Friday 28 February 2014

तुष्टिकरण के लिये रणबाकुरों का अपमान कर रहे हैं मोदी

सुधांशु द्विवेदी

लेखक प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक हैं
गुजरात के मुख्यमंत्री और लोकसभा चुनाव के लिये भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिये घोषित उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी द्वारा व्यापारियों को देश के सैनिकों की अपेक्षा अधिक साहसी बताने के बयान ने देशभर में काफी बवाल मचा दिया है तथा देशवासी मोदी के इस बयान को सैनिकों के अपमान के रूप में देख रहे हैं। मोदी के इस बयान के बाद देशभक्तों में आक्रोश पैदा होना स्वाभाविक है क्यों कि वह देश की रक्षा तथा एकता और अखंडता को अछुण्य बनाये रखने में सैनिकों के उत्कृष्ट योगदान से भली भांति वाकिफ हैं वहीं उन्हें यह भी अच्छी तरह ज्ञात है कि राजनीतिक फायदे के लिये व्यापारियों के तुष्टिकरण के उद्देश्य से नरेन्द्र मोदी ने सैनिकों को अपमानित करने वाला यह जो बयान दिया है उससे देश की हिफाजत के लिये मर मिटने का जज्बा रखने वाले रणबाकुरों केमनोबल पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और अरब सागर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक देश की सीमाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में देश के जांबाज सैनिकों को जहां चीन और पाकिस्तान जैसे दुश्मन देशों की गिद्धदृष्टि से प्रतिदिन जूझना पड़ता है वहीं देश प्रेम का जज्बा लिये भारतीय सैनिक किसी भी परिस्थिति में देश के दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिये तैयार रहते हैं। कई बार सैन्य अनुशासन और देश के राजनीतिक नेतृत्व द्वारा निर्धारित वर्जनाएं सैनिकों को दुश्मनों पर खुलकर आक्रामक कार्यवाही करने से भी रोकती हैं,इसके बावजूद देश के यह सपूत कभी भी अपने कर्तव्यपथ से विमुख नहीं होते। लेकिन अब देश के नेताओं द्वारा सैनिकों पर भी राजनीतिक बयानबाजी का दौर शुरू किये जाने से स्पष्ट हो गया है कि देश की राजनीति पूरी तरह सत्ता एवं स्वार्थ आधारित हो गई है तथा इसमें मान्यताओं, परंपराओं तथा मूल्यों के लिये शायद कोई स्थान नहीं रह गया है। देश का बुद्धिजीवी वर्ग यह तो अच्छी तरह जानता है कि देश के इतिहास,भूगोल, लोकतांत्रिक शासन प्रणाली तथा देश के कानून आदि के संदर्भ में राजनीतिक नुमाइंदों द्वारा यदि गैर जिममेदारीपूर्ण व विरोधाभाषी बयानबाजी की गई तो देशहित की दृष्टि से इसके नतीजे अत्यंत घातक होंगे तथा  लोगों के बीच सनसनी फैलाने तथा सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिये स्तरहीन जुमलों और तथ्यहीन व औचित्यहीन बयानों का सहारा लिया जाना किसी भी दृष्टि से राष्ट्रहित में नहीं है। मोदी द्वारा अपने राजनीतिक विरोधियों पर सियासी हमला करने के लिये आपत्तिजनक एवं अपमानजनक शब्दावली का इस्तेमाल तो काफी समय से किया जा रहा है तथा अन्य राजनीतिक नुमाइंदे भी अपने राजनीतिक फायदे के लिये ऐसे ही हथकंडे अपनाते हैं लेकिन अब देश के सैनिकों को ही व्यापारियों से कम साहसी बताकर उन्होने यह सिद्ध कर दिया है कि वह वैचारिक एवं नैतिक दिशाहीनता के पूरी तरह शिकार हो चुके हैं। निकट भविष्य में होने वाले लोकसभा चुनावों के मद्देनजर देश के राजनीतिक सूरमाओं के बीच अभी तो आरोप-प्रत्यारोप का दौर और तेज होगा लेकिन कम से कम भारतीय सेना व सैनिकों को तो इस राजनीतिक संग्राम में घसीटने की कोशिश नहीं ही होनी चाहिये क्यों कि खुद का अपमान होते देख यदि देश की सेना व सैनिक ही अपने कर्तव्यपथ पर पूरी तन्मयता और गंभीरतापूर्वक कैसे अग्रसर हो पायेंगे। इस स्थिति में जब देश मिटेगा तो फिर कौन बचेगा। फिर लोकतंत्र कैसे सुरक्षित रहेगा। देश के लोकतांत्रिक ढांचे के छिन्न-भिन्न होने की स्थिति में संसद की क्या प्रासंगिकता और उपयोगिता बचेगी। फिर देश के प्रधानमंत्री या प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार व अन्य सियासी सूरमा देश के भाग्य और भविष्य के निर्धारण में खुद को किस भूमिका में पायेंगे, आदि विषयों पर गहन चिंतन जरूरी है। देश के स्वनामधन्य नेताओं को चाहिये कि वह अपने आचार और विचारों की उत्कृष्टता कायम रखने के लिये खुद की आचार संहिता निर्धारित करें तथा सियासी फायदे की चिंता में लोकतांत्रिक मूल्यों व राष्ट्रहित को छिन्न-भिन्न करने की कोशिश के बजाय अपनी नैतिक एवं वैचारिक पृष्ठभूमि को मजबूत बनाएं। यदि उन्होंने यह चिरपोषित व दुर्लभ कवायद पूुरी कर ली तो फिर उन्हें श्रेष्ठ राजनीतिक मुकाम व सोहरत हासिल करने के लिये अतिरिक्त जद्दोजहद नहीं करनी पड़ेगी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को शहस्त्राब्दी पुरुष माना जाता है तथा उन्होंने सत्य और अहिंसा का मार्ग अपनाकर न सिर्फ देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्ति दिलाई अपितु संपूर्ण विश्ववासियों के बीच श्रेष्ठ आदर्शों की स्थापना की। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अमर हो गये तथा आगे भी वह लाखों लाख भारतीयों और विश्ववासियों के लिये प्रेरणास्त्रोत बने रहेंगे लेकिन इतिहास गवाह है कि गांधी जी ने ख्याति के अमरत्व की यह विशिष्टता हासिल करने के लिये कभी अवांछनीय गतिविधियों और ओछे बयानों का सहारा नहीं लिया तथा इच्छित मुकाम हासिल करने के लिये उन्हें कभी अतिरिक्त जद्दोजह भी नहीं करनी पड़ी । देश के प्रथम गृहमंत्री रहे सरदार वल्लभ भाई पटेल को लौहपुरुष माना गया है। अपने व्यक्तित्व की विशिष्टता और विचारों की दृढ़ता की बदौलत ही सरदार पटेल लौहपुरुष कहलाए लेकिन उन्होने कभी भी किसी का तुष्टिकरण या उत्पीडऩ नहीं किया। देशभर में घूम घूमकर सरदार पटेल के विचारों की अलख जगाने का दावा करने वाले राजनीतिक नुमाइंदे सरदार पटेल के आदर्शों को अपने आचरण में आत्मसात क्यों नहीं करते। इन दो महापुरुषों के साथ-साथ देश हित में अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले अन्य बलिदानी महापुरुषों का भी देश के इतिहास में नाम अमर है तो कम से कम देश के इतिहास में स्थापित महापुरुषों से देश के राजनीतिक नुमाइंदों को कुछ प्रेरणा लेकर उनके द्वारा स्थापित मार्ग में दो-चार कदम चलने की कोशिश तो करना ही चाहिये। यदि इस मामले में ही सत्ता के लालची राजनीतिक नुमाइंदों को किंचित सफलता ही हासिल हो गई तो यह देशहित में उनका बड़ा योगदान माना जायेगा। राजनीतिक फायदे के लिये सेना व सैनिकों को सियासी विवादों में घसीटना बिलकुल ही ठीक नहीं है तथा लोकतंत्र के हित में देश की राजनीति यदि साधना है तो राजनीतिज्ञों को सच्चा साधक बनना पड़ेगा, देश का आम चुनाव यदि लोकतंत्र का महायज्ञ है तो इसकी सकुश
ल संपन्नता के लिये गरिमापूर्ण वातावरण ही विकसित किया जाना चाहिये क्यों कि सुविधा व दुविधापरस्त प्रवृत्ति कभी भी देश का भला नहीं कर सकती।




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