सोनिया गाँधी के दामाद राबर्ट बढेरा द्वारा पचास करोड़ की पूंजी से तीन सौ करोड़ की संपत्ति अर्जित करने के मामले को भले ही राजनीतिक रंग दिया जाये लेकिन मामले में कुछ न कुछ सच्चाई तो होगी ही. ऐसे में मामले की जांच कराना ही देश हित में होगा. वैसे भी सत्ता किसी के खानदान या किसी व्यक्ति विशेष की बपौती नहीं है की कोई जब चाहे उसका अपने लिए चारागाह के रूप में इस्तेमाल करे. साथ ही प्रशांत भूषण के मामले की भी जांच कराई जाये क्यों की तथाकथित राजनीतिक या सामाजिक आन्दोलन के नाम पर अपना स्वार्थ पूरा करने का हक़ किसी को नहीं है. रॉबर्ट वाड्रा को दिए
गए अनसिक्योर लोन पर डीएलएफ की सफाई को अरविंद केजरीवाल ने झूठ का पुलिंदा
करार दिया है। मंगलवार को अरविंद केजरीवाल ने इस मामले से जुड़े
डॉक्युमेंट्स भी पेश किए । इन डॉक्युमेंट्स में रॉबर्ट वाड्रा की कंपनियों
की बैलेंस शीट्स और रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज को फाइल किए गए रिटर्न का हवाला
दिया है। केजरीवाल ने कहा कि अगर वाड्रा की कंपनी की साल 2009-10 बैलेंस शीट पर नजर
डालें तो उसमें डीएलएफ से 5 करोड़ के लोन के का जिक्र किया गया है।
रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज को फाइल किए गए रिटर्न में इसे अनसिक्योर्ड लोन
दिखाया गया है। इसी साल डीएलएफ ने रॉबर्ट वाड्रा ग्रुप की कंपनी स्काई लाइट
हॉस्पिटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड को 50 करोड़ रुपये दिए। डीएलएफ का कहना है
कि वाड्रा की कंपनी ने उन्हें मानेसर में 58 करोड़ रुपये में जमीन बेची थी,
जिसके अडवांस के तौर पर यह रकम दी गई थी। एक साल पहले ही वाड्रा की कंपनी
ने यह जमीन सिर्फ 15.28 करोड़ रुपये में खरीदी थी, ऐसे में केजरीवाल ने
सवाल पूछा कि जमीन के एक ही साल में तीन गुना कैसे हो गए।
डीएलएफ ने कहा था कि उसने साल 2008-09 में ही इस जमीन पर कब्जा ले लिया
था, जबकि वाड्रा की कंपनी ने साल 2011 के रिटर्न में इस जमीन पर अपना कब्जा
दिखाया है, जिससे डीएलएफ का झूठ पकड़ा जाता है। इसके अलावा बिना ब्याज के
वाड्रा की कंपनी ने डीएलएफ को दो बार 10 और 15 करोड़ रुपये दिए। केजरीवाल
ने प्रश्न उठाया कि सरकार इस मामले की जांच करने से क्यों घबरा रही है?
जबकि वाड्रा की कंपनी को मिला अनसिक्योर्ड लोन किसी भी तरह से ए. राजा और
कनिमोझी के मामले से अलग नहीं है।
केजरीवाल के मुताबिक वाड्रा की कंपनी स्काई लाइट रीयल्टी प्राइवेट लिमिटेड
की साल 2009-10 की बैलेंस शीट में दिखाया गया है कि अरालिया को 89.41 लाख
रुपये में खरीद गया है। लेकिन अगले की बैलेंस शीट में इसे 8.57 करोड़ रुपये
ज्यादा दिखाया गया है। सवाल यह है कि यह प्रॉपर्टी कब और कितने रुपये में
खरीदी गई। DLF ने अपने जवाब में कहा था कि वाड्रा ने अरालिया को अपने
इस्तेमाल के लिए साल 2008 में खरीदा था और बाद में इसी साल वापस कर दिया
था। केजरीवाल ने सवाल पूछा कि जो प्रॉपर्टी साल 2009-10 में 89.41 लाख की
थी, 2010-11 में वह 10.4 करोड़ की कैसे हो गई?
डीएलएफ ने सफाई में कहा था कि मैग्नोलिया को 10 हजार रुपये प्रति स्कवॉयर
फीट की दर से वाड्रा की कंपनी को बेचा गया था। इस हिसाब से हर मैग्नोलिया
फ्लैट की कीमत 5 करोड़ रुपये बनती है। लेकिन वाड्रा की कंपनी की बैलेंस शीट
में इन 7 फ्लैट्स की कीमत सिर्फ 5.232 करोड़ रुपये दिखाई गई है। अरविंद ने
सवाल किया कि क्या वाड्रा ने रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज़ के पास गलत रिटर्न
फाइल किया था?
केजरीवाल द्वारा उठाए गए सवाल गंभीर भी हो सकते हैं और सतही भी. लेकिन असलियत तभी सामने आयेगी जब मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाएगी. देश को लुटने वाले थोडा तो कुछ शर्म करें. देश की शान न जाने पाए ऐसा भी तो कुछ कर्म करें. जन अरमानो की यदि वह ऐसी ही चिता सजायेंगे. तो देश के पहरुए लोकतंत्र का चीर हरण होने से कैसे बचा पाएंगे. सत्ता को अपनी जागीर न समझें यह तो जन सेवा का साधन है. सब अपने बारे में भी पता लगायें किसके पास कितना काला धन है. यदि जनभावनाओं को ऐसे ही कुचला जायेगा तो भारतीय लोकतंत्र को रसातल में जाने से कोई नहीं बचा पायेगा,
No comments:
Post a Comment