Tuesday 18 March 2014

कांग्रेस की संभावनाओं पर भारी पड़ रहा है अंदरूनी विवाद

सुधांशु द्विवेदी

लेखक प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक हैं

देश में सत्ताधारी यूपीए गठबंधन की अगुवाई कर रही कांग्रेस पार्टी में लोकसभा चुनाव के ऐन मौके पर भी अंरूनी उठापटक एवं अनियोजित निर्णय लेने का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है तथा पार्टी के अंरूनी झगड़े तथा विवाद भी संभावनाओं पर भारी पड़ रहे हैं। यही कारण है कि देश में चल रही सत्ता परिवर्तन की लहर को यूपीए की सत्ता में पुन: वापसी की संभावना में तब्दील करने में सफलता हासिल नहीं हो पा रही है। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा है कि वह चुनावी सर्वेक्षणों में यूपीए की पराजय की भविष्यवाणी किये जाने से चिंतित नहीं हैं। आशय स्पष्ट है कि न तो चुनावी पराजय की कोई चिंता है और न ही पराजय के माहौल को विजय की संभावना में परिवर्तित करने की कोई ठोस रणनीति या इच्छाशक्ति।  चुनावी सर्वेक्षणकारी एजेसिंयों की निष्पक्षता पर सवाल उठाकर उन्हें कोसने तथा पार्टी के मौजूदा बदतर हालात एवं अंदरूनी उथल पुथल को स्वीकारने की बजाय उन्हें नकारने का कांग्रेसी क्षत्रपों का रवैया ही मौजूदा लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की पराजय का कारण बन जाये तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा। क्यों कि खामियों या परिस्थितियों की प्रतिकूलताओं को स्वीकार करने के बाद ही उनमें सुधार की संभावना बनती है। लेकिन जब कांग्रेसी क्षत्रप कांग्रेस पार्टी व यूपीए के अंदर सब कुछ ठीकठाक चलने तथा इस गठबंधन के फिर सत्ता में वापसी की रट लगाए बैठे हैं तो फिर खामियों को दूर करने व परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने के प्रयासों को अंजाम दिये जाने की उम्मीद भी उनसे नहीं की जा सकती। कांग्रेसी ही कांग्रेस की अवनति का कारण बनते हैं तथा पार्टी की लुटिया डूब जाये या पार्टी के पक्ष में कोई बड़ा चमत्क ार हो जाये, पार्टी क्षत्रपों के तो बस व्यक्तिगत उद्देश्य पूरे होने चाहिये। कुछ इसी तरह का माहौल कांग्र्रेसी खेमे में उत्तर से दक्षिण तथा पूरब से पश्चिम तक स्पष्ट दिखाई दे रहा है। जहां पार्टी में अंदरूनी लोकतंत्र का अभाव तथा पार्टी नेताओं की हठधर्मिता पार्टी की विचारधारा एवं रणनीति पर पूरी तरह भारी पड़ रही है। उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगदंबिका पाल पार्टी नेतृत्व से खफा होकर किसी दूसरे राजनीतिक दल में अपने लिये ठिकाना तलाश रहे हैं तो कांग्रेस सांसद राव इंद्रजीत सिंह पार्टी छोडक़र भाजपा की गोद में पहले ही जा बैठे हैं। मध्यप्रदेश में भिंड से कांग्रेस पार्टी के घोषित प्रत्याशी डॉ. भागीरथ प्रसाद ने भाजपा का दामन थाम लिया तथा उन्हें भिंड से भाजपा ने अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। पार्टी की सबसे ज्यादा किरकिरी तो छत्ताीसगढ़ में हो रही है जहां राजधानी रायपुर लोकसभा सीट से पहले छाया वर्मा को प्रत्याशी बनाया गया फिर उन्हें बदलकर सत्यनारायण शर्मा को रायपुर से लोकसभा प्रत्याशी घोषित करने की कवायद की गई तथा अब खबर है कि सत्य नरायाण शर्मा की जगह पुन: छाया वर्मा को लोकसभा प्रत्याशी घोषित किया गया है। इस राजनीतिक ड्रामे की पृष्ठभूमि में रायपुर स्थित प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में पार्टी कार्यकर्ताओं ने भारी हंगामा मचाया तथा तोडफ़ोड़ भी हुई है। ऐसे में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी या पार्टी के अन्य श्रेष्ठ रणनीतिकार कांग्रेस की विचारधारा के नाम पर अपनी वोट बैंक की जमीन को कैसे उपजाऊ बनाएंगे जब पार्टी में व्याप्त गुटबाजी व अवसरवादिता पार्टी के सभी कार्यकलापों, नीति-रणनीति व आदर्शों-सिद्धांतों पर भारी पड़ रही है। देश के 85 लोकसभा सीटों वाले राज्य उत्तरप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी एवं कांग्रेस की स्थिति पिछले कई वर्षों से कमोबेस एक जैसी ही है। भाजपा ने लोकसभा चुनाव तथा राज्य के आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राज्य में खूब राजनीतिक पैंतरेबाजी की, गुजरात के पूर्व गृहमंत्री अमित शाह को उत्तरप्रदेश भेजकर वहां के माहौल में सांप्रदायिक हलचल पैदा करने तथा अयोध्या से 84 कोसी परक्रिमा निकालने तथा उसमें मोदीत्व के वसीभूत धार्मिक और राजनीतिक नेताओं की सहभागिता के चलते राज्य में सांप्रदायिक माहौल खराब होने की आशंका के मद्देनजर इस यात्रा पर रोक लगाने की गंभीरता सिर्फ  उत्तरप्रदेश की अखिलेश सरकार ने ही दिखाई। केन्द्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन के सत्ता में होने के बावजूद इस पूरे मामले में कांग्रेस नेताओं का रवैया या तो तमाशबीन का रहा या फिर उन्होंने भाजपा या संघ पर निशाना साधने के बजाय समाजवादी पार्टी व उत्तरप्रदेश की अखिलेश सरकार को कोसने में भलाई समझी। शायद यही कारण है कि अपनी धर्म निरपेक्ष छवि के बावजूद कांग्रेस पार्टी उत्तरप्रदेश में विगत कुछ माह पूर्व फैले सांप्रदायिक उन्माद के बावजूद फ्रंटफुट पर आकर कोई दायित्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन नहीं कर पाई है तथा अब लोकसभा चुनाव के अवसर पर उत्तरप्रदेश में मुख्य मुकाबला समाजवादी पार्टी तथा भारतीय जनता पार्टी में होने की संभावना दिख रही है। हां यह अवश्य कहा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगी अगर अराकता व उद्दंडता का रास्ता छोडक़र राजनीतिक गंभीरता का महत्व समझते हुए राज्य की सभी लोकसभा सीटों के लिये मतदान होने तक अपनी सक्रियता कायम रखने में सफल रहे तो वाराणसी सहित राज्य की कई लोकसभा सीटों में कड़ी टक्कर दे सकते हैं। कांग्रेस तो राज्य में अभी भी सुस्त ही पड़ी हुई है तथा पार्टी नेता पार्टी की भलाई में तपोन्ष्ठि सिपाही की तरह अपनी ऊर्जा खपाने के स्थान पर अपने व्यक्तिगत हितों को पूरा करने के लिये एक-दूसरे को निपटाने में ही पूरी ताकत झोंक रहे हैं। आंध्रप्रदेश के दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री वाईएएस राजशेखर रेड्डी के पुत्र जगन मोहन रेड्डी की नाराजगी अभी भी कांग्रेस से दूर नहीं हो पाई है तथा उन्होंने ऐलान किया है कि वह लोकसभा चुनाव में केन्द्र में किसी भी गठबंधन या पार्टी के सत्ता हासिल करने की स्थिति में उसे अपना समर्थन दे देंगे। आशय स्पष्ट है कि वह के न्द्र में भाजपा के नेतृत्व में बनाने वाली सरकार को भी वाईएसआर कांग्रेस का समर्थन देने से परहेज नहीं करेंगे। यहां यह उल्लेखनीय है कि कांग्रेस के क्षत्रपों के पास जगन के साथ मिल बैठकर गिले शिकवे दूर करने तथा उन्हें किसी भी तरह अपने पाले में मिलाने का भरसक प्रयास होना चाहिये था लेकिन कांग्रेस नेतृत्व इसमें भी नाकाम रहा । कांग्रेस पार्टी के क्षत्रपों का यदि इसी प्रकार अदूरदर्शी रवैया लोकसभा चुनाव के अंत तक कायम रहा तो सत्ता परिवर्तन संबंधी सर्वेक्षण एजेंसियों की भविष्यवाणी सच भी साबित हो सकती है तथा यदि कांग्रेसी क्षत्रपों ने शेष बचे समय में भी स्थिति का संभालने की कोशिश की तो यूपीए के सत्ता में वापसी की उम्मीद पूरी भी हो सकती है।

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