Wednesday 26 March 2014

घोषणा पत्रों में किये गये वादों पर नहीं होता अमल

सुधांशु द्विवेदी

लेखक प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक हैं

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने आज प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी सहित पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में राजधानी दिल्ली में लोकसभा चुनाव 2014 के लिए पार्टी का घोषणापत्र जारी किया है । लोकसभा चुनाव का पांसा पलटने की दिशा में जीतोड़ कोशिश में जुटी कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनावों के लिये जारी अपने घोषणा पत्र में समाज के सभी वर्गों के हितचिंतन की झलक दिखाई है।  घोषणा पत्र में यूपीए सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते आये दिन होने वाले राजनीतिक हमलों के प्रति भी कांग्रेस नेतृत्व की गंभीरता भी साफ नजर आ रही है क्यों कि पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में काले धन के मुद्दे पर पार्टी का नजरिया स्पष्ट किया गया है। मनमोहन सिंह के नेतृत्व में 10 साल तक आर्थिक उदारीकरण की नीति का अनुसरण करने के बाद इस चुनाव में राहुल गांधी के केन्द्रीय भूमिका में आने के बाद कांग्रेस द्वारा अब मध्य मार्गी राजनीति के तहत कल्याणकारी उपायों पर विशेष ध्यान देने की प्रतिबद्धता चुनावी घोषणा पत्र में जताई गई है। इसके साथ ही देश में बढ़ती बेरोजगारी को भी कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में गंभीर मुद्दा माना है। भ्रष्टाचार से निपटने का दृढ़ संकल्प, गरीबी रेखा के नीचे और मध्य वर्ग के बीच आने वाली 70 करोड़ की आबादी के उन्नयन, महिलाओं को शक्ति सम्पन्न बनाने और राजनीति में उनके प्रतिनिधित्व को बढ़ाने का वादा कांग्रेस पार्टी के घोषणा पत्र में प्रमुखता के साथ दिखाई दे रहा है। उदारीकरण के बाद के समय में सरकारी नौकरियों में आ रही कमी को ध्यान में रखते हुए घोषणा पत्र में रोजगार सृजन पर विशेष जोर दिया गया है, जो यह सिद्ध करता है कि लोकसभा चुनावों के मद्देनजर अन्य राजनीतिक दलों की तरह कांग्रेस ने भी युवाओं एवं उनसे जुड़ी समस्याओं को समझा है। भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रही कांग्रेस पार्टी शायद लोकसभा चुनाव में विपक्ष को उसी की भाषा में जवाब देने की रणनीति पर काम कर रही है। यही कारण है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर विपक्ष के आक्रामक प्रचार अभियान का सामना करने के लिए कांग्रेस के घोषणा पत्र में इस समस्या से निपटने के लिए खास उपायों और साथ ही विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने के बारे में घोषणा की गई है।  यहां यह उल्लेखनीय है कि विभिन्न पक्षों के साथ हुई व्यापक चर्चा और विचार विमर्श के बाद तैयार घोषणा पत्र के मसौदे को एके एंटनी की अध्यक्षता वाली समिति की 16 मार्च को हुई बैठक में अंतिम रूप दिया गया था। साथ ही यह कहना भी महत्वपूर्ण है कि एंटनी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख नीति निर्धारकों में लंबे समय से शुमार हैं तथा कांग्रेस के सहयोगी दलों की संख्या बढ़ाने की दृष्टि से गठबंधन व सीटों के तालमेल की जिम्मेदारी भी एंटनी की अध्यक्षता वाली समिति को ही सौंपी गयी है।  एंटनी के अलावा घोषणा पत्र समिति में पी चिदंबरम, सुशील कुमार शिंदे, आनंद शर्मा, सलमान खुर्शीद, संदीप दीक्षित, अजीत जोगी, रेणुका चौधरी, पीएल पूनिया, मोहन गोपाल, जयराम रमेश और दिग्विजय सिंह शामिल हैं। कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र में महंगाई के मुद्दे का उल्लेख रहने और कालाबाजारी एवं जमाखोरी को रोकने के लिए कड़े उपाय का भी जिक्र किये जाने से जनमानस में उम्मीद पैदा होना तो स्वाभाविक है लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर सत्ता में आने पर राजनीतिक दलों द्वारा अपने घोषणा पत्रों पर अमल कितना सुनिश्चित किया जाता है। यूपीए 1 के बाद यूपीए 2 को भी सत्ता संचालित करने के लिये पूरे पांच वर्ष मिले। इस दौरान दोनों कालखंडों को मिलाकर कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को लगातार 10 साल तक सत्ता में बने रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस दौरान निरंतर उजागर होने वाले घपलों-घोटालों के बीच बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने के प्रयासों को अंजाम न दिये जाने के कारण विपक्ष को लगातार हमलावर होने का मौका मिला। साथ ही आम जनता की बढ़ती समस्याओं और पार्टी व सरकार की निरंतर होती किरकिरी पर भी यूपीए व कांग्रेस के रणनीतिकारों ने समय रहते ध्यान नहीं दिया। यही कारण है कि भरोसे का संकट लगातार गहरा होते जाने के कारण मौजूदा लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को पराजय के भय रूपी संताप का सामना करना पड़ रहा है। कांग्रेस पार्टी के घोषणा पत्र में महिलाओं के सशक्तिकरण की प्रतिबद्धता प्रमुखता के साथ समाहित की गई है। सवाल यह उठता है कि यूपीए सरकार के कार्यकाल में महिला आरक्षण विधेयक को संसद में पारित कराने के पक्ष में व्यापक जन भावनाएं रही हैं। लेकिन यह विधेयक लंबे समय से लोकसभा में लंबित पड़ा हुआ है। विधेयक के राज्यसभा में पारित हो जाने के बाद यदि इसे लोकसभा में भी पारित कराने की दिशा में उल्लेखनीय प्रयास हुए होते तो सुखद नतीजे अवश्य सामने आते लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। कांग्रेस एवं यूपीए सरकार ने यदि महिला आरक्षण के मामले में दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय दिया होता तो संसद का संयुक्त अधिवेशन आहूत कर इस विधेयक को पारित कराया जा सकता था इसके अलावा इस संबंध में अध्यादेश जारी करना भी एक विकल्प हो सकता था। हालाकि इन सब परिस्थितियों तथा संसदीय कार्यवाही में विपक्ष का व्यवधानकारी बर्ताव भी काफी हद तक जिम्मेदार है लेकिन सत्तापक्ष होने की दृष्टि से हमलों का सामना तो कांग्रेस को ही करना पड़ेगा। कांग्रेस पार्टी के घोषणा पत्र में किसानों के हित संवर्धन का भी पूरा ख्याल रखे जाने की बात कही गई है लेकिन यह भी सच है कि मौजूदा समय में देश के किसानों की हालत बदतर है। राजनीतिक दलों द्वारा किसानों के मुद्दे को लेकर राजनीतिक पैंतरेबाजी तो की जाती है लेकिन अगर किसानों की बदहाली सुधारने तथा उन्हें आत्महत्या के लिये मजबूर होने से बचाने की दिशा में समय रहते कारगर प्रयासों को अंजाम दिया गया होता तो किसानों के चेहरे पर खुशी की लहर अवश्य दिखाई देती। हालाकि यह भी सही है कि मनरेगा, भोजन का अधिकार तथा अरटीआई कानून जैसे लोक कल्याणकारी कदमों के माध्यम से यूपीए सरकार तथा कांग्रेस ने जनता-जनार्दन के बीच अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने की पहल तो की थी लेकिन अव्यवस्था और अराजकता के माहौल में इन प्रभावशाली कदमों का आलोक वास्तविक जरूरतमंद लोगों तक अपेक्षित ढंग से नहीं पहुंच पाया। अब देखना यह होगा कि कांग्रेस अपनी इन उपलब्धियों को राजनीतिक तौर पर भुनाने में कितना सफल होती है।  उम्मीद की जाती है कि कांग्रेस को यदि एक बार पुन: केन्द्र की सत्ता में आसीन होने का सौभाग्य प्राप्त होता है तो वह जनापेक्षाओं को पूरा करने के लिये ईमानदारी पूर्ण एवं कारगर कदम उठाएगी।

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