Tuesday 9 October 2012

गरीबों की जेब न काटे केंद्र सरकार

देश में महंगाई की भीषण मार झेल रहे देशवाशियों पर केंद्र सरकार शायद अभी और भी कहर बरपाने वाली है. केंद्र सरकार अब रेल किराया बढाने की तयारी में है. सरकार ने अगर अपनी इस तयारी को अमल में लाया तो इससे देश के गरीबों की जेब और ज्यादा कटेगी. जेब काटने के यह नायाब तरीके कांग्रेस का पत्ता भी काट देंगे यह तय है. क्यों कि रेल यात्रा को देश में आज भी काफी लोकप्रिय सुलभ और सस्ती मन जाता है. जिसका सर्वाधिक लाभ गरीबों को ही मिलता है. लेकिन अब रेल किराया भी बढ़ जाने से गरीबों के मुश्किल और ज्यादा बढ़ जाएगी.रेलवे को वित्तीय संकट से उबारने के लिए सरकार की तैयारियां भले ही  तेज हो गई हैं लेकिन यह देशवाशियों पर कहर बरपाने का ही प्रयास है.। दरअसल, पहले रेल मंत्रालय कांग्रेस के सहयोगी दल तृणमूल कांग्रेस के पास था और उन्होंने रेलवे की वित्तीय हालात के बजाय आम आदमी का ज्यादा ख्याल रखा। लेकिन अब सरकार रेलवे को वित्तीय मोर्चे पर मजबूत करने के नाम पर लोगों पर जुल्म थोपना  चाहती है। वहीं, वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि महंगाई की वजह से ग्रोथ की रफ्तार धीमी पड़ रही है। उन्होंने भारतीय रिजर्व बैंक को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि महंगाई पर लगाम कसने के लिए केंद्रीय बैंक की सख्त मौद्रिक पॉलिसी, ग्रोथ को चोट पहुंचा रही है। चिदंबरम ने कहा है कि हमें 8-9 फीसदी आर्थिक ग्रोथ का टारगेट रखना होगा। उन्होंने कहा कि सुविधा लेनी है तो ग्राहकों को उसकी कीमत चुकानी होगी। वहीं, अब सरकार रेल किराए को महंगाई से जोड़कर निवेश के पहिए को पटरी पर लाना चाहती है। इसके अलावा सरकार पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप, माल ढुलाई के लिए गोल्डन क्वड्रीलैटरल नेटवर्क तैयार करने और पैसा जुटाने के नए स्त्रोतों पर फोकस कर रही है।

सूत्रों के मुताबिक, रेलवे को तेज स्पीड से दौड़ाना अगला एजेंडा है। रेलवे में नई जान फूंकने का प्लान जल्द तैयार होने वाला है। इस प्लान को लेकर रेल मंत्रालय, प्लानिंग कमीशन और वित्त मंत्रालय के बीच बातचीत शुरू हो चुकी है।

सैम पित्रोदा की अगुवाई में बने विशेषज्ञ समूह ने साल की शुरुआत में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अगले पाच साल में भारतीय रेलवे को 8.39 लाख करोड़ रुपए की जरूरत होगी। रेलवे की वित्तीय सेहत सुधारने की शुरुआत सर्विस टैक्स लगाने के साथ ही कर दी गई है। यूपीए के पूर्व सहयोगी तृणमूल काग्रेस के चलते इसे होल्ड पर रखा गया था। कुछ समय पहले तक उसके पास यह पोर्टफोलियो था। यूपीए-1 और यूपीए-2 दोनों के ही दौरान रेलवे मंत्रालय काग्रेस सरकार को सपोर्ट देने वाले सहयोगी दलों को दिया गया, जिन्होंने किराए में बढ़ोतरी नहीं की। वहीं, तृणमूल काग्रेस के दिनेश त्रिवेदी को ममता बनर्जी की इच्छा के उलट किराया बढ़ाने के कारण रेल मंत्री के पद से
इस्तीफा देना पड़ा था। वर्तमान हालातों को देखते हुए तो यही लगता है कि सरकार
गरीबों को राहत देने के मुद में नहीं है. जिसकी कीमत कांग्रेस को जरुर चुकानी पड़ेगी.

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