Sunday 23 February 2014

सांसदों के आचरण ने लोकतंत्र व संसद की गरिमा को किया कलंकित

सुधांशु द्विवेदी

लेखक प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक हैं

13 फरवरी को लोकसभा में पृथक तेलंगाना राज्य गठन संबंधी विधेयक गृहमंत्री द्वारा प्रस्तुत किये जाते समय हुआ अभूतपूर्व हंगामा और कुछ सांसदों का बेहद असंसदीय आचरण भारतीय लोकतंत्र व संसद की गरिमा पर लगा वह काला धब्बा है, जिसे धुलने में वर्षों गुजर जायेंगे। संसद में मिर्ची स्प्रे का प्रयोग करके व चाकू लहराकर भ्रष्ट व दुष्ट सांसदों ने यह सिद्ध कर दिया है कि देश में आंदोलनकारियों द्वारा आये दिन यदि उन्हें चोर, लुटेरा और अपराधी की संज्ञा दी जाती है तो वह औचित्य के दायरे से बाहर नहीं है। क्यों कि आंदोलनकारी देश के कुछ सांसदों को अपराधी, भ्रष्ट और चोर की संज्ञा देकर उनकी असलियत को ही तो बेनकाब करने की कोशिश करते हैं और सांसदों ने अपने हालिया आचरण से यह सिद्ध भी कर दिया कि जनता-जनार्दन के दुर्भायवश वह संसद सदस्य बनने में कामयाब हुए जबकि उन्हें न तो संसदीय मूल्यों व लोकतांत्रिक परंपराओं का ज्ञान है और न ही उनके अंत:करण में लोकतांत्रिक मूल्यों और मान्य परंपराओं के प्रति कोई सम्मान है। वह तो बस जन प्रतिनिधि होने का ख्वाब पूरा करने के लिये संसद सदस्य निर्वाचित होने में सफल रहे तथा अब संसद के अंदर बैठकर संसदीय मूल्यों को तार-तार कर रहे हैं। दर असल संसद में हुई इस शर्मनाक घटना का रोडमैप पहले ही तैयार कर लिया गया था जब एक तरफ तो टीआरएस सहित कांग्रेस के एक धड़े द्वारा भी पृथक तेलंगाना राज्य के संदर्भ में इस राज्य निर्माण की पैरवी संसद के अंदर पुरजोर तरीके से किये जाने की रणनीति बनाई गई थी तो वहीं दूसरी ओर जगनमोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआर कांग्रेस, चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलगूदेशम पार्टी व कांग्रेस के एक धड़े की शुरुआती दौर से ही यह मंशा रही है कि पृथक तेलंगाना राज्य गठन संबंधी विधेयक को किसी भी परिस्थति में लोकसभा में प्रस्तुत नहीं होने दिया जायेगा। ऐसे में सांसदों द्वारा संसद के अंदर इस मुद्दे को लेकर अप्रत्याशित व असंसदीय आचरण प्रदर्शित किये जाने व आंध्रप्रदेश राज्य के सांसदों के बीच संघर्ष व टकराव की स्थिति निर्मित होने की आशंका तो पहले से ही थी लेकिन समय रहते इस संदर्भ में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया वरना क्या मजाल थी कि भारी सुरक्षा व्यवस्था वाले संसद भवन में कोई भी सांसद मिर्ची स्प्रे व चाकू लेकर प्रवेश कर जाता। सांसदों के संसद के अंदर चाकू लहराये जाने और मिर्ची स्प्रे किये जाने से तो देशवासी स्तब्ध हैं ही साथ ही इस घटना ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि संसद की सुरक्षा व्यवस्था भी भगवान भरोसे ही चल रही है। तेलंगाना राज्य को लेकर मची भारी उथल-पुथल की पृष्ठ भूमि में यह बात तो तय हो गई है कि कुछ स्वार्थी नेता पृथक राज्य गठन के मुद्दे को लेकर अपना स्वार्थ पूरा करना चाहते हैं, भले ही उनकी कुटिलता की बलिवेदी पर देश का लोकतंत्र आहुत हो जाये तथा संसदीय गरिमा का चीरहरण हो जाये, इसकी उन्हे जरा भी परवाह नहीं है। पृथक तेलंगाना राज्य के गठन का समर्थन करने वाले राजनीतिक क्षत्रपों को शायद इस बात की अक्ल नहीं है कि देश के अंदर बार-बार छोटे राज्यों का गठन होने से देश की एकता व अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव तो पड़ता ही है साथ ही देश के अन्य क्षेत्रों में आये दिन होने वाले पृथक राज्य गठन आंदोलनों को इससे और ज्यादा हवा मिलती है। इसके अलावा सुशासन की स्थापना एवं लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को सर्वग्राही व सर्वस्पर्शी बनाने का सिर्फ एक आधार पृथक राज्य ही नहीं है। यदि जन प्रतिनिधि व अन्य महत्वपूर्ण पदों पर आसीन लोग अपनी संवैधानिक व नैतिक जिम्मेदारियों का निर्वहन पूर्ण लगन, निष्ठा व ईमानदारी के साथ करें तो बड़े राज्यों में रहकर भी जन भावनाओं को आसानी से पूरा करते हुए लोकतंत्र व सुशासन का आलोक जन-जन तक व घर-घर तक पहुंचाया जा सकता है।

पूर्ववर्ती राजग शासनकाल में तीन राज्यों उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ व झारखंड का गठन किया गया था। इन राज्यों के गठन के बाद  कुछ नेताओं को राज्यपाल, मुख्यमंत्री व मंत्री आदि बनने का अवसर जरूर मिल गया लेकिन नये राज्यों के गठन के बाद वहां फैली अराजगकता व बदहाली का दंश लोग आज भी भुगत रहे हैं। छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद वहां बढ़े नक्सलवाद ने संपूर्ण राज्य की व्यवस्था को तहस-नहस करके रख दिया है तथा पिछले वर्ष राज्य में हुए भीषण नक्सली हमले में दिग्गज कांग्रेसी नेताओं की शहादत को शदियों तक भुलाया नहीं जा सकेगा तो राज्य में अब तक सुरक्षा तंत्र से जुड़े हुए  सैकड़ों जवान नक्सली हिंसा की बलिवेदी पर अपने प्राणों की आहुति दे चुके हैं। पृथक राज्य के रूप में अस्तित्व में आने के बाद से छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार चरम पर है तो झारखंड की दुर्दशा के तमाम मामले आये दिन समाचार माध्यमों की सुर्खियां बनते रहते हैं साथ ही राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, सिब्बू सोरेन तथा मधु कोड़ा का नाम सुनने व उनकी र्चा करने में भी लोगों को शर्मिंदगी महसूस होती है तथा राज्य की खनिज संपदा की हो रही खुली लूट राजनेताओं एवं खनिज माफियाओं के बीच अघोषित जुगलबंदी की ओर साफ तौर पर इशारा करती है। राज्य में भ्रष्ट व चोर नेता तथा माफिया खनिज संपदा और सरकारी खजाना लूटकर मालामाल होते जा रहे हैं तो राज्य का गरीब वर्ग अतिगरीब होता जा रहा है। इन विषम परिस्थतियों के बीच यह विचार किया जाना जरूरी है कि पृथक झारखंड राज्य के गठन का लाभ वहां के आम जनों को कितना मिला। उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद से ही वहां खनिज माफियाओं, सरकारी खजाना लूटने के आदी राजनेताओं तथा बिली कंपनियों के बीच बना गठजोड़ राज्य को पतन और बदहाली के गर्त में लगातार धकेल रहा है। मूल रूप से विपुल प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस राज्य में साधनों और संसाधनों की खुली लूट का सिलसिला वर्षों से चल रहा है फिर चाहे वह तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी का कार्यकाल रहा हो या मुख्यमंत्री के पद पर भाजपा के डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक का कब्जा रहा हो, इन सभी जिम्मेदार जनों ने राज्य में जन भावनाओं को नजर आंदाज करके सिर्फ माफियाओं को बढ़ावा देकर अपनी जेब भी भरने का ही काम किया है। राज्य की वन संपदा, जलसंसाधन एवं पर्वत मालाओं को खासी क्षति पहुंचाते हुए उद्योगपतियों को लाभान्वित करने के लिये पर्यावरणीय मानकों का भी खुलकर मखौल उड़ाया जाता रहा है, जिसका नतीजा उत्तराखंड त्रासदी के रूप में सामने आ चुका है, जिसमें जान गंवाने वाले हजारों बेगुनाह लोगों की दिवंगत आत्मा उन भ्रष्ट, निकम्मे व संवेदनहीन नेताओं को कभी माफ नहीं करेगी। उत्तराखंड राज्य के संदर्भ में भी यह बात लागू होती है कि पृथक प्रदेश के गठन के बाद वहां सिर्फ नेता और भ्रष्ट नौकरशाह ही मालामाल हुए हैं। राज्य के आम वासिंदों को पृथक राज्य बनने का शायद ही कोई लाभ मिल पाया हो। तो मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि उल्लेखित तीन राज्यों के गठन के बाद से निर्मित हुई परिस्थितियों से तेलंगाना राज्य गठन के झंडाबरदारों ने कोई सबक नहीं लिया तथा पृथक तेलंगाना राज्य गठित करने या नहीं करने के मुद्दे पर राज्य में पनपे वर्गसंघर्ष, हिंसा व अराजगकता की आग इस दक्षिणी राज्य के विभिन्न गलियारों से होती हुई संसद तक पहुंच गई। शायद सांसदों को भी इसी वक्त का इंतजार था क्यों कि उन्होंने अपने पिछले 5 वर्ष के कार्यकाल में जनहित का कोई उल्लेखनीय काम तो किया नहीं। सिर्फ अपने पद और प्रभाव का इस्तेमाल करके व्यक्तिगत हित पूरा करने और सरकारी सुख सुविधा व वेतन भत्ता लेने में ही उन्होंने अपना पूरा कार्यकाल व्यतीत किया है, फिर उन्हें लगा कि संसद के अंदर पृथक तेलंगाना राज्य के गठन की पैरवी या विरोध के नाम पर ऐसी ओछी व शर्मनाक हरकत करके वह अपनी नाकामियों पर से जनमानस का ध्यान आसानी से भटका सकने में सफल हो जायेंगे। यही सोचकर सांसदों ने संसद के अंदर मिर्ची स्पे्र करने और चाकू लहराने का शर्मनाक कृत्य कर डाला। ऐसे भ्रष्ट और दुष्ट सांसदों की न सिर्फ सदस्यता खत्म की जानी चाहिये बल्कि उन्हे पूरे कार्यकाल के लिये अयोग्य घोषित करके उन्हें अब तक मिले वेतन-भत्ते की वसूली भी उनसे की जानी चाहिये। साथ ही उनका सामाजिक बहिष्
कार करते हुए आगामी लोकसभा चुनाव में उनकी करारी हार सुनिश्चित करने का भी प्रयास होना चाहिये।

 


No comments:

Post a Comment