दक्षिणायन की शुरुआत से उत्तरायण की शुरुआत तक साल का दूसरा आधा भाग साधना पद के नाम से जाना जाता है। दक्षिणायन का समय अंतरंगता या फिर नारीत्व का समय होता है। इस समय पृथ्वी में नारीत्व से सम्बंधित गुणों की प्रधानता होती है। स्त्रैण ऊर्जा से जुड़े त्यौहार इन्हीं छह महीनों में मनाए जाते हैं। इस धरती की पूरी संस्कृति इसी के अनुकूल रची गई थी। इन दिनों हर महीने, कोई न कोई त्यौहार होता है। साल के इस स्त्रियोचित अर्ध भाग में, 22 सितंबर को शरद इक्वीनॉक्स होता है। आपको शायद पता होगा कि इक्वीनॉक्स उस दिन को कहते हैं जब दिन और रात बराबर होते हैं। इक्वीनॉक्स के बाद की पहली अमावस्या से दिसंबर में उत्तरायण के आरंभ होने तक का, तीन महीने का समय ‘देवी पद’ कहलाता है। इस तिमाही में, पृथ्वी का उत्तरी गोलार्ध सौम्य हो जाता है क्योंकि इस तिमाही में उत्तरी गोलार्ध को सबसे कम धूप मिलती है। इसलिए सब कुछ मंद होता है, ऊर्जा बहुत सक्रिय नहीं होती है।
जून महीने में आने वाली ग्रीष्म संक्रांति से दक्षिणायन शुरू होता है। दक्षिणायन में पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में सूर्य दक्षिण की ओर बढ़ने लगता है। इसी तरह दिसंबर महीने में आने वाली शीत संक्रांति से उत्तरायण की शुरुआत होती है जिसमें सूर्य की दिशा उत्तर की तरफ हो जाती है। यौगिक संस्कृति में दिसंबर में उत्तरायण की शुरुआत से जून में दक्षिणायन की शुरुआत तक का छह माह का समय ज्ञान पद के नाम से जाना जाता है। दक्षिणायन की शुरुआत से उत्तरायण की शुरुआत तक साल का दूसरा आधा भाग साधना पद के नाम से जाना जाता है। दक्षिणायन का समय अंतरंगता या फिर नारीत्व का समय होता है। इस समय पृथ्वी में नारीत्व से सम्बंधित गुणों की प्रधानता होती है। स्त्रैण ऊर्जा से जुड़े त्यौहार इन्हीं छह महीनों में मनाए जाते हैं। इस धरती की पूरी संस्कृति इसी के अनुकूल रची गई थी। इन दिनों हर महीने, कोई न कोई त्यौहार होता है। साल के इस स्त्रियोचित अर्ध भाग में, 22 सितंबर को शरद इक्वीनॉक्स होता है। आपको शायद पता होगा कि इक्वीनॉक्स उस दिन को कहते हैं जब दिन और रात बराबर होते हैं। इक्वीनॉक्स के बाद की पहली अमावस्या से दिसंबर में उत्तरायण के आरंभ होने तक का, तीन महीने का समय ‘देवी पद’ कहलाता है। इस तिमाही में, पृथ्वी का उत्तरी गोलार्ध सौम्य हो जाता है क्योंकि इस तिमाही में उत्तरी गोलार्ध को सबसे कम धूप मिलती है। इसलिए सब कुछ मंद होता है, ऊर्जा बहुत सक्रिय नहीं होती है।
इक्वीनॉक्स के बाद की पहली अमावस्या से दिसंबर में उत्तरायण के आरंभ होने तक का, तीन महीने का समय ‘देवी पद’ कहलाता है।
महालय अमावस्या के बाद का दिन नवरात्रि का पहला दिन होता है। नवरात्रि का संबंध देवी से है। कर्नाटक में, नवरात्रि का संबंध चामुंडी से, बंगाल में दुर्गा से है। इसी तरह, यह अलग-अलग जगहों में अलग-अलग देवियों के लिए मनाया जाता है, लेकिन मुख्य रूप से नवरात्रि का संबंध देवी यानी दिव्यता की स्त्री-शक्ति से ही होता है।
Friday, 26 September 2014
नवरात्र में गायत्री आराधना का महत्व

भारतीय पर्वों और त्यौहारों में नवरात्रि पर्व का
अपना अलग महत्त्व है। यह वर्ष में दो बार आता है। दुर्गावतरण की पावन कथा
भी इसके साथ जुड़ी हुई है। देवत्व के संयोग से असुर निकंदिनी महाशक्ति के
उद्भव का महत्त्व हर युग में रहा है। युग की भयावह समस्याओं से मुक्ति पाने
के लिए युग शक्ति के प्रकट होने की कामना हर किसी के मन में उठती है अधिकांश
लोग व्रत, उपवास एवं अनुष्ठान करते हैं। प्रतीक्षा रहती है कि कब नवरात्र
आये और हम साधना, अनुष्ठान के माध्यम से मनोवांछित फल प्राप्त कर सकें नवरात्र
के नौ दिन गायत्री साधना के लिए भी अधिक उपयुक्त है। इन नौ दिनों में
उपवास रखकर 24 हजार मंत्रों के जप का छोटा सा अनुष्ठान बड़ी साधना के समान
परम हितकर सिद्ध होता है। कष्ट निवारण, कामना पूर्ति एवं आत्म बल बढ़ाने के
साथ ही साथ यह साधना सद्विवेक अर्थात् प्रज्ञा का जागरण करती है।
गायत्री कामधेनु है। जो नवरात्रि में उसकी पूजा-उपासना, आराधना करता है, माता प्रत्यक्ष उसे अमृतोपम दुग्धपान कराती रहती है। अज्ञान को दूर करके ज्ञान का प्रकाश प्रदान करती है।
गायत्री कामधेनु है। जो नवरात्रि में उसकी पूजा-उपासना, आराधना करता है, माता प्रत्यक्ष उसे अमृतोपम दुग्धपान कराती रहती है। अज्ञान को दूर करके ज्ञान का प्रकाश प्रदान करती है।
Wednesday, 24 September 2014
सम्पूर्ण ब्रह्मांड सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, जल, अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी, पेड़-पौधें, पर्वत, सागर, पशु-पक्षी, देव, दनुज, मनुज, नाग, किंन्नर, गधर्व, सदैव प्राण शक्ति व रक्षा शक्ति की इच्छा से चलायमान हैं। मानव सभ्यता का उदय भी शक्ति की इच्छा से हुआ। उसे कहीं न कहीं प्राण व रक्षा शक्ति के अस्तित्व का एहसास होता रहा है। जब महिषासुरादि दैत्यों के अत्याचार से भू व देव लोक व्याकुल हो उठे तो परम पिता परमेश्वर ने आदि शक्ति मां जगदम्बा को विश्व कल्याण के लिए प्रेरित किया।
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