Friday 30 May 2014

कश्मीरी पंडितों के उत्थान व कल्याण की बढ़ी उम्मीद

सुधांशु द्विवेदी
लेखक प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक हैं

केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कार्यभार संभालते ही समीक्षा बैठक में सबसे पहले कश्मीरी पंडितों पर चर्चा की है। ऐसा लग रहा है कि सरकार की प्राथमिकता में पंडितों को फिर से कश्मीर में बसाना और उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करने का मुद्दा प्रमुखता के साथ शामिल है। यदि ऐसा हो पाता है तो यह कश्मीरी पंडितों के लिये बड़ी सौगात ही मानी जायेगी।  समीक्षा बैठक में आतंरिक सुरक्षा के नए ब्लू प्रिंट पर चर्चा हुई है। इस दौरान राजनाथ ने दशकों से विस्थापित कश्मीरी पंडितों को फिर से बसाने के लिए ठोस नीतियां बनाने पर जोर दिया। गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ लगभग तीन घंटे चली बैठक में राजनाथ ने आंतरिक सुरक्षा को सबसे अहम बताते हुए नया ब्लूप्रिंट तैयार करने का निर्देश भी दिया है। राजनाथ ने आंतरिक सुरक्षा के साथ-साथ नक्सल, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर की समस्या पर अलग से विस्तृत प्रजेंटेशन तैयार करने का भी निर्देश दिया। केन्द्रीय गृहमंत्री की ताजा पहल से यह भी माना जा सकता है कि सरकार के एजेंडे में आतंकवाद के कारण दरबदर हुए कश्मीरी पंडितों को फिर से घाटी में बसाने की इच्छाशक्ति प्राथमिकता के आधार पर शामिल  है। सरकार कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा, रहने के लिए घर, रोजगार और उनके बच्चों की शिक्षा के लिए विशेष प्रबंध करेगी और उनकी आर्थिक मदद की प्रतिबद्धता भी पहले ही जता चुकी है। यहां यह कहना आवश्यक होगा कि कश्मीरी पंडितों केपुनर्वापसी की बातें तो लंबे अरसे से की जाती रही हैं, लेकिन इसके लिए अभी तक ठोस कदम नहीं उठाया जा सका है। कश्मीर में होने वाले रक्तपात व अन्य परिस्थितिजन्य कारणों के चलते कश्मीरी पंडितों को लंबे समय से संकटमय हालातों का सामना करना पड़ता रहा है तथा स्थिति के सामान्य होने की संभावना नगण्य होते देख कश्मीरी पंडित कश्मीर छोडक़र देश के अन्य हिस्सों में पलायन के लिये विवश होते रहे हैं। सच कहें तो कश्मीर के पंडित एक ऐसा समुदाय बनने के लिये विवश होते रहे हैं जो बिना किसी गलती के ही अपने घर से बेघर हो गये हैं। वर्षों से कश्मीर में रह रहे कश्मीरी पंडितों को 1990 में आतंकवाद की वजह से घाटी छोडऩी पड़ी थी या उन्हें जबरन निकाल दिया गया था। कश्मीरी पंडितों पर कश्मीर में बड़े पैमाने पर अत्याचार किया गया। हत्या जैसी गंभीर वारदातें भी सामने आईं। यह दौर कई वर्षो तक चला, लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा कभी भी उन्हें सुरक्षा प्रदान करने में रूचि नहीं दिखाई गई। मौजूदा समय में भी कश्मीरी पंडित जम्मू और दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में बदहाल अवस्था में रहने के लिये मजबूर हैं। आतंकियों के निशाने पर कश्मीरी पंडित रहे, जिससे उन्हें अपनी पवित्र भूमि से बेदखल होना पड़ा था और उनके पास अपने ही देश में शरणार्थियों जैसा जीवन बिताने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी के लिए विभिन्न केंद्रीय व राज्य सरकारों द्वारा लगातार प्रयास करने का दावा करते हुए कई पैकेजों की घोषणा भी की जाती रही है लेकिन सार्थक नतीजे सामने नहीं आये। विस्थापित कश्मीरी पंडितों के संगठन पनुन कश्मीर के नेता  कश्मीरी पंडितों की कश्मीर में वापसी के लिये लगातार प्रयास करते रहे हैं लेकिन राजनेताओं की संवेदनहीनता व दृढ़ इच्छाशक्ति के अभाव के चलते उनके प्रयासों को कामयाबी नहीं मिल पाई वहीं जम्मू कश्मीर के राजनीतिक समीकरण भी कश्मीरी पंडितों की कश्मीर में वापसी व उनकी समस्याओं के निराकरण के मार्ग में बड़ी बाधा बनते रहे हैं। विस्थापन का दंश झेलने के चलते कश्मीर की सियासत में कश्मीरी पंडितों की कोई निर्णायक भूमिका नहीं रह गई है। आंकड़े बताते हैं कि कश्मीर से 1989 और 90 में लगभग पांच लाख कश्मीरी पंडितों का विस्थापन हुआ था जबकि सरकार का दावा रहा है कि यह संख्या एक लाख से कम थी। विस्थापित कश्मीरी पंडित जम्मू व ऊधमपुर के विस्थापित शिविरों में भी रह रहे हैं। वहीं कई विस्थापित दिल्ली व देश के अन्य शहरों में शरण लिए हुए हैं। सच्चाई तो यह है कि कश्मीरी पंडितों को घाटी में बसाने लायक जिस माहौल की आवश्यकता है उसका वर्षों से अभाव रहा है वहीं पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए घोषित पैकेज भी नौकरशाही की भेंट चढ़ गया। इस प्रकार सवाल यह उठता रहा है कि विपन्नता व विस्थापन का दंश झेलने के लिये मजबूर कश्मीरी पंडित अपनी सुरक्षा व आत्म सम्मान की लड़ाई कैसे लड़ सकते हैं।  केन्द्र की मौजूदा सरकार द्वारा विस्थापित कश्मीरी पंडितों की कश्मीर में फिर वापसी व उनके पुनर्वास व कल्याण की दिशा में जो कवायद की जा रही है उसे स्वागत योग्य तो माना जा सकता है लेकिन इन प्रयासों की सार्थकता तभी सिद्ध होगी जब सरकार की सोच कार्य रूप में परणित हो तथा विस्थापित कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास व उनके आर्थिक व सामजिक कल्याण की दिशा में किये जा रहे प्रयासों के ठोस नतीजे सामने आयें। 

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