आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शुरू हो रहे शारदीय नवरात्र पर्व में इस बार दुर्गाष्टमी और नवमी तिथियां एक ही दिन होने से विशेष संयोग बन रहा है। यह संयोग माता के भक्तों के लिए धन, पद, मान-सम्मान में वृद्धि करेगा, बृहस्पतिवार 25 सितंबर को कलश स्थापना के साथ पूरे देश में नवरात्री पर्व की धूम-धाम से मनाया जा रहा है। आज पांचवा नवरात्रा है। कल हम छठे नवरात्री को मां
कात्यायनी कि पूजा करेंगे। नवरात्री पर्व को लेकर मातारानी के दरबार पूरे देशभर में जगह-जगह सज हुए हैं। जबकि कई स्थानों पर भजन संध्या का कार्यक्रम और कीर्तन करवाया जाता है। नवरात्री के छठे दिन मां कात्यायनी कि पूजा कि जाती है। नवरात्री के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। कात्यायन ऋषि के यहां जन्म लेने कि वजह से इसके स्वरूप का नाम कात्यायनी पड़ा है। अगर मां कात्यायनी की पूजा भक्तों को सच्चे मन से की जाए तो भक्त के सभी दोष एवं पिड़ाऐं दूर होती है। इस दिन साधक का मन 'आज्ञा' चक्र में स्थित होता है। मां कात्यायनी शत्रुहंता है इनकी पूजा करने से शत्रु को हार मिलती है। और जीवन सुखमय बनता है। मां कात्यायनी की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं का विवाह होता है। भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने कालिन्दी यानि यमुना के तट पर मां की आराधना की थी। इसलिए मां कात्यायनी ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पहचानी जाती है। मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और सुंदर है। इसकी चार भुजाएँ हैं। मां कात्यायनी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है। मां कात्यायनी की भक्ति और उपासना से मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। बताया जाता है कि मां कात्यायनी का जन्म शत्रुओं का नाश करने के लिए हुआ है।
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