Friday 30 May 2014

औचित्यहीन है धारा 370 का विवाद

सुधांशु द्विवेदी
लेखक प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक हैं

जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने की प्रक्रिया व विचार विमर्श शुरू किये जाने संबंधी प्रधानमंत्र कार्यालय में राज्यमंत्री डॉ. जीतेन्द्र सिंह के बयान के बाद देश के राजनीतिक गलियारों में तीखी प्रतिक्रिया का दौर शुरू हो गया है। मौजूदा कामकाज संभालने के पहले ही दिन केन्द्र सरकार के मंत्री ने अनुच्छेद 370 को लेकर विवादित बयान दे दिया। उसके बाद इस मुद्दे पर विवाद बढ़ गया है।  राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने  कहा था कि सभी संबंधित पक्षों से बातचीत शुरू हो गई है और हम ऐसे लोगों को विश्वस्त करने की कोशिश करेंगे, जो अब तक इसके लिए तैयार नहीं हैं। हालांकि बाद में जीतेंद्र सिंह ने सफाई देते हुए कहा कि उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है। उन्होंने कहा कि मैं साफ करना चाहता हूं कि मीडिया में अनुच्छेद 370 के बारे में जो खबरें दिखाई जा रही हैं, उनमें मेरा बयान गलत तरह से पेश किया जा रहा है। इस बारे में जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने ट्वीट पर कहा है कि जम्मू कश्मीर और शेष भारत के बीच एकमात्र संपर्क अनुच्छेद 370 है और इसे हटाने की बात करना न सिर्फ कम जानकारी का परिचायक है बल्कि गैरजिम्मेदाराना भी है। अब्दुल्ला का कहना है कि नए राज्य मंत्री कहते हैं कि अनुच्छेद 370 को हटाने की प्रक्रिया व विचार-विमर्श शुरू हो गया है। वाह! बहुत तेज शुरुआत है। पता नहीं कौन बात कर रहा है। अब्दुल्ला ने तो यह भी कहा है कि अनुच्छेद 370 को हटाने का असर कश्मीर के भारत से अलग हो जाने तक भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि मेरे इस ट्वीट को सेव कर लीजिए। जब यह सरकार एक भूली-बिसरी याद बन चुकी होगी, तब या तो धारा 370 मौजूद रहेगी या जम्मू कश्मीर भारत का अंग नहीं रहेगा। उधर अपने पहले बयान में जितेंद्र सिंह ने कहा था कि अगर बहस ही नहीं होगी तो जो लोग समझने को तैयार नहीं हैं, उन्हें कैसे बताया जाएगा कि अनुच्छेद 370 की वजह से उन्हें क्या कुछ नुकसान हो रहे हैं। उनका कहना था कि 370 भौतिक से ज्यादा एक मनोवैज्ञानिक बाधा है और सरकार हर पक्ष के साथ विचार-विमर्श के लिए तैयार है। उन्होंने तर्क दिया कि बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर की छह में से आधी सीटें जीती हैं। उन्होंने कहा कि हमें आधी सीटें मिली हैं। अगर आप वोटर के लिहाज से सोचें तो 50 फीसदी वोटर हमारे साथ हैं यानी वे बीजेपी के अजेंडे का समर्थन करते हैं। हालाकि अब विवाद बढऩे पर जीतेन्द्र सिंह अपने बयान से पीछे हट गए हैं तथा उनका कहना है कि उनके बयान को तोड़-मरोडक़र प्रस्तुत किया गया है लेकिन यदि वास्तविक तौर पर देखा जाये तो कश्मीर सहित अन्य विवादित मुद्दों को लेकर सरकार के दृष्टिकोण में काफी विरोधाभास नजर आ रहा है। सरकार द्वारा एक तरफ तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपने शपथ समारोह का आतिथ्य प्रदान करके दोनों देशों के बीच संबंध बेहतर बनाने व कश्मीर समस्या के शांतिपूर्ण व स्थायी समाधान की कवायद की जा रही हैं वहीं धारा 370 पर हड़बड़ीपूर्ण रुख अख्तियार करके कश्मीर में अनावश्यक तनाव व सियासी हलचल को बढ़ावा देने की कोशिश का जा रही है। केन्द्रीय राज्य मंत्री ने भले ही अपने विवादित बयान से पल्ला झाड़ लिया हो लेकिन इससे पहले उनके द्वारा उपरोक्त बयान देने से वा-प्रतिवाद की पृष्ठभूमि तो तैयार हो ही गई। केन्द्र की नई सरकार द्वारा कामकाज संभालने के साथ ही उसका उद्देश्य देश व देशवासियों की बेहतरी होना चाहिये था ताकि देशवासियों की तमाम ज्वलंत समस्याओं के समाधान का मार्ग प्रशस्त होता लेकिन प्रारंभिक दौर में ही संविधान की धारा 370 जैसे संवेदनशील विषय को बहस का मुद्दा बनाना कहीं न कहीं सरकार की जल्दबाजी को ही परिलक्षित करता है। यथा सर्व विदित है कि धारा 370 कश्मीर, कश्मीरी और कश्मीरियत को भारत से जोड़े रखने का प्रमुख आधार है तथा इस मुद्दे पर कोई भी नीतिगत निर्णय लेने से पहले व्यापक राजनीतिक आम सहमति जरूरी होगी। ताकि इस मुद्दे पर सरकार पर जन भावनाओं की उपेक्षा का आरोप नहीं लगे साथ ही सरकार के किसी भी कदम से देश की एकता व अखंडता पर भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े। संविधान की धारा 370 के मुद्दे पर कोई भी निर्णय या विचार विमर्श की प्रक्रिया आगे बढ़ाते समय जम्मू कश्मीर में प्रभावशाली राजनीतिक दलों व उनके नेताओं को विश्वास में लिया जाना बेहद जरूरी होगा तथा इस मुद्दे पर अनावश्यक विवाद खड़ा करने से किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो पायेगा। 

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