Sunday 23 February 2014

चर्चित चेहरों के चुनाव मैदान में उतरने से फायदे में रहेगी आप

सुधांशु द्विवेदी

लेखक प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक हैं


दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिये अपने बीस उम्मीदवारों की सूची जारी करके राष्ट्रीय राजनीति में अपने धमाकेदार प्रवेश की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। देश की राजनीति में अलग तरह के आदर्शों की स्थापना करने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी का प्रयास यह है कि वह आगामी लोकसभा चुनाव में अधिकाधिक सीटें जीतकर शानदार राजनीतिक प्रदर्शन के माध्यम से देश की केन्द्रीय सत्ता के निर्धारण में अग्रणी भूमिका निभाए। देश के मौजूदा राजनीतिक हालात देखकर ऐसा लगता है कि देश के जनता-जनार्दन को साफ-स्वच्छ, निर्विवाद और जनभावनाओं को पूरा करने वाले सशक्त राजनीतिक विकल्प की तलाश तो है। क्यों कि भाजपा के घोषित पीएम इन वेटिंग नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बीच चल रहा आरोप- प्रत्यारोप का दौर उन दोनों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं और एक दूसरे को नीचा दिखाने तथा जनमानसस के बीच खुद को श्रेष्ठ साबित करने की उनकी अतिव्यग्रता को तो प्रदर्शित करता है लेकिन उनके द्वारा विभिन्न मुद्दों पर आत्म चिंतन और आत्म विश्लेषण के प्रति कोई गंभीरता नहीं दिखाई जा रही है। ऐसे में अरविंद केजरीवाल की साफ-स्वच्छ छवि और भ्रष्टाचार के खिलाफ खुली जंग छेडऩे की उनकी जद्दोजहद यह साबित करने के लिये काफी है कि यदि उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ  ठोस कदम उठाने के लिये पर्याप्त अवसर और अनुकूल परिस्थितियों की प्राप्ति हो तो वह भ्रष्टाचार के प्रभावी उन्मूलन की दिशा में काफी सफलता अर्जित कर सक ते हैं। दिल्ली के पिछले विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने उल्लेखनीय प्रदर्शन करते हुए 28 सीटें जीतकर तमाम बड़े राजनीतिक दलों को न सिर्फ अचंभित कर दिया था बल्कि उन्हें यह भी सोचने के लिये विवश कर दिया था कि यदि उहोंने अपनी कथनी और करनी के बीच अंतर को खत्म नहीं किया तथा देश को राजनीतिक प्रयोगशाला समझकर छल, कपट, सुविधा, दुविधा और अवसरवादिता की प्रवृत्ति को खुद से दूर करने की कोशिश नहीं की तो देश के जनता- जनार्दन उनका वजूद मिटा देंगे। अरविंद केजरीवाल को अपने राजनीतिक प्रताप की बदौलत 49 दिन तक दिल्ली के मुख्यमंत्री पद को सुशोभित करने का भी मौका मिला तथा इस दौरान उन्होंने अपने चुनावी वायदे पूरे करने तथा भ्रष्टाचार उन्मूलन की दिशा में प्रभावी कदम उठाने की भी हर संभव कोशिश की। केजरीवाल की दृढ़ इच्छाशक्ति को इसलिये भी पर्याप्त सराहना मिलनी चाहिये कि उन्होंने गैस हेराफ़ेरी को लेकर मुकेश अंबानी सहित जिम्मेदार केन्द्रीय मंत्रियों के खिलाफ एफ़आईआर दर्ज करने का आदेश देने का साहस दिखाया। भारतीय लोकतंत्र की यह विडंबना है कि देश की चुनावी प्रक्रिया भी पूंजीपतियों व राजनीतिक माफियाओं के दुष्प्रभाव से मुक्त नहीं है। देश के कार्पोरेट घराने कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी जैसे बड़े दलों को करोड़ों रुपये का चुनावी चंदा देते हैं फिर इन राजनीतिक पार्टियों के सत्ता में आने पर सत्ता में भी सीधा दखल रखते हुएअपने फायदे के लिये मनमाफिक फैसले कराते हैं। अरविंद केजरीवाल ने अंबानी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश देकर भ्रष्टाचार एवं राजनीतिक अराजकता के खिलाफ अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय तो दिया है,इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। हां यहां यह कहना भी अत्यंत आवश्यक है कि अरविंद केजरीवाल को पारदर्शिता व भ्रष्टचार के मुद्दे पर अपनी करनी व कथनी का भी ध्यान रखना होगा क्यों कि ईमानदारी व नैतिकता किसी भी इंसान की व्यक्तिगत पूंजी है तथा इसका दिखावा हरगिज नहीं होना चाहिये। साथ ही किसी व्यक्ति को सिर्फ ईमानदार होना ही नहीं चाहिये बल्कि उसके व्यक्तित्व व कृतित्व से ईमानदारी झलकनी भी चाहिये। केजरीवाल की विदेशी फंडिंग को लेकर काफी सवाल उठते रहते हैं। स्वयं केन्द्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे भी कुछ ऐसा ही कह चुके हैं, इसके अलावा दिल्ली में व्हीआईपी कल्चर खत्म करने तथा सरकारी बंगला लेने या नहीं लेने पर भी केजरीवाल की कथनी व करनी में काफी विरोधाभास नजर आया है।  केजरीवाल पर आरोप लगाये जाते हैं कि वह सनसनी फैलाने और चर्चा में आने के लिये किसी को भी भ्रष्ट करार दे देते हैं तथा उनके पास किसी को भी भ्रष्ट साबित करने के लिये पर्याप्त प्रमाण नहीं होते। केजरीवाल को चाहिये कि वह राजनीतिक विरोधियों पर आरोप लगाते समय अतिवाद से परहेज करें तथा वह व उनके अन्य सहयोगी भी शालीनता व शिष्टाचार की परंपरा का पालन करें। देश की राजनीति का मौजूदा दौर कुछ ऐसा ही हो गया है कि विरोधियों पर हमले बोलने व आरोप लगाते समय शालीनता व शिष्टाचार का ध्यान नहीं रखा जा रहा है, जो सभ्य-संभ्रांत जनों व जनता-जनार्दन को कतई स्वीकार्य नहीं है। भले ही राजनेताओं के लच्छेदार भाषणों, विरोधियों पर कटाछ करने वाले जुमलों तथा खुद को स्वनाम धन्य सिद्ध करने वाली अन्य बातों को सतही सोच वाले लोग पसंद करें लेकिन देश का अधिकांश जनमानस बनावटी व दिखावटी बातों की परख करना अच्छी तरह जानते हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर अरविंद केजरीवाल आगामी लोकसभा चुनाव की दृष्टि से सियासी रणनीति पर और अधिक प्रभावी तरीके से ध्यान केन्द्रित कर पायेंगे तथा उन्होंने लोकसभा चुनाव के लिये जारी उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची में कई चर्चित चेहरों को मैदान में उतारा है, इसका उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव की दृष्टि से फायदा होगा क्यों कि जनमानस का यह मानना है कि आम आदमी पार्टी द्वारा घोषित
उम्मीदवार जनहित के जज्बे से परिपूर्ण तथा साफ-स्वच्छ व्यक्तित्व के धनी हैं।



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