Sunday 20 April 2014

कांग्रेस को है यूपीए के सत्ता में लौटने की उम्मीद

सुधांशु द्विवेदी
लेखक प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक हैं

देश के लोकसभा चुनाव के लिये छठवें एवं सातवें चरण में 24 व 30 अप्रैल को मतदान होना है। इन दो चरणों में 206 लोकसभा क्षेत्रों में वोट पड़ेंगे, जहां के मतदाता अपने मताधिकार के उपयोग के माध्यम से राजनीतिक धुरंधरों के भाग्य का फैसला करेंगे। अब तक पांच चरणों में हुए मतदान के बाद का फीडबैक लेकर भविष्य की राजनीतिक संभावनाओं को ध्यान में रखकर कांग्रेस नेतृत्व अब आगे के चरणों में होने वाले मतदान के संदर्भ में ज्यादा मुस्तैदी दिखाने वाला है। क्यों कि पार्टी नेतृत्व को उम्मीद है कि अभी तक पांच चरणों में जिन लोकसभा क्षेत्रों में मतदान हुआ है वहां के चुनाव नतीजे तो पार्टी के लिये संतोषजनक रहेंगे ही साथ ही छठवें व सातवें चरण में होने वाले मतदान के संदर्भ में यदि प्रभावी रणनीति अमल में लाई गई तो चुनाव नतीजे और भी सकारात्मक होंगे। यही कारण है कि कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकारों द्वारा पार्टी के पूरे प्रचारतंत्र के बीच समन्वय व पार्टी कार्यकर्ताओं को निरंतर ऊर्जित व उत्साहित करने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस के रणनीतिकारों द्वारा एक तरफ तो आक्रामक चुनाव प्रचार अभियान के सहारे चुनावी बढ़त हासिल करने की कोशिश लगातार की जा रही है वहीं यूपीए गठबंधन को एकजुट रखने व लोकसभा चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद यूपीए के कुनबे में नये सहयोगी दलों को जोडऩे का विकल्प भी साथ रखा जा रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व उपाध्यक्ष राहुल गांधी सहित पार्टी के अन्य बड़े नेताओं द्वारा चुनाव प्रचार के दौरान अपने आक्रामक भाषणों का पूरा फोकस मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी व उसकी रीतियों-नीतियों पर ही केन्द्रित रखा जा रहा है तथा दलीय प्रतिबद्धता कायम रखने के साथ-साथ अन्य धर्म निरपेक्ष दलों को बेवजह निशाना बनाने से भी परहेज किया जा रहा है। अभी पिछले दिनों ही कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने बिहार के किशनगंज लोकसभा क्षेत्र में अपनी चुनाव सभा के दौरान गुजरात के विकास के दावों को जहां टाफी माडल करार दिया वहीं बिहार के विकास माडल की जमकर तारीफ की। बिहार की सरजमीं पर राहुल गांधी के इस भाषण का आशय आसानी से समझा जा सकता है। बिहार में कांग्रेस पार्टी व लालू यादव के नेतृत्व वाली पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के बीच गठबंधन तो है ही साथ ही राहुल गांधी सुशासन बाबू अर्थात नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड को शायद भविष्य में कांग्रेस की परिस्थिति आधारित सहयोगी मानते हैं यही कारण है कि बिहार में राहुल की ताबड़तोड़ जनसभाओं में निशाने पर हमेशा राजग व भारतीय जनता पार्टी ही रहती है जबकि वह नीतीश के खिलाफ बयानबाजी करने से परहेज करते हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार वैसे भी धर्म निरपेक्षता के मुद्दे पर ही भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन राजग से अलग हुए थे तथा लोकसभा चुनाव बाद वह कांग्रेस पार्टी की धर्म निरपेक्ष व समावेशी सोच को ध्यान में रखकर आवश्यकता पडऩे पर यूपीए गठबंधन को सहयोग प्रदान करने से गुरेज नहीं करेंगे। कांग्रेस नेतृत्व को लगता है कि 2004 के लोकसभा चुनाव में लोकसभा की 145 सीटें जीतकर भी वह यूपीए गठबंधन के सत्ता के शिखर तक पहुंचाने में कामयाब हो गई थी तथा पार्टी को उम्मीद है कि मौजूदा लोकसभा चुनाव में भी कम से कम खुद को150 सीटें अर्जित हो जायेंगी तथा 272 का जादुई आंकड़ा पार करने का लक्ष्य सहयोगी दलों व चुनाव बाद करीब आने वाली राजनीतिक पार्टियों की मदद से पूरा हो जायेगा। इस प्रकार कांग्रेस को यूपीए के सत्ता में वापस लौटने की पूरी उम्मीद है। सिर्फ इतना ही नहीं कांग्रेस को भारतीय जनता पार्टी व राजग में मचे अंदरूनी घमासान में भी अपने लिये फायदा नजर आ रहा है तथा भाजपा नेताओं की गैर जिम्मेदाराना बयानबाजी भी भाजपा व राजग के सत्तारोहण के मार्ग में अवरोधक बनेगी, कांग्रेस को यह भीसंभावना नजर आ रही है। बिहार सरकार के मंत्री गिरिराज सिंह द्वारा नरेन्द्र मोदी विरोधियों को लोकसभा चुनाव के बाद पाकिस्तान भेजने की धमकी देने तथा अब बिहार के वरिष्ठ भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी द्वारा गिरिराज सिंह के गैर जिम्मेदाराना बयान को खारिज करने के बाद गिरिराज के बैकफुट में आने के घटनाक्रम को कांग्रेस द्वारा लोकसभा चुनाव में भुनाने की पूरी कोशिश की जायेगी। कांग्रेस के रणनीतिकार आसानी से यह कह सकेंगे कि भारत जैसे बहुलतावादी और वृहद लोकतांत्रिक देश में सभी नागरिकों को अपनी विचारधारा तय करने तथा राष्ट्रीय व सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय स्पष्ट करने व अपना राजनीतिक दृष्टिकोण निर्धारित करने की पूरी आजादी है तथा देश के राष्ट्रनिष्ठ व संवेदनशील नागरिकों को देशभक्ति के मामले में किसी भी राजनीतिक पार्टी या व्यक्ति विशेष के प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं हैं। सहयोग, समन्वय व प्रभावी संवाद के माध्यम से लोकसभा चुनाव में अपनी राजनीतिक संभावनाओं को पुख्ता बनाने में जुटी कांग्रेस पार्टी के लिये यूपीए सरकार की उपलब्धियों का सहारा तो है ही साथ ही पार्टी राजग शासनकाल में सामने आई नाकामियों तथा तत्कालीन सरकार की अदूरदॢशता व कमजोरियों को भी चुनावी हथियार बना रही है। कांग्रेस व यूपीए में जहां राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने पर पूरी आम सहमति है तथा पार्टी के वरिष्ठ नेता भी नेतृत्व के मुद्दे पर एकमत हैं वहीं भाजपा में अभी भी कहीं न कहीं गतिरोध के स्वर उभर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के दुर्ग लोकसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी सरोज पांडे के चुनाव प्रचार के दौरान बांटा जा रहा एक पर्चा पूरी तरह से चर्चा का विषय बन चुका है, जिसमें अभी भी लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री बनवाने की अपील मतदाताओं से की जा रही है। कांग्रेस पार्टी को उम्मीद है कि भ्रष्टाचार, राष्ट्रीय सुरक्षा व महंगाई जैसे मुद्दों पर भी यूपीए व पूर्ववर्ती एनडीए शासनकाल का तुलनात्मक आंकड़ा प्रस्तुत किया जायेगा तो जनता-जनार्दन का प्रतिसाद यूपीए को ही मिलेगा। कांग्रेस द्वारा शुरुआती दौर में तो चुनावी मुहिम को विचारधारा व राष्ट्रीय मुद्दों पर ही केन्द्रित किये जाने का प्रयास किया जा रहा था लेकिन भाजपा व उसके नेताओं द्वारा कांग्रेस के दिवंगत नेताओं के अपमान तथा सोनिया व राहुल गांधी पर व्यक्तिगत निशाना साधने का सिलसिला चलाये जाने के बाद कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकारों द्वारा भी राजनीतिक हमलों के तरीके में बदलाव लाजिमी हो गया है। पूरे परिदृश्य पर अगर दृष्टिपात किया जाये तो ऐसा लगता है कि चुनाव प्रचार को लेकर भी भाजपा में चुनाव प्रचार के मुद्दों व बयानबाजी की रणनीति के संदर्भ में दो खेमे निर्मित हो गये हैं। एक खेमे के लोग अतिरंजित तरीके से चुनाव प्रचार कर रहे हैं तो दूसरे खेमे में शामिल नेता अपेक्षाकृत सहिष्णुता व सदाशयता का भाव परिलक्षित कर रहे हैं। अभी गत दिवस ही मध्यप्रदेश में अपने चुनावी प्रवास के दौरान भाजपा नेता व पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने राष्ट्र उत्थान के संदर्भ में पं. जवाहरलाल नेहरू की तारीफ की थी, इसे एक प्रतिष्ठित व स्थापित राजनेता के राजनीतिक शिष्टाचार ही माना जा सकता है। 

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