Saturday 31 May 2014

कालाधन वापस लाने के मार्ग में हैं कई रुकावटें

सुधांशु द्विवेदी
लेखक प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक हैं

केन्द्र की मौजूदा सरकार द्वारा विदेशों में जमा भारतीयों के काला धन का पता लगाने और उसे वापस लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए एसआईटी का गठन किया गया है, ऐसे में देशवासियों के मन में यह उम्मीद तो जगी है कि इस मामले में जल्द ही कोई उत्साहजनक नतीजा सामने आयेगा लेकिन वास्तव में यदि देखा जाये तो इस संपूर्ण कवायद के रास्ते में कई रुकावटें हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा कालाधन के संदर्भ में जारी आदेशों के परिपालन में केन्द्र सरकार द्वारा एसआईटी के गठन को एक महत्वपूर्ण व उत्साहजनक कदम माना जा सकता है लेकिन कालाधन वापस लाने की कवायद को किसी परिणामी मुकाम तक पहुंचाने के लिये यह बेहद जरूरी होगा कि इसके लिये देश में व्यापक राजनीतिक आम सहमति तैयार की जाये। क्यों कि राष्ट्रहित में किसी सकारात्मक पहल के कामयाब होने के मार्ग में राजनीतिक दलों व उनके नेताओं की सहूलियत व सुविधापरस्त प्रवृत्ति सबसे बड़ी बाधा बनती है। सरकार द्वारा ब्लैक मनी की जांच के लिए स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) बनाने का ऐलान किये जाने के बाद देशवासियों में कालाधन के संदर्भ में उत्सुकता तो जागृत हुई है तथा लोगों को लग रहा है कि यदि कालाधन वापस लाने की कवायद पूरी होती है तो इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में भी मदद मिलेगी।  स्विस प्रशासन को पूर्व वित्त मंत्री पी.चिदंबरम द्वारा  कालाधन को लेकर चार चि_ियां लिखी गई थीं । तब स्विस प्रशासन की ओर से जबाव दिया गया था कि स्विस प्रशासन ने फैसला किया है कि 2011 के बाद के भारतीयों के खाते के बारे में सूचना दी जाएगी। वह भी इस शर्त पर कि भारत सरकार को लिखित रूप से यह आग्रह करना होगा कि उसे इसकी सूचना दी जाये। इसके साथ ही यदि किसी भी देश की सरकार को किसी भी व्यक्ति के बारे में संदेह है कि उसका खाता स्विस बैंक में है तो सरकार को पहले उस व्यक्ति के विरुद्ध आपराधिक प्रकरण पंजीबद्ध करना होगा, तभी उस व्यक्ति के बारे में कोई जानकारी दी जा सकेगी। जर्मनी द्वारा हाल ही में विदेशी बैंकों में जमा कालाधन को लेकर कुछ जानकारियां जमा की गई हैं। केन्द्र सरकार द्वारा एसआईटी का प्रमुख सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एम.वी. शाह को बनाया गया है जबकि सुप्रीम कोर्ट के ही पूर्व जज अरिजित पासायत एसआईटी के वाइस चेयरमैन होंगे। समस्या यह है कि अभी तक किसी भी विदेशी या भारतीय एजेंसी के पास यह पुख्ता जानकारी नहीं है कि भारतीयों की कितना कालाधन  विदेशों में जमा है। केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार एसआईटी का गठन किया है। केन्द्र सरकार द्वारा गठित टीम यह पता लगाएगी कि भारत में कितना कालाधन है तथा कितने का प्रवाह विदेशों में हो रहा है। हवाला कारोबार के जरिये भी कालाधन का प्रवाह विदेशों में होता है। महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि एसआईटी को किस हद तक अधिकार संपन्न बनाया जाता है। क्या एसआईटी को किसी के खिलाफ वित्तीय आपराधिक मामला पंजीबद्ध करने, सरकार की इजाजत के बगैर दूसरे देशों की जांच एजेंसियों के साथ सीधे वाद-संवाद करने , उनसे ब्योरा प्राप्त करने तथा उस पर कार्रवाई करने का अधिकार से भी एसआईटी को परिपूर्ण बनाया जायेगा। एक आकलन के अनुसार भारत और दूसरे देशों में कहां-कहां और कितना कालाधन जमा है यह पता लगाने  के लिए छह महीने लग सकते हैं। इस लंबी चलने वाली प्रक्रिया का तात्पर्य यह है कि एसआईटी पहले तो कालाधन से जुड़े आंकड़ों को इकट्ठा करेगी, इसके पश्चात  इसकी रिपोर्ट सरकार को सौंपी जाएगी और फिर इसको किस तरह से देश में वापस लाया जाए, इसके तरीकों पर विचार विमर्श किया जायेगा । ऐसा कहा जा रहा है कि भारत में दो तरीको से कालेधन को वापस ला सकता है। पहला यह कि उसे इन लोगों के खिलाफ वित्तीय आपराधिक प्रकरण पंजीबद्ध करना होगा और साबित करना होगा कि यह कालाधन है यानी इस पर टैक्स की अदायगी नहीं की गई है तथा दूसरा उन लोगों के नामों को भी  सार्वजनिक करना होगा तथा  स्विस प्रशासन को तकनीकी रूप से यह बताना अनिवार्य होगा कि जो धन उसके यहां जमा किया गया है, वह कालाधन के दायरे में आता है। इतनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद सरकार को यह धन जब्त करने का अधिकार होगा। ऐस कहा जा रहा है कि अमेरिका तक को कालाधन विरोधी इस मुहिम में सफलता अर्जित नहीं हो पाई है तो फिर भारत के लिये तो कालाधन वापस लाना और भी अधिक मुश्किल व चुनौतीभरा होगा। यह बात सही है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को कमजोर करने में कालाधन की बड़ी भूमिका है। लेकिन राजनेताओं और सरकार ने समय रहते इस स्थिति से काई सबक नहीं लिया, कालाधन के मुद्दे पर देश में सिर्फ राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर ही चलता रहा है तथा राजनीतिक दलों द्वारा इस मुद्दे पर निहायत राजनीतिक दृष्टिकोण अपनाते हुए इसे चुनावी लाभ का अधार भी बनाया जाता रहा है। ऐसा कहा गया है कि  भारत से केवल 2010 में 1.6 बिलियन डालर पैसा बाहर गया। वहीं एक दशक की बात की जाये तो 123 बिलियन डालर पैसा कालेधन के रूप में देश से निकल गया। इस दरम्यान सबसे ज्यादा कालाधन बाहर जाने वाले देशों की सूची में भारत का आठवां स्थान  है। चीन, मैक्सिको, मलेशिया, सउदी अरब, रूस, फिलीपिन्स और नाईजीरिया के बाद सबसे ज्यादा पैसों का प्रवाह हमारे ही देश में है। दुर्भाग्यवश  एक ओर जहां भारत में विकास प्रक्रिया निरंतर आगे बढ़ रही है वहीं दूसरी ओर भारत से पैसों की बड़ी मात्रा कालेधन के रूप में विदेशों में पहुंच गई है। 


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