Friday 14 March 2014



लोकतंत्र को अपनी जागीर नहीं समझें राजनेता

सुधांशु द्विवेदी
लेखक प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक हैं

लोकसभा चुनाव के लिये मतदान की तिथियां जैसे-जैसे करीब आती जा रही हैं नेताओं के बीच जोड़-तोड़ व राजनीतिक कसमकस भी लगातार बढ़ती जा रही है। अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने साम,दाम,दंड, भेद सभी तरीकों का बखूबी इस्तेमाल किया जा रहा है। आक्रामक भाषणों व ठोस तर्कों का तो राजनीति में इस्तेमाल किया जाना जायज माना गया है लेकिन मूल्यों व मर्यादाओं की लक्ष्मण रेखा पार करते हुए जब अपमानजनक शब्दावाली व ओछे तर्कों व जुमलों का उपयोग राजनीतिक बिरादरी के लोगों द्वारा किया जाता है तो ऐसा लगता है कि स्वार्थ और अतिमहत्वाकांक्षा की राजनीति मूल्यों और मर्यादाओं पर भारी पड़ रही है जो लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के सुखद भविष्य की दृष्टि से नुकसानदेह है। आम आदमी पार्टी के संयोजक एवं दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मीडिया को देख लेने व सत्ता में आने पर मीडिया वालों को जेल भेजने की धमकी दी है। केजरीवाल ने भले ही अपने इस बयान का खंडन कर दिया हो लेकिन खंडन-मंडन की यह सियासत सुलगते सवालों का जवाब नहीं दे सकती क्यों कि केजरीवाल अभी राजनीतिक मैदान के नये खिलाड़ी हैं तथा उन्हें भले ही इस बात की समझ नहीं हो कि लोकतंत्र राजनेताओं की जागीर नहीं है तथा मीडिया का काम अपनी तटस्थता एवं विश्वसनीयता कायम रखते हुए किसी भी परिस्थिति को जनता-जनार्दन के सामने प्रस्तुत करना है, जो लोकतंत्र को चिरस्थायी व जीवंत बनाये रखने की दृष्टि से मूल्यवान भूमिका है, ऐसे में केजरीवाल क्या कोई भी राजनेता मीडिया के दिशा निर्धारक या पथ प्रदर्शक नहीं हो सकते। केजरीवाल को यदि मीडिया के काम में पक्षपात नजर आता है तो यह मान लिया जाना चाहिये कि केजरीवाल को खुद अभी राजनीतिक परिपक्वता हासिल करने की आवश्यकता है क्यों कि एक प्रशासनिक अधिकारी से राजनेता बने केजरीवाल का राजनीतिक ग्राफ बढ़ाने में मीडिया का भी बड़ा योगदान रहा है। अब जब समय की गतिशीलता के साथ केजरीवाल व उनकी टीम के लोगों के कार्य व्यवहार में अराजकता एवं उच्छंखलता का भरपूर समावेश होता दिखाई दे रहा है तो उसे देश,समाज व लोकहितों की दृष्टि से कैसे उचित करार दिया जा सकता है। यदि केजरीवाल व उनकी टीम के अन्य सदस्यों का रवैया इसी तरह गैर जिम्मेदारी पूर्ण रहा तो समाज के हर वर्ग के बीच उनके प्रति नाराजगी बढ़ेगी।  भोड़े प्रदर्शनों, अराजक गतिविधियों तथा स्तरहीन बयानों को सहारा लेकर यदि केजरीवाल ही नहीं दूसरे राजनेता भी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरा करने का प्रयास करेंगे तो मीडिया तो क्या समाज का हर वर्ग उनके खिलाफ उठ खड़ा होगा। दिल्ली के विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीतने के बाद कांग्रेस की मदद से जब केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे तब लोगों के अंदर उनके संदर्भ में क्रांतिकारी व व्यवस्था में बदलाव लाने वाली छवि निर्मित हुई थी तथा केजरीवाल ने जब लोकपाल के मुद्दे पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था तब भी जनमानस के बीच उनकी राजनीतिक शहादत की प्रशंसा भी हुई थी। लोगों को लगा था कि शायद देशहित में मुख्यमंत्री का पद कुर्बान करने वाले अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय राजनीति में एक सशक्त राजनीतिक विकल्प की स्थापना करेंगे तथा भविष्य में देश की राजनीतिक उनके इर्दगिर्द केन्द्रित होकर भ्रष्टाचार रहित स्वच्छ व पारदर्शी व्यवस्था का आधार बनेगी लेकिन समय की गतिशीलता के साथ केजरीवाल व उनकी टीम के अन्य लोगों में बढ़ती अनुशासनहीनता, उच्छंखलता तथा अराजकता से यह सिद्ध हो गया है कि केजरीवाल भी राजनेतताओं की भीड़ का ही एक हिस्सा हैं तथा वह व्यापक जनभावनाओं को पूरा करने में कामयाब नहीं हो पायेंगे। केजरीवाल पर मुंबई में चुनावी आचार संहिता के उल्लंघन का मामला दर्ज हुआ है। यह सबको विदित है कि नियमों का पालन नहीं करने से अनियमितता बढ़ती है, केजरीवाल भी शायद यह समझते होंगे लेकिन वह खुद नियमों का पालन न करते हुए सिर्फ अपने राजनीतिक विरोधियों से ही नियम-कानून का पाबंद होने की उम्मीद करते हैं। यदि उनकी यह मानसिकता है तो उन्हें आत्म चिंतन और आत्म विश्लेषण करना चाहिये। इससे पहले केजरीवाल ने गुजरात का दौरा किया था तब उन्हें गुजरात पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये जाने पर पुलिस की भूमिका की आलोचना हुई थी तथा जनता-जनार्दन ने भी केजरीवाल के साथ गुजरात पुलिस के इस बर्ताव को पसंद नहीं किया था लेकिन केजरीवाल के अब मुंबई पहुंचने तथा वहां उनके अलावा आप कार्यकर्ताओं द्वारा वहां यातायात नियमों का मखौल उड़ाने तथा चुनावी आचार संहिता के उल्लंघन के बाद जनमानस के मन में उनके प्रति पहले से व्याप्त सहानुभूति अब नाराजगी में बदलने लगी है। जनमानस द्वारा यह माना जाने लगा है कि सुविचारित, सुसंस्कारित तथा जवाबदेह राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना का दावा करने वाले केजरीवाल व उनकी टीम के अन्य सदस्यों के आचरण में विरोधाभाष है तथा वह अपने राजनीतिक विरोधियों की तरह ही राजनीतिक फायदे के लिये समस्त नैतिक व अनैतिक हथकंडों का सहारा ले रहे हैं। केजरीवाल के साथ डिनर की कीमत 10-20 हजार रुपये निर्धारित किये जाने की भी काफी आलोचना हो रही है। लोगों का मानना है कि फिल्मों में काम करने वाले अभिनेता भले ही अपने आर्थिक व व्यावसायिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिये रोड शो व डिनर आदि के नाम पर मोटी रकम वसूलते हों लेकिन ऐसे मामलों में नेताओं की भूमिका तो पूरी तरह जवाबदेहीपूर्ण व आम जनमानस पर केन्द्रित होनी चाहिये। अरविंद केजरीवाल खुद के मध्यम वर्ग एवं गरीब वर्ग के नेता होने का दावा करते हैं लेकिन यदि केजरीवाल के साथ डिनर में शामिल होने के लिये इन वर्गों के लोगों को 10-20 हजार रुपये चुकाने पड़ेंगे तब खुद के गरीब हितैषी होने संबंधी केजरीवाल के दावों का मजाक तो उड़ाया ही जायेगा। केजरीवाल के निकट सहयोगी कुमार विश्वास तो पहले से ही पवित्र धार्मिक प्रतीक चिन्हों, व देवी देवताओं के संबंध में अपमानजनक बातें करके आम आदमी पार्टी के लिये बदनामी तथा लोगों की नाराजगी मोल ले रहे हैं लेकिन अब केजरीवाल का भी तानाशाही रवैया सामने आने से उनके राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित होने की संभावनाएं क्षीण होती जा रही हैं। केजरीवाल को चाहिये कि वह मीडिया को बेवजह निशाना बनाने से परहेज करें तथा अपनी राजनीति
क महत्वाकांक्षाओं की पृष्ठभूमि में आत्मचिंतन और आत्मविश्लेषण करें। राजनीति की रपटीली राहों में चलकर कामयाबी हासिल करने के लिये केजरीवाल के लिये जरूरी है कि वह नियम-कायदों के पाबंद बनें तथा दूसरों को नसीहत देने से पहले आचार संहिता अर्थात आचरण संहिता का पालन सुनिश्चित करें।


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