Friday 2 May 2014

किसानों की बदहाली पर राजनीतिक दलों का ध्यान नहीं

सुधांशु द्विवेदी

देश के मौजूदा लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों एवं उनके क्षत्रपों द्वारा अपनी चुनावी बढ़त सुनिश्चित करके सत्ता सुख अर्जित करने के लिये एड़ीचोटी का जोर लगाया जा रहा है लेकिन देश के अन्नदाता किसान वर्ग की बदहाली दूर करने तथा उनकी बेहतरी सुनिश्चित करने के प्रति आज भी गंभीरता का अभाव दिखाई दे रहा है। सच तो यह है कि किसानों की बदहाली इस लोकसभा चुनाव में चुनावी मुद्दा ही नहीं बन पाई है। कहीं सूखा कहीं बाढ़ तो कभी सूखा कभी बाढ़ की प्राकृतिक आपदा से तंग आ चुके देश के किसान वर्ग के प्रति राजनीतिक दलों एवं उनके क्षत्रपों में पर्याप्त संवेदनशीलता एवं सदाशयता होनी चाहिये लेकिन ताजा परिस्थितियों को देखकर तो ऐसा ही लगता है कि देश का किसान वर्ग राजनीतिक जगत के लिये सिर्फ पारस्परिक आरोप-प्रत्यारोप व राजनीतिक रोटियां सेंकने का ही आधार बन चुका है जबकि देश का राजनीतिक जगत किसानों को उनके उत्थान एवं कल्याण का सशक्त आधार प्रदान करने के प्रति गंभीर नहीं है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में अपना विशिष्ट स्थान रखने वाला बुंदेलखंड क्षेत्र पिछले कई वर्षों से प्राकृति आपदाओं का दंश झेलने के लिये विवश है। भुखमरी और सूखे की भयावहता के चलते लाखों लोग पलायन कर चुके हैं तथा स्थिति में कोई सकारात्मक परिवर्तन न होने की संभावना से हताश लोगों के पलायन का दौर अभी भी जारी है। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां के लोगों को भरपूर पेयजल भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। बुंदेलखंड के किसानों को उम्मीद थी कि इस बार के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों द्वारा  सूखा और पलायन को अपना चुनावी मुद्दा बनाया जायेगा लेकिन राजनीतिक दल ऐसा कर पाने में नाकाम रहे तथा किसानों का मुद्दा अवसरवादी राजनीति के धुंध में गुम सा हो गया है। देश का बुंदेलखंड क्षेत्र पिछले कई वर्षों  से दैवीय और सूखा जैसी आपदाओं का दंश झेल रहा है और किसान उपेक्षा व बदहाली का दंश झेलने के लिये विवश हैं। उत्तरप्रदेश समाजवादी पार्टी के नेता  बुंदेलखंड में किसानों और कामगारों के पलायन का ठीकरा कांग्रेस और केंद्र सरकार पर फोड़ते हैं तथा कहते हैं कि केन्द्र सरकार ने यदि किसानों और गरीबों  के मुद्दे पर अपनी जिम्मेदारियों का दायित्वपूर्ण निर्वहन करते तथा योजनाओं का प्रभावी अमल सुनिश्चित करते तो हालातों पर काबू पाया जा सकता था लेकिन सरकार की गैर जिम्मेदारी व संवेदनहीनता जन भावनाओं पर हावी रही वहीं कांग्रेस नेता उत्तरप्रदेश के हिस्से में आने वाले बुंदेलखंड क्षेत्र की बदहाली के लिये राज्य की समाजवादी पार्टी सरकार को जिम्मेदार मानते हैं। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि  राहुल गांधी हमेशा बुंदेलखंड के प्रति संवेदनशील रहे हैं तथा उनकी सिफारिश पर ही विशेष पैकेज दिया गया था लेकिन मौजूदा सपा सरकार ने अपने कर्तव्यों का निर्वहन सही मायने में नहीं किया, जिसका खामियाजा बुंदेलखंड वासियों को भुगतना पड़ रहा है। उनको लगता है कि केन्द्र सरकार ने बुंदेलखंड वासियों के उत्थान एवं कल्याण के लिये करोड़ों रुपये का पैकेज दिया लेकिन राज्य की सपा सरकार जरूरतमंदों के हित में इन साधनों-संसाधनों का समुचित सदुपयोग सुनिश्चित करने में नाकाम रही तथा आर्थिक पैकेज बेलगाम नौकरशाही तथा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। बहुजन समाज पार्टी भी बुंदेलखंड के किसानों की बदहाली व विपन्नता के लिये समाजवादी पार्टी व कांग्रेस को जिम्मेदार मानती है। पार्टी को लगता है कि केन्द्र में सत्ताधारी यूपीए सरकार यहां के लोगों के हक और हितों का संरक्षण करने में विफल साबित हुई है, जिसका नतीजा लोगों के पलायन व गंभीर पेयजल संकट के रूप में देखने को मिल रहा है वहीं उत्तरप्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार भी अपने कर्तव्यों को निर्वहन गंभीरतापूर्वक करने के बजाय योजनाओं एवं कार्यक्रमों का सिर्फ कागजी अमल ही सुनिश्चित करती रही । बुंदेलखंड के  किसानों के पलायन को चुनावी मुद्दा न बनाए जाने को विभिन्न दलों के नेता अलग-अलग तर्क देते हैं तथा किसानों के मुद्दे के आधार पर अपना राजनीतिक हित भी साधते हैं लेकिन वह किसानों के खुद हितचिंतक नहीं हैं। बुंदेलखंड क्षेत्र देश में महाराष्ट्र के विदर्भ जैसी ही है, जहां एक बार महाराष्ट्र विधानसभा में किसानों के मुद्दे को लेकर विदर्भ क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले एक विधायक ने किसानों के मुद्दे को लेकर विधानसभा के अंदर ही आत्मदाह का प्रयास किया था लेकिन विदर्भ क्षेत्र के किसानों की स्थिति में आज तक कोई सकारात्मक बदलाव नहीं आया तथा वहां भी पेयजल के लिये भी त्राहि-त्राहि मचती रहती है। विडंबना यह है कि एक तो किसानों के मुद्दे को लेकर राजनीतिक दल और राजनेता गंभीर नहीं हैं और फिर वह जनमानस का मजाक उड़ाने, उन्हें आंख दिखाने से भी परहेज नहीं करते। अभी पिछले दिनों ही एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे और महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजीत पवार ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान लोगों को धमकाया था कि यदि लोग उनकी बहन यानी शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले को वोट नहीं देंगे तो पीने के लिये पानी नहीं मिलेगा। इससे पहले भी अजीत ने पेयजल के मुद्दे पर ही बेहद विवादास्पद बयान दिया था, जिसकी देशभर में आलोचना हुई थी तथा बाद में अजीत को मांफी मांगनी पड़ी थी।  इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि किसानों के मुद्दे लोकसभा के चुनावी महासमर में लगभग गायब हैं। राजनीतिक दलों द्वारा किसानों की बदहाली और विपन्नता के मुद्दे पर भले ही विरोधियों पर दोषारोपण किया जाये लेकिन वह खुद किसानों के मुद्दे पर कोई परिणामदायक पहल करने के लिये तैयार नहीं हैं। किसानों द्वारा आत्महत्या किया जाना किसी भयावह आपदा से कम नहीं है लेकिन विडंबना यह है कि किसानों की आत्महत्या के समय भी राजनीतिक दल स्थिति की भयावहता को राजनीतिक नजरिये से देखने से खुद को दूर नहीं रख पाते। यही कारण है कि किसानों के कल्याण के संदर्भ में किसी ठोस नीति व उसके प्रभावी क्रियान्वयन की संभावना अस्तित्व में ही नहीं आ पाती। यदि कुछ योजनाएं व कार्यक्रम आकार लेते भी हैं तो उनका क्रियान्वयन सिर्फ कागजों तक ही सीमित रहता है।

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