Wednesday 23 April 2014

कोई भी दल नहीं देता शुचितापूर्ण राजनीतिक व्यवस्था की गारंटी

सुधांशु द्विवेदी

लेखक प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक हैं

देश के मौजूदा लोकसभा चुनाव से पहले जनता-जनार्दन में उम्मीद जगी थी कि राजनेताओं की विवादास्पद होती कार्यशैली तथा राजनीति में अपराधवाद व भ्रष्टाचार के बढ़ते दुष्प्रभाव को मद्देनजर रखते हुए देश के राजनीतिक दलों द्वारा व्यापक राष्ट्रहित एवं लोकहित में राजनीतिक व्यवस्था को शुचितापूर्ण बनाने की दिशा में प्रभावकारी प्रयासों को भी चुनावी मुद्दा बनाया जायेगा लेकिन वर्तमान हालात को देखकर ऐसा लगता है कि देश की राजनीतिक बिरादरी अवसरवादिता व सत्ता लोलुपता के दलदल से अभी भी नहीं उबर पाई है। भ्रष्टाचार एवं राजनीति के अपराधीकरण को रोकनें की आवाज यदा-कदा भले ही राजनीतिक दलों व उनके नेताओं के चुनावी भाषणों में सुनाई दे रही हो लेकिन इस मामले में राजनेताओं की कथनी और करनी के बीच व्याप्त बड़ा अंतर भविष्य में कम हो पायेगा इस बात की कोई संभावना दिखाई नहीं देती। आम आदमी पाटी के नेता अरविंद केजरीवाल ने अमेठी में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं को रिश्वत लेकर मतदान करने के लिये उत्प्रेरित करके नये विवाद को जन्म दे दिया है। केजरीवाल का कहना है कि लोग मतदान के दौरान दूसरे राजनीतिक दलों से मिलने वाले पैसे एवं अन्य संसाधनों को लेने में कोई संकोच नहीं करें तथा ऐसी रिश्वत लेने के बावजूद वह मतदान आम आदमी पार्टी के पक्ष में ही करें। उधर इसी मामले में अरविंद केजरीवाल और कुमार विश्वास समेत 10 लोगों के खिलाफ आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन को लेकर एफआईआर दर्ज की गई है। अधिकारियों द्वारा चुनाव प्रचार का वीडियो देखे जाने के बाद इन लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है । आरोप है लगा कि आप नेताओं ने बिना इजाजत के रोड शो किया और ट्रैफिक नियम की धज्जियां उड़ाईं। अपनी नवोदित राजनीतिक पार्टी को लोकसभा चुनाव के घमासान में शामिल करके राष्ट्रीय राजनीति में अपने और पार्टी के सुनहरे भविष्य का सपना देख रहे अरविंद केजरीवाल ने मतदाताओं से ऐसी विवादास्पद अपील करके वर्षों पुरानी उसी राजनीतिक व्यवस्था को एक बार फिर मजबूत बनाने का प्रयास किया है जिसके तहत राजनेता चुनावी लाभ के लिये समस्त नैतिक एवं अनैतिक तरीके अपनाते हुए सिर्फ अपनी जीत को ही एक मात्र राजनीतिक लक्ष्य मानते हैं। यह सर्वविदित है कि देश के जनता-जनार्दन द्वारा मतदान में यदि मताधिकार का उपयोग किया जाता है तो उसके पीछे मतदाताओं के स्वार्थ नहीं बल्कि उनकी राष्ट्रनिष्ठा व नागरिक कर्तव्यों के निर्वहन की उनकी प्रतिबद्धता की ही प्रमुख भूमिका होती है फिर रिश्वत लेकर मतदान करने जैसी विवादास्पद अपील को तो मतदाताओं को गुमराह करने का प्रयास ही माना जायेगा। दरअसल देश के राजनेताओं की भीड़ में केजरीवाल ही वह अकेले नेता नहीं हैं, जिन्हे मतदाताओं को गुमराह करने का दोषी माना जा सकता है। पिछले एकाध माह पूर्व ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार ने महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं को फर्जी मतदान करने के लिये उत्प्रेरित किया था। इस संदर्भ में चुनाव आयोग द्वारा सख्त रवैया अपनाते हुए पवार के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया गया था तथा इस प्रकार लोकतांत्रिक मूल्यों की सरेआम धज्जियां उड़ाने के लिये देशभर में शरद पवार की आलोचना हुई थी। यही हालत राजनीतिक के अपराधीकरण की संक्रामक महामारी की है। विडंबना यह है कि राजनीति के अपराधीकरण के मुद्दे पर राजनीतिक दल एवं उनके नेता सिर्फ अपने विरोधियों को ही कठघरे में खड़ा करने तथा उन पर निशाना साधने की कोशिश करते हैं जबकि इस मुद्दे पर न तो उनके द्वारा आत्मचिंतन व आत्म विश्लेषण किया जाता और न ही राजनीति का अपराधीकरण रोकने के लिये उनके द्वारा कोई स्व स्फूर्त पहल की जातीहै। देश के लगभग सभी राजनीतिक दलों ने लोकसभा चुनाव में दागियों और आपराधिक पृष्ठभूमि वाले दावेदारों को चुनावी टिकट से नवाजने का काम किया है। विवादास्पद दावेदारों का पार्टी टिकट तय होने के बाद मीडिया व अन्य माध्यमों से उनकी छवि की असलियत उजागर होने तथा जनमानस में उनके प्रति विरोध पनपने के बावजूद न तो राजनीतिक दलों ने उनका टिकट निरस्त करने की कोई जहमत उठाई और न ही ऐसे विवादास्पद दावेदारों ने खुद चुनाव मैदान से हटने का साहस दिखाया। अब बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने विरोधी राजनीतिक दलों पर अपराधियों को लोकसभा टिकट दिये जाने का आरोप लगाया है तथा वह आये दिन भ्रष्टाचार व राजनीति में हावी अपराधवाद को लेकर विरोधी राजनीतिक दलों पर निशाना साधती रहती हैं लेकिन विडंबना यह है कि खुद मायावती की पार्टी बसपा में  भी कई आपराधिक पृष्ठभूमि वाले दावेदारों को लोकसभा चुनाव का टिकट देकर उनकी उम्मीदवारी पर मुहर लगाई है तथा उत्तरप्रदेश की पूर्ववर्ती मायावती सरकार के कई मंत्री तो गंभीर घपले-घोटालों के आरोप में जेल में भी बंद हैं। राष्ट्रीय जनता दल के सांसद प्रभुनाथ सिंह के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी हुआ है फिर भी वह राष्ट्रीय जनता दल की चुनावी  किस्मत चमकाने तथा अपनी रराजनीतिक प्रतिष्ठा को पुन: स्थापित करने की मोर्चेबंदी का दावा कर रहे हैं। साथ ही उनकी पार्टी के नेता लालू यादव आये दिन ऐसे ही मुद्दों को लेकर राजनीतिक विरोधियों पर प्रहार करते हैं, ऐसे में अब जबकि उनकी ही पार्टी के सांसद के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी हो गया है तो फिर इस संदर्भ में लालू क्या जवाब दे पायेंगे, यह विचारणीय विषय है। कई दावेदार तो जेल में रहकर ही चुनाव लडऩे व सांसद बनने का मंसूबा पाले हुए हैं। सांसद धनंजय सिंह को जौनपुर संसदीय क्षेत्र से नामांकन पत्र दाखिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों अंतरिम जमानत प्रदान की थी। धनंजय सिंह और उनकी पत्नी जागृति सिंह अपनी घरेलू नौकरानी की हत्या के आरोपी हैं, जिन्हें जेल की सजा भुगतनी पड़ रही है। देश के राजनीतिक जगत ने देश की लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था व चुनावी प्रक्रिया को सिर्फ सत्तासुख का आधार ही माना है जबकि श्रेष्ठ लोकतांत्रिक मूल्यों व मान्य परंपराओं के प्रति उनमें कोई आस्था नहीं है, कम से कम वर्तमान परिस्थितियों को देखकर तो ऐसा ही लगता है। लोकतंत्र एवं जनमानस के प्रति अपने जिम्मेदारियों व जवाबदेही को नजरअंदाज करके सिर्फ विरोधियों पर भ्रष्टाचार एवं राजनीति के अपराधीकरण का दोषारोपण करके राजनेता व राजनीतिक दल यदि अपने अपेक्षित राजनीतिक लक्ष्य को पूरा करने में कामयाब हो भी जाते हैं तो इससे न तो देश का भला होने वाला है और न अव्यवस्था से तंग आ चुके जनमानस को किसी तरह की राहत मिल पायेगी क्यों कि सुचितापूर्ण राजनीतिक व्यवस्था की गारंटी तो किसी भी राजनीतिक दल और उसके नेताओं द्वारा दी ही नहीं जा रही है।

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