Monday 3 March 2014




संभवत: अपने आखिरी फैसले के रूप में केंद्र की यूपीए-2 सरकार ने नौ राज्यों की समूची जाट बिरादरी को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की सूची में शामिल कर लिया। पिछले कई सालों से यूपी और हरियाणा का, और उससे पहले राजस्थान का जाट समुदाय अपने लिए सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन में उतरा हुआ था। हालांकि इक्का-दुक्का उग्र क्षणों को छोड़ दें तो इस मांग का जनाधार उतना व्यापक नहीं था।

जाटों की गिनती आम तौर पर बड़ी या मध्यम जोत वाले संपन्न किसानों के रूप में होती है। दिल्ली-एनसीआर और राजस्थान के भरतपुर-धौलपुर जिलों समेत छिटपुट कई इलाकों में उन्होंने अपनी कुलीन पृष्ठभूमि और जमीन आदि के धंधे में शानदार प्रदर्शन के जरिये समाज के सबसे ऊंचे पायदान पर अपनी जगह बनाई है। लेकिन आला दर्जे की सरकारी नौकरियों, बिजनेस मैनेजमेंट और सॉफ्टवेयर रिवोल्यूशन में उनका प्रतिनिधित्व उतना नहीं है, जितना उनकी हैसियत वाले समुदाय का होना चाहिए।

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