जय हो राष्ट्रवाद की
भारत माँ की आरती. जय हो राष्ट्रवाद की जय हो राष्ट्रवाद की.
भारत माँ पुकारती मानवता जब चित्कारती.
दुर्गति रोको राष्ट्र की. दुर्गति रोका राष्ट्र की.
भ्रष्टाचार के दानव ने देश का शिर शर्म से झुकाया है.
बाग़ को लूटा है है माली ने और बाड़ ने ही खेत को खाया है.
लोकतंत्र के पहरुए यह देश का सम्मान कैसे बचायेंगे.
निज स्वार्थ को पूरा करने जब वह ऐसे ही जय चंदों का मजमा लगायेंगे.
कह दो कं गद्दारों से कि क्रांति आने वाली है. वह ऐसा न समझें कि यह धरती वीरों से खाली है. देश के गद्दार वह तब अपना कफ़न टटोलेंगे.
अखंडी और राष्ट्रवादी जब अपना मोर्चा खोलेंगे.
देश बेचकर खाने वाले कैसे देश की शान बचायेंगे.
जब कोयले और टू जी की दलाली का पैसा अपने घर लेकर जायेंगे.
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