Sunday 23 February 2014

घातक है राजीव के हत्यारों की रिहाई की पहल

सुधांशु द्विवेदी

लेखक प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक हैं

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई के फैसले पर हालाकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगा दी गई है लेकिन इस समूचे घटनाक्रम ने देश की राजनीतिक बिरादरी की दशा और दिशा पर फिर गंभीर प्रश्न खड़ा कर दिया है। राजीव के हत्यारों की रिहाई का फैसला करके खुद को गौरवान्वित महसूस करने वाली तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता का वैसे तो राष्ट्रीय स्तर पर कोई वजूद नहीं है तथा तमिलनाडुमें भी उनका राजनीतिक आभामंडल भी उनकी स्वार्थपरक प्रवृत्ति पर ही केन्द्रित है लेकिन जयललिता ने अपने राज्य में तमिलों के तुष्टिकरण के लिये पूर्व प्रधानमंत्री के कातिलों की रिहाई का फैसला करके यह सिद्ध कर दिया है कि देश के राजनीतिक नुमाइंदे अपने राजनीतिक विरोधियों के प्रति पूरी तरह असहिष्णु तथा नैतिक मूल्यों के प्रति पूर्ण रूपेण उदासीन हो गये हैं और वह अपने राजनीतिक फायदे के लिये अपराधियों को महिमामंडित करने के लिये किसी भी हद तक जा सकते हैं। हालाकि यह तो तय है कि जयललिता फिल्म अभिनेत्री रही हैं तथा उन्हें कानून का ज्यादा ज्ञान नहीं है। साथ ही राजनीतिक जवाबदेही और संवैधानिक प्रतिद्धता का भी उनमें घोर अभाव है लेकिन आश्चर्य इस बात का है कि तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि, एमडीएमके नेता वाइको सहित देश के वामपंथी दलों के कुछ नेताओं ने भी जयललिता के इस फैसले का समर्थन किया है। राजनीतिक विरोधियों को बर्बरतापूर्वक मौत के घाट उतारने वाले नृशंस हत्यारों के प्रति नेताओं में उमड़ता अति अनुराग यह सिद्ध करने के लिये काफी है कि आगे चलकर वह अपने विरोधियों की हत्या की सुपारी देने का कारनामा भी खुले तौर पर कर सकते हैं और जब कातिलों को सजा दिलाने की बारी आयेगी तो वह ऐसे मामलों में अपनी वास्तविक जवाबदेही और प्रतिबद्धता को पूरा करने के बजाय कातिलों को सिर में बिठाकर घूमेंगे।  वहीं दूसरी ओर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इस पूरे घटनाक्रम पर हैरानी व्यक्त करते हुए कहा है कि जब उनके दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री पिता को न्याय नहीं मिल पाया तो फिर देश के आम आदमी को न्याय कैसे मिलेगा। राहुल गांधी की यह चिंता वाकई में विचारणीय है लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि आखिर इन परिस्थितियों के लिये जिम्मेदार कौन है। राहुल गांधी केन्द्र में सत्ताधारी यूपीए सरकार का नेतृत्व कर रही कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं तथा शासन सत्ता सहित संपूर्ण व्यवस्था पर उनका सीधा हस्तक्षेप है तो फिर राहुल गांधी ने समय रहते ऐसे पर्याप्त प्रयास क्यों नहीं किये कि हत्या जैसे जघन्य मामलों के आरोपियों पर जांच एजेंसियों का शिकंजा इस तरह कसे कि अपराधियों पर जांच एजेसियों का शिकंजा इस तरह कसे कि उन्हें अदालत से किसी तरह की राहत मिलने की संभावना ही न बचे। न्यायालय द्वारा फैसले हमेशा ही तथ्यों, तर्कों और प्रमाणों के आलोक में किये जाते हैं तथा खास और आम व्यक्ति को यह उम्मीद रहती है कि उसे इंसाफ के मंदिर में न्याय अवश्य मिलेगा लेकिन कई बार निराशा ही हाथ लगती है। किसी भी मामले में जांच एजेंसी पर यह जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वह हत्या जैसे जघन्य अपराधों में किसी भी केस को न्यायालय में किसी भी परिस्थिति में कमजोर ने होने दे। राजीव गांधी के हत्यारों को राहत देने की निरंतर चल रही कोशिशों के बीच यह कहना भी अति आवश्यक है कि तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि और उनकी पार्टी डीएमके वर्षों तक कांग्रेस पार्टी व यूपीए के अभिन्न सहयोगी रहे हैं तथा करुणानिधि व उनके परिजनों एवं रिश्तेदारों ने इस दौरान केन्द्रीय सत्ता का जमकर फायदा उठाया है तथा मालामाल होने के लिये समस्त नैकित और अनैतिक हथकंडे अपनाये हैं तो फिर इन सब परिस्थितियों के बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी व कांग्रेस के अन्य दिग्गज नेताओं ने करुणानिधि पर समय रहते राजीव गांधी हत्याकांड प्रकरण से खुद को दूर रखने का दबाव क्यों नहीं बनाया। तब तो गठबंधन धर्म और राजनीतिक जरूरत के नाम पर जिम्मेदारियों और प्रतिबद्धताओं को लगातार नजरअंदाज किया जाता रहा। सिर्फ इतना ही नहीं तमिलनाडु विधानसभा में तो राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई का प्रस्ताव भी पारित किया गया था। इस प्रस्ताव का भी करुणानिधि एवं उनकी पार्टी द्वारा समर्थन किये जाने के बावजूद कांग्रेस एवं राहुल गांधी ने इस मामले में प्रभावी तरीके से न तो आपत्ति जताई और न ही कोई संवैधानिक कदम उठाया गया। वजह साफ है कि तमिलनाडु में राजनीतिक फायदे के लिये कांग्रेस नेतृत्व ने भी सिर्फ रस्म अदायगी का काम ही पूरा किया जाता रहा तथा अब तमिलनाडु सरकार द्वारा राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई के फैसले के रूप में मामला हाथ से निकल जाने के बाद घडिय़ाली आंसू बहाए जा रहे हैं। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता द्वारा राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई की पहल बेहद दुर्भाग्यपूर्ण एवं घातक है क्यों कि क्षेत्रवाद व राजनीतिक तुष्टिकरण की राजनीतिज्ञों में बढ़ती प्रवृत्ति ने देश में अस्थिरता, अराजकता व वर्ग संघर्ष के हालात को पहले से ही बढ़ावा दे रखा है त
था इस प्रकार यदि हत्यारों की रिहाई का राजनीतिक आदेश देकर उनका महिमामंडन किया जायेगा तो देश का लोकतांत्रिक ढाचा पूरी तरह छिन्न भिन्न हो जायेगा।



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