Thursday 8 May 2014

चुनाव परिणाम को लेकर सशंकित हैं राजनीतिक दल

सुधांशु द्विवेदी

लेखक प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक हैं

देश के मौजूदा लोकसभा चुनाव के लिये अब जब कि मतदान का एक ही चरण शेष है तथा आगामी 16 मई को चुनाव परिणाम घोषित होने के साथ यह भी तय हो जायेगा कि लोकतंत्र के भाग्य विधाता जनता जनार्दन ने किस राजनीतिक दल या गठबंधन को सत्ता का ताज सौंपा है तथा किन राजनीतिक दलों व उनके क्षत्रपों को सत्तारोहण के लिये अभी और इंतजार व संघर्ष करना पड़ेगा, इस बीच राजनीतिक दलों व उनके नेताओं का चुनाव परिणामों को लेकर सशंकित भाव भी स्पष्ट रूप दे दृष्टिगोचर हो रहा है। यही कारण है कि राजनीतिक दल व उनके वरिष्ठ रणनीतिकार चुनाव परिणाम घोषित होने से पहले ही भावी सियासी संभावनाओं तथा चुनाव बाद गठबंधन व आवश्यकता पडऩे पर समर्थन देने या लेने जैसे विषयों पर गंभीर चिंतन के साथ ही तमाम विकल्पों पर दृष्टिपात भी कर रहे हैं। चाहे देश में सत्ताधारी यूपीए गठबंधन की मुखिया कांग्रेस पार्टी हो या मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी। समाजवादी पार्टी हो या बहुजन समाज पार्टी, नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड हो या ममता बैनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस। दक्षिण भारत की क्षेत्रीय पार्टियां हों या वामपंथी दल। सभी राजनीतिक दल चुनाव बाद की भावी राजनीतिक संभावनाओं को ही सत्ता निर्धारण या सत्तारोहण में अपनी भूमिका का आधार मान रहे हैं तथा इस बात की आशंका सभी दलों को है कि यदि किसी भी पार्टी या गठबंधन को लोकसभा चुनाव में बहुमत नहीं मिला तो फिर वह किस भूमिका में होंगे। लोकसभा चुनाव के उत्तरार्ध में अमेठी व रायबरेली में राहुल गांधी व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के चुनाव प्रचार अभियान में अग्रणी भूमिका निभाने वाली प्रियंका गांधी ने कहा है कि इस लोकसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलेगा। वहीं राहुल गांधी का कहना है कि कांग्रेस पार्टी को लोकसभा चुनाव के यूपीए के बाहर के किसी भी राजनीतिक दल को समर्थन देने या उससे समर्थन लेने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी तथा कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन को पूरे नंबर मिलने के साथ ही एक बार फिर इसी गठबंधन की सत्ता में वापसी होगी। कांग्रेस नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को एकजुट तथा उत्साहित रखने के लिये राहुल गांधी का यह बयान महत्वपूर्ण है लेकिन पार्टी के अंदर विभिन्न स्तरों पर जिस तरह से संभावित चुनाव परिणामों को लेकर चर्चा चल रही है तथा पिछले दिनों केन्द्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद तथा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण की ओर से चुनाव बाद कांग्रेस द्वारा तीसरे मोर्चे को समर्थन देने की बात कही गई उससे स्पष्ट है कि कांग्रेस नेता भी यह मान रहे हैं कि पार्टी को 2009 के लोकसभा चुनाव की अपेक्षा इस लोकसभा चुनाव में कुछ कम सीटों पर ही संतोष करना पड़ सकता है। यही कारण है कि चुनाव बाद की राजनीतिक संभावनाओं को ध्यान में रखकर अभी से नये राजनीतिक दलों को यूपीए में शामिल करने के लिये उनका मन टटोलने की कोशिश की जा रही है। अभी कुछ दिनों पूर्व ही कांग्रेस पार्टी के बड़े रणनीतकार व रक्षामंत्री एके एंटनी ने केरल में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि व्यापक राष्ट्रहित में धर्म निरपेक्ष विचारधारा को मजबूत बनाते हुए सेक्युलर पार्टियों को कांग्रेस का सहयोग करना चाहिये तथा वामपंथी दलों से समर्थन लेने में कांग्रेस को कोई गुरेज नहीं होगा। चुनाव परिणामों को लेकर भारतीय जनता पार्टी भी पूरी तरह आश्वस्त नजर नहीं आ रही है। पार्टी को लगता है कि यदि राजग गठबंधन लोकसभा चुनाव में 272 के जादुई आंकड़े तक नहीं पहुंच पाया तो उसे सत्ता हासिल करने के लिये राजग के बाहर के दलों के समर्थन व सहयोग की जरूरत पड़ेगी। राजग में भाजपा के अलावा दो ही बड़े घटक दल हैं, एक तो महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना और दूसरा पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाला सिरोमणि अकाली दल। भाजपा ने तमिलनाडु में इस बार वहां के कुछ छोटे दलों के साथ गठबंधन  करके चुनाव लड़ा है वहीं आंध्रप्रदेश में पार्टी का गठबंधन चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलगू देशम पार्टी से है। बिहार में पार्टी ने राम विलास पासवान के नेतृत्व वाली लोक जन शक्ति पार्टी के साथ गठबंधन किया है। पार्टी को यदि अपने इन सहयोगी दलों के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव में करिश्माई जीत नहीं मिल पाती है तथा भाजपा के नेतृत्व वाला राजग बहुमत हासिल करने में विफल रहता है तो केन्द्र की सत्ता में अपनी ताजपोशी सुनिश्चित करने के लिये पार्टी को नए सहयोगी ढूंढऩे ही होंगे। बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश में अपनी पार्टी के बेहतरीन प्रदर्शन का दावा कर रही हैं लेकिन इन दावों की हकीकत का पता 16 मई को ही चल पायेगा। क्यों कि 2009 के लोकसभा चुनाव में भी मायावती के तमाम दावों के बावजूद बहुजन समाज पार्टी को 20 सीटें ही हासिल हो पाई थीं। उत्तरप्रदेश में लोकसभा सीटें कम होने का भय तो समाजवादी पार्टी को भी है, ऐसा लगता है कि बलात्कार को लेकर मुलायम सिंह का विवादित बयान व सैफई महोत्सव जैसे अन्य विवादित मामले कहीं समाजवादी पार्टी की सियासी संभावनाओं पर भारी न पड़ जायें। हालाकि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव इस बात से साफ इंकार करते हैं उनका कहना है कि उत्तरप्रदेश में उनकी पार्टी लोक सभा की सर्वाधिक सीटें जीतेगी। मुलायम के पुत्र व उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी ऐसा ही दावा कर रहे हैं। उनका कहना है कि लोकसभा चुनाव के पिछले चरणों में उत्तरप्रदेश के मतदाताओं द्वारा उनकी पार्टी के पक्ष में किये गये जबर्दश्त मतदान से विपक्षी दलों में बौखलाहट बढ़ गई है, यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी उत्तरप्रदेश में बूथ कैप्चरिंग का आरोप लगा रही है।  बिहार राज्य में लोकसभा की 40 सीटें हैं जहां इस बार त्रिकोणीय मुकाबले के आसार साफ-साफ नजर आ रहे हैं। राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनतादल यूनाइटेड को इस बार मैदान में अकेले ही चुनावी दम दिखाना पड़ रहा है। वहीं राष्ट्रीय जनता दल व कांग्रेस का चुनावी गठबंधन इस बार बड़ा करिश्मा कर जाये तो अतिसंयोक्ति नहीं होगी। क्यों कि राज्य की नीतीश सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी माहौल को भुनाने की कोशिश लालू यादव के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनता दल-कांग्रेस गठबंधन द्वारा लगातार की जा रही है वहीं वह मतदाताओं को भाजपा के प्रति भी आगाह कर रहे हैं। अभी पिछले दिनों ही चुनाव प्रचार के दौरान राबड़ी देवी की गाड़ी की विवादास्पद ढंग से तलाशी लिये जाने पर लालू यादव काफी भडक़ गये थे तथा राबड़ी देवी ने भी उनकी पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता और मिल रहे अपार जनसमर्थन के चलते विरोधियों द्वारा उनके खिलाफ साजिश रचे जाने का आरोप लगाया था। चुनाव परिणाम को लेकर वामपंथी दल भी उत्साहित नजर नहीं आ रहे हैं। सीपीआई नेता एबी वर्धन ने हाल ही में संभावना जताई है कि उनकी पार्टी का इस लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन पिछले चुनाव की अपेक्षा कमतर रह सकता है तथा उन्होंने यह भी कहा है कि भाजपा को केन्द्रीय सत्ता से दूर रखने के लिये उनकी पार्टी को ममता बैनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस से समर्थन लेने में भी कोई परहेज नहीं होगा। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि देश के राजनीतिक दल वर्तमान लोकसभा निर्वाचन के चुनाव परिणाम को लेकर आश्वस्त नहीं हैं तथा सभी को बेसब्री के साथ मतगणना दिवस 16 मई का इंतजार है।

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